केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा एमएसएमई की संशोधित परिभाषा को स्वीकार किए जाने के बाद करीब 70 प्रतिशत सूचीबद्घ कंपनियां अब सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) श्रेणी का हिस्सा बन सकती हैं। इसके साथ ही ये कंपनियां अब सरकारी लाभ के लिए पात्र बन सकती हैं।
मंत्रिमंडल ने सोमवार को 50 करोड़ रुपये के निवेश और 250 करोड़ रुपये के कारोबार वाली मझोले आकार की कंपनियों के पुन: वर्गीकरण को मंजूरी दी, जो पूर्व के 20 करोड़ रुपये और 100 करोड़ रुपये के आंकड़े से ज्यादा है।
करीब 4,643 सूचीबद्घ कंपनियां हैं जिनके आंकड़े कॉरपोरेट डेटा प्रदाता कैपिटालाइन के पास मौजूद हैं। इनमें करीब 20 प्रतिशत मझोले उद्यमों के लिए कारोबार सीमा के तहत परिभाषा में आती हैं। अन्य 19 प्रतिशत छोटे उद्यमों, और 30 प्रतिशत सूक्ष्म उद्यमों के दायरे में आएंगी।
अभी सभी कंपनियों ने मार्च 2020 में समाप्त वित्त वर्ष के लिए नतीजे घोषित नहीं किए हैं। पूर्ववर्ती वर्ष के कारोबार संबंधित आंकड़ों का इसके लिए इस्तेमाल किया गया था, क्योंकि वित्त वर्ष 2020 के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह भी निर्णय लिया गया है कि निर्यात के संदर्भ में कारोबार को एमएसएमई इकाइयों की किसी भी श्रेणी के कारोबार की सीमा में नहीं गिना जाएगा, चाहे वह सूक्ष्म, लघु या मझोली हो।’
पुणे स्थित कंपनी सचिव गौरव एन पिंगल ने कहा, ‘एमएसएमई की परिभाषा में शामिल होने वाली कंपनियों को सरकारी सहायता के साथ साथ निर्धारित समयावधि में जरूरी भुगतान का लाभ मिलता है। उन्हें कई लाभ हासिल होंगे।’ मंत्रिमंडल ने सोमवार को दबाव से जूझ रहीं एमएसएमई के लिए 20,000 करोड़ रुपये की पूंजी स्वीकृत की। इससे करीब 200,000 उद्यमों को मदद मिलने की संभावना है।
सरकार ने 200 करोड़ रुपये तक की खरीद में वैश्विक निविदाओं को अस्वीकार कर एमएसएमई को वरीयता दिए जाने जैसे अन्य कदमों की भी घोषणा की है। सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को 45 दिन में उनके बकाया मिल जाएंगे। इस सेगमेंट को सहायता के लिए पूर्व में भी कदमों की घोषणा की गई थी। यदि आप कोविड-19 महामारी के प्रभाव पर विचार करें तो कारोबार सीमा अधिक अनुकूल मानी जा सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि लॉकडाउन का कई कंपनियों के कारोबार पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
वित्तीय सेवा कंपनी बैंक ऑफ अमेरिका कॉरपोरेशन द्वारा इंडिया इकोनोमिक वॉच की शोध रिपोर्ट (1 जून) के अनुसार भारत की जीडीपी वित्त वर्ष 2021 में 2 प्रतिशत प्रभावित होने की आशंका है। भारतीय अर्थशास्त्रियों इंद्रनील सेन गुप्ता और आस्था गुडवानी के अनुसार, लगातार एक महीने की मंदी से वृद्घि पर 1-2 प्रतिशत का प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन को (अनलॉक-1 के तौर पर) 30 जुन तक बढ़ा दिया है। हमारा अनुमान है कि एक महीने की बंदी से जीडीपी पर 1-2 प्रतिशत का प्रभाव पड़ेगा। यदि अर्थव्यवस्था को वैक्सीन नही बनने तक लॉकडाउन के दौर में रखा जाता है तो इससे वित्त वर्ष 2021 में 5 प्रतिशत तक का दबाव पडऩे की आशंका है।’
