भारत में 10 करोड़ से ज्यादा लोग मधुमेह और मोटापे के शिकार हैं। ऐसे में ईलाई लिली भारत को एक उभरते हुए महत्त्वपूर्ण वैश्विक बाजार के रूप में देख रही है। ईलाई लिली इंडिया के नवनियुक्त अध्यक्ष एवं महाप्रबंधक विंसलो टकर ने सोहिनी दास से बातचीत में बताया कि कंपनी सेमाग्लूटाइड जेनेरिक दवा के मद्देनजर क्या तैयारी कर रही है। साथ ही उन्होंने बताया कि क्यों कंपनी भारत से विनिर्माण, नवाचार और वैश्विक आपूर्ति बढ़ाने के लिए 1 अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर रही है। मुख्य अंश:
सेमाग्लूटाइड की विशेष अवधि जल्द खत्म हो रही है और मार्च तक जेनेरिक दवाओं की पहली खेप आ जाने की उम्मीद है। क्या आपको लगता है कि मरीज जेनेरिक दवाओं की ओर रुख करेंगे?
टिर्जेपेटाइड को उसके क्लीनिकल प्रोफाइल, प्रभावकारिता और कीमत के लिए अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। हमारा मानना है कि यह न केवल मरीजों बल्कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए भी बेहद फायदेमंद है। जेनेरिक दवाएं निश्चित तौर पर बाजार में आएंगी और हम उनका स्वागत करते हैं, क्योंकि इनसे जरूरतमंदों की मांग पूरी होगी और उपचार तक पहुंच बेहतर होगी। समय के साथ-साथ चिकित्सकों और मरीजों यानी दोनों के पास विभिन्न कीमत विकल्प उपलब्ध होंगे। टिर्जेपेटाइड एक जीआईपी/जीएलपी-1 दवा है जिसकी प्रभावकारिता और सुरक्षा प्रोफाइल खास है।
बाजार में आने वाली जेनेरिक दवाएं सेमाग्लूटाइड जेनेरिक हैं। मैं मूल्य रणनीति पर टिप्पणी नहीं कर सकता और न ही आगे की स्थिति के बारे में कुछ कह सकता हूं। मगर सेमाग्लूटाइड के जेनेरिक वास्तव में टिर्जेपेटाइड के जेनेरिक नहीं हैं। हमारा मानना है कि टिर्जेपेटाइड का विशेष प्रोफाइल, बढ़ती जागरूकता, बीमारी की स्थिति के बारे में लगातार जानकारी, रणनीतिक साझेदारियां और हमारी व्यापक कार्डियोमेटाबोलिक की प्रस्तावित दवाइयां हमें बाजार में मजबूती से स्थापित करेगी।
आपने स्थानीय दवा विनिर्माताओं के जरिये विनिर्माण और आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए भारत में 1 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है। आप हैदराबाद में एक विनिर्माण एवं गुणवत्ता इकाई भी लगा रहे हैं। क्या भारत में बनी दवाओं को दुनिया भर में भेजने की योजना है?
बिल्कुल। अगले कई वर्षों के दौरान 1 अरब डॉलर से अधिक के निवेश की लिली की घोषणा भारत के प्रति दीर्घकालिक रणनीतिक प्रतिबद्धता बताती है। यह निवेश अनुबंध विनिर्माण को बढ़ावा देने और देश में एक विनिर्माण एवं गुणवत्ता तकनीकी केंद्र स्थापित करने पर केंद्रित है। भारत में दवा विनिर्माण का मजबूत परिवेश, वैज्ञानिक विशेषज्ञता और अत्यधिक कुशल कार्यबल मौजूद हैं। हमारी दीर्घकालिक मौजूदगी और विश्वसनीय सहयोग के मद्देनजर बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए विनिर्माण एवं आपूर्ति क्षमताओं का विस्तार करने का यह बिल्कुल सही समय है।
यह कदम भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की विस्तार योजनाओं के अनुरूप भी है और इससे मेक इन इंडिया पहल को बल मिलता है। इस विनिर्माण अनुबंध के जरिये भारत में उत्पादित दवाओं का निर्यात नवोन्मेषी उपचारों की बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए किया जाएगा। हमारी बेंगलूरु इकाई क्लीनिकल परीक्षण करने और दवाओं के विकास को सुव्यवस्थित करते हुए लिली के वैश्विक मिशन को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रही है। यह कारोबारी दृष्टिकोण तैयार करने के अलावा बाजार अनुसंधान, शिक्षण और वैश्विक सामग्री केंद्र के लिए रणनीतिक केंद्र के रूप में भी कार्य करती है। यह इकाई अमेरिका एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों में दवाओं को उतारने में मदद करती है।
अगस्त 2025 में हमारे हैदराबाद कारखाने का उद्घाटन हुआ और वह अब हमारी वैश्विक रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनने को तैयार है। स्वचालन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सॉफ्टवेयर उत्पाद इंजीनियरिंग और क्लाउड कंप्यूटिंग का फायदा उठाते हुए यह कारखाना हमारे वैश्विक परिचालन को मजबूत करने के लिए उन्नत समाधान प्रदान करेगा। हमने मौनजारो और भविष्य के उत्पादों की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए आपूर्ति श्रृंखला में काफी निवेश किया है। हैदराबाद कारखाना हमारी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा होगा।
खाने वाली जीएलपी-1 ऑर्फोग्लिप्रॉन के लिए आपकी क्या योजना है?
ऑर्फोग्लिप्रॉन एक खाने वाली जीएलपी-1 है जिसे अब तक मंजूरी नहीं मिली है। अगर मंजूरी मिल जाती है तो हम इसे भारत में उतार सकते हैं। कुछ मरीज इंजेक्शन के बजाय खाने वाली दवाओं को अधिक पसंद करते हैं। इसलिए हम मधुमेह और मोटापे दोनों के इलाज में अवसर देखते हैं। हमारे पास एक ट्रिपल-मैकेनिज्म उत्पाद रेटाट्रूटाइड भी है जो जीआईपी, जीएलपी -1 और ग्लूकागन को लक्षित करता है। हमारा उद्देश्य चिकित्सकों और मरीजों के लिए अलग-अलग और व्यक्तिगत उपचार विकल्प प्रदान करना है।
भारत के लिए जीएलपी-1 श्रेणी के अलावा किन दवाओं के लिए तैयारी चल रही है?
फिलहाल हमारे पास जीएलपी-1 के अलावा कई कार्डियोमेटाबोलिक रोगों के लिए 11 दवाएं क्नीनिकल परीक्षण में हैं। हमारे अंतिम चरण के इन्क्रेटिन पोर्टफोलियो में ट्राई-एगोनिस्ट रेटाट्रुटाइड और ओरल जीएलपी-1 ऑर्फोग्लिप्रॉन जैसी कई दवाएं शामिल हैं। रेटाट्रुटाइड जीआईपी और जीएलपी-1 गतिविधि में एक ग्लूकागन रिसेप्टर एगोनिस्ट जोड़ता है। ऑर्फोग्लिप्रॉन एक गैर-पेप्टाइड ओरल जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट है जो अमेरिका में नियामकीय मंजूरी के इंतजार में है।