इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज कहा कि ट्विटर नए सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों का अनुपालन करने में विफल रहा है। नए नियम 26 मई से लागू हुए हैं। कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक इसका मतलब यह हुआ कि यह माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म अब आईटी कानून के तहत संरक्षण के प्रावधान के अंतर्गत वह कानूनी बचाव का दावा नहीं कर सकता है।
आईटी कानून के तहत संरक्षण की सुविधा और भारत में मध्यस्थ का दर्जा गंवाने की खबर पर प्रसाद ने ट्वीट किया, ‘इस बात को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या ट्विटर संरक्षण की व्यवस्था का पात्र है। असल बात यह है कि ट्विटर 26 मई से लागू हुए मध्यस्थ दिशानिर्देशों का पालन करने में विफल रहा है।’ प्रसाद ने कहा कि ट्विटर को नए नियमों का अनुपालन करने के कई मौके दिए गए लेकिन उसने इनका पालन नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय में वकील और साइबर कानून के विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने कहा, ‘ट्विटर का मध्यस्थ का दर्जा खत्म नहीं होगा। वह तब तक मध्यस्थ बना रहेगा जब तक कि वह आईटी कानून की धारा 2 (1)(डब्ल्यू) का अनुपालन करता है। लेकिन यदि ट्विटर ने 26 मई की रात को आईटी नियम 2021 के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया था तो वह अपना ‘सुरक्षा कवच’ गंवा चुका है। इसका मतलब यह होगा कि उस पर दीवानी और फौजदारी दोनों तरह के मामले चलाए जा सकेंगे और उसकी कानूनी जवाबदेही होगी। आईटी नियम की धारा 7 के अनुसार इसके शीर्ष प्रबंधन को आईटी कानून के प्रावधानों और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत दंडित किया जा सकता है।’
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 28 मई को कहा था कि प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों ने नए आईटी नियम 2021 के तहत वांछित विवरण साझा कर दिया है मगर ट्विटर ने ऐसा नहीं किया। ट्विटर ने अभी तक मुख्य अनुपालन अधिकारी का ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया है। हालांकि ट्विटर ने कहा है कि उसने अंतरिम मुख्य अनुपालन अधिकारी नियुक्त कर लिया है, जिसकी जानकारी सीधे मंत्रालय को दी जाएगी। मंत्रालय ने अनुपालन की समयसीमा के अंतिम दिन 25 मई को सभी सोशल मीडिया फर्मों को पत्र लिखकर सूचित किया था कि नए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिक संहिता) नियम, 2021 को हर हाल में मानना होगा। नए नियम के अनुसार प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों या 50 लाख से ज्यादा उपयोगकर्ताओं वाले प्लेटफॉर्म को भारत में अपना मुख्य अनुपालन अधिकारी, नोडल अधिकारी और शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना होगा और विवरण भी देना होगा।
पॉलिसी थिंक टैंक – द डायलॉग के संस्थापक काजिम रिजवी ने कहा ‘सूचना प्रौद्योगिकी के नए नियमों का अनुपालन नहीं करना ट्विटर को अपना सेफ हार्बर का दर्जा गंवाने के लिए जिम्मेदार बना देगा। सरकार द्वारा कोई पंजीकरण या प्रमाणीकरण प्रदान नहीं किया गया है, जिससे पता चलता है कि सेफ हार्बर खत्म हो गया है। सेफ हार्बर एक कानूनी रक्षा मंच है। अगर किसी तीसरे पक्ष द्वारा उनके खिलाफ कोई मामला लाया जाता है, तो अदालत में इसका उपयोग कर सकते हैं। दूसरी तरफ, अब अगर सरकार को लगता है कि यह प्लेटफॉर्म सेफ हार्बर का दर्जा खो चुका है, तो उसके पास इस मध्यस्थ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने का अधिकार है, लेकिन सेफ हार्बर के न्यायशास्त्र को ध्यान में रखते हुए यह अदालत के फैसला देने पर निर्भर करेगा कि क्या मध्यस्थ जिम्मेदार होगा या नहीं।’
डिजिटल अधिकारों के संगठन – इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने यह भी कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में वर्णित मध्यस्थ का दर्जा एक ‘तकनीकी योग्यता’ है, न कि सरकार द्वारा प्रदान किया गया पंजीकरण। आईएफएफ ने ट्वीट किया है ‘धारा 79 के अनुसार अगर मध्यस्थ अदालतों और सार्वजनिक प्राधिकरणों की ओर से आने वाले उपयोगकर्ता की पोस्ट को कानूनी तौर पर हटाने के अनुरोधों का अनुपालन करते हैं, तो वे दायित्व/दंड से मुक्त हैं।’
वास्तव में इस प्लेटफॉर्म पर सोशल मीडिया फर्म सामग्री का निर्माण नहीं करती हैं, बल्कि उपयोगकर्ता करते हैं। तकनीकी मामलों की वकील मिशी चौधरी के अनुसार दुनिया भर में इस बात पर आम सहमति रही है कि उपयोगकर्ता-जनित गैरकानूनी सामग्री के लिए उन्हें (प्लेटफॉम को) कड़ाई के साथ जिम्मेदार ठहराना अनुचित होगा।
ट्विटर ने भारत में एक कानूनी फर्म में काम करने वाले वकील का विवरण बतौर नोडल कॉन्टैक्ट पर्सन और शिकायत अधिकारी के रूप में मंत्रालय के साथ साझा किया है। इन नियमों के अनुसार महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया कंपनियों के ये अधिकारी कंपनी के कर्मचारी होने चाहिए और भारत में रहने वाले हों।
मंगलवार को गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) पुलिस ने एक ऐसे वायरल वीडियो को हटाने में असफल रहने की वजह से ट्विटर के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की थी, जो सांप्रदायिक घृणा भड़का सकती थी।
प्रसाद ने अपने ट्वीट में कहा कि उत्तर प्रदेश में जो हुआ, वह फर्जी खबरों से लडऩे में ट्विटर की मनमानी का उदाहरण था। हालांकि ट्विटर तथ्य की जांच करने वाली अपनी व्यवस्था को लेकर उत्सुक रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे कई मामलों में कार्य करने में इसकी विफलता हैरान करती है तथा झूठी खबरों से लडऩे में इसकी असंगतता का संकेत देती है। उन्होंने आगे कहा कि कंपनी देश के कानून द्वारा अनिवार्य की गई प्रक्रिया स्थापित करने से इनकार करते हुए उपयोगकर्ताओं की शिकायतों पर ध्यान देने में नाकाम रही है।
