केंद्र सरकार ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर द्वारा नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों का अनुपालन न करने के कारण कंपनी को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 79 (1) के तहत मध्यवर्ती के रूप में प्राप्त सुरक्षा अब समाप्त हो गई है।
यह जानकारी अधिवक्ता अमित आचार्य द्वारा दाखिल एक हलफनामे में दी गई। आचार्य ने ट्विटर के खिलाफ याचिका दायर की है क्योंकि उसने 26 मई, 2021 से प्रभावी नए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियमों का पालन नहीं किया है। आचार्य ने हलफनामे में कहा कि उन्हें कुछ कथित अवमानना वाले ट्वीट नजर आए और जब उन्होंनेे शिकायत दर्ज करनी चाही तो उन्हें ट्विटर की वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर केवल अमेरिका स्थित शिकायत निवारण अधिकारी का ब्योरा मिला।
गौरतलब है कि आईटी अधिनियम के तहत ट्विटर, गूगल, फेसबुक, कू, शेयरचैट और अन्य कंपनियों को मध्यवर्ती के रूप में संरक्षण हासिल रहा है। इसके तहत मध्यवर्ती प्लेटफॉर्म को किसी भी तीसरे पक्ष द्वारा साझा की गई जानकारी, डेटा या संचार लिंक के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। यह दर्जा समाप्त होने का अर्थ यह है कि प्लेटफॉर्म अब तीसरे पक्ष द्वारा साझा की गई ऐसी किसी भी चीज के लिए विधिक रूप से जवाबदेह होंगे।
गत 31 मई को दिल्ली उच्च न्यायालय ने ट्विटर को एक नोटिस जारी करके कहा था कि वह तीन सप्ताह में जवाब दे। उसने अगली सुनवाई के लिए 6 जुलाई की तारीख तय की थी।
ट्विटर ने शनिवार को उच्च न्यायालय को बताया कि वह स्थानीय शिकायत अधिकारी की नियुक्ति के आखिरी चरण में है। उच्च न्यायालय ने कंपनी को नए आईटी नियमों का पालन न करने के लिए एक नोटिस भी जारी किया था। आचार्य द्वारा जनहित याचिका के रूप में दायर मामले पर मंगलवार को सुनवाई होनी है।
स्थानीय शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति करना उन मानकों में से एक है जिनका पालन करना भारत में संचालित ट्विटर समेत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए आवश्यक कर दिया गया है। इससे संबंधित नए नियम 25 फरवरी को अधिसूचित किए गए और 26 मई को प्रभावी हुए। गत 27 जून को ट्विटर के अंतरिम स्थानीय शिकायत निवारण अधिकारी धर्मेंद्र चतुर ने इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद ट्विटर ने अमेरिका के जेरेमी केसेल को भारत में नया स्थानीय शिकायत निवारण अधिकारी बनाया जो नये नियमों का उल्लंघन है।
आचार्य ने हलफनामे में कहा कि अनुपालन में किसी भी तरह की चूक आईटी नियम, 2021 के प्रावधानों का उल्लंघन है जिसके चलते प्रतिवादी क्रमांक 2 आईटी अधिनियम 2000 की धारा 79(1) के तहत हासिल प्रतिरक्षा गंवा रहा है।
उन्होंने कहा कि इस धारा के तहत मिलने वाली प्रतिरक्षा सशर्त है और इसके लिए आवश्यक है कि मध्यवर्ती संस्था 79 (2) और 79 (3) के मानकों को पूरा करे। आचार्य ने कहा कि ऐसा न करने की स्थिति में उसे 79 (1) में उल्लिखित प्रतिरक्षा नहीं मिल सकेगी। ट्विटर और सरकार के बीच जनवरी से ही विवाद चल रहा है। उस वक्त ट्विटर ने कुछ ऐसे ट्वीट बहाल कर दिए थे जिन्हें सरकार ने हिंसा भड़काने की आशंका के चलते हटाने को कहा था। ये ट्वीट किसान आंदोलन से संबद्ध थे।
आईटी कानून की रद्द धारा पर मामला क्यों दर्ज
उच्चतम न्यायालय ने उसके द्वारा 2015 में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की धारा 66ए को निरस्त करने के बावजूद लोगों के खिलाफ इस प्रावधान के तहत अब भी मामले दर्ज किए जाने पर सोमवार को आश्चर्य व्यक्त किया और इसे चौंकाने वाला बताया। कानून की उस धारा के तहत अपमानजक संदेश पोस्ट करने पर तीन साल तक की कैद और जुर्माना का प्रावधान था।
न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति बी आर गवई के पीठ ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) की ओर से दायर आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया। पीठ ने पीयूसीएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीख से कहा, ‘क्या आपको नहीं लगता कि यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला है? श्रेया सिंघल फैसला 2015 का है। यह वाकई चौंकाने वाला है।’ भाषा