मंदी की काली घटा के बीच विज्ञापन एजेंसियों ने पिछले साल कमीशन आधारित खातों की तुलना में शुल्क आधारित मॉडल से ज्यादा कमाई की थी।
ग्राहकों के द्वारा विज्ञापन खर्चों में कटौती किए जाने के साथ ही उसी अनुपात में कमीशन में भी कमी आई है। हालांकि इसके बावजूद एजेंसियां असमंजस की स्थिति में फंसी हुई हैं कि वे वर्ष 2009 में शुल्क आधारित मॉडल के साथ चले या फिर कमीशन आधारित मॉडल का दामन थामे।
आमतौर पर 90 फीसदी बहुराष्ट्रीय कंपनियां शुल्क आधारित मॉडल के अनुसार ही भुगतान करती हैं जबकि ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां कमीशन आधारित मॉडल को ही जारी रखती हैं। अगर निजी क्षेत्र की कंपनियों की बात करें तो वहां मिले-जुले आंकड़े देखने को मिलते हैं।
मीडिया एजेंसियां आमतौर पर शुल्क आधारित मॉडल को प्राथमिकता देती हैं। एक ओर जहां शुल्क का निर्धारण सेवाओं के लिए आवश्यक कर्मचारियों की लागत, समय आदि के आधार पर किया जाता है, वहीं कमीशन का निर्धारण कुल बजट के कुछ फीसदी के आधार पर किया जाता है।
हालांकि, दूसरी तरफ कमीशन आधारित मॉडल में एक जोखिम यह भी है कि इसमें कभी ग्राहकों की संख्या बढ़ जाती है तो कभी घट भी जाती है। कमीशन का भुगतान क्रिएटिव एजेंसियों (जोकि विज्ञापनों की योजना बनाती हैं) और मीडिया एजेंसियों (जोकि सभी मीडिया में विज्ञापनों को स्थान देती हैं) को किया जाता है जिसमें बहुत अंतर देखने को मिलता है।
दो दशक पहले की बात है जब मीडिया का बहुत ज्यादा विस्तार नहीं हुआ था उस दौरान मीडिया एजेंसियों के लिए करने को बहुत कुछ नहीं था जबकि क्रिएटिव एजेंसियों की उस वक्त प्रमुखता थी। उस समय क्रिएटिव एजेंसियों को जहां 12 फीसदी कमीशन मिला करता था वहीं मीडिया एजेंसियों को 2.5 फीसदी कमीशन मिला करता था।
हालांकि आज भी क्रिएटिव एजेंसियों को 10-12 फीसदी और मीडिया एजेंसियों को 3-4.5 फीसदी कमीशन मिलता है। पर्सेप्ट एच के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रभाकर मधुकर बताते हैं, ‘यह ग्राहकों और खुद के अभ्यास पर निर्भर करता है कि आप कहां तक आगे बढ़ सकते हैं।’ अमूमन पर्सेप्ट के पास हमेशा कुछ ग्राहक शुल्क और कुछ कमीशन आधारित मॉडल वाले होते हैं। मसलन, उनके ग्राहक दोनों मॉडलों में 50:50 के अनुपात में बंटे हुए हैं।
मुद्रा मैक्स (मुद्रा की एक मीडिया एजेंसी) के अध्यक्ष और हेड चंद्रदीप मित्रा ने बताया, ‘अगर ग्राहक सहमत होते हैं तो मैं शुल्क आधारित मॉडल को ही प्राथमिकता दूंगा। अधिकांश मीडिया एजेंसियां शुल्क आधारित मॉडल को ही प्राथमिकता देंगी। मालूम हो कि शुल्क आधारित मॉडल ग्राहकों के लिए ज्यादा किफायती है।’
शुल्क आधारित मॉडल को लेकर मुद्रा का रवैया पक्षपातपूर्ण दिखता है जबकि लियो बर्नेट के ज्यादातर खाते कमीशन आधारित मॉडल के अनुसार ही हैं। लियो बर्नेट इंडिया के अध्यक्ष और मुख्य कार्य अधिकारी अरविंद शर्मा ने बताया, ‘मुआवजा एक दीर्घकालिक फैसला है।
मौजूदा मंदी के आलम में शुल्क आधारित मॉडल के साथ चलना सही फैसला नहीं होगा। इसलिए मैं अभी भी कमीशन आधारित मॉडल को ही प्राथमिकता दूंगा। जब अर्थव्यवस्था में दोबारा से सुधार देखने को मिलेगा और बजट में बढ़ोतरी होगी तभी शुल्क आधारित मॉडल भी अपनाना सही होगा।’
यहां कुछ ग्राहक ऐसे भी हैं जो कमीशन और शुल्क में कटौती की मांग कर रहे हैं। हालांकि यहां कुछ ऐसे भी हैं जो इस बात को समझते हैं कि चूंकि बजट में पहले कटौती की जा चुकी है इसलिए ऐसे में शुल्क या कमीशन में कटौती की बात करना बेमानी होगी।
मेडिसन वर्ल्ड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सैम बलसारा ने बताया कि, ‘प्रबुध्द ग्राहक इस बात को जानते हैं कि शुल्क या फिर कमीशन में कटौती के परिणामस्वरूप सेवाओं और गुणवत्ता में ही कमी आएगी क्योंकि एजेंसी भी एक बिजनेस हॉउस ही है न कि वे कोई जादूगर हैं।’
