टेस्ला कंपनी के मालिक एलन मस्क ट्विटर के सौदे से पीछे हटते नजर आ रहे हैं और उन्होंने बताया कि बॉट्स के इस्तेमाल के कारण ट्विटर के फर्जी खातों की संख्या ज्यादा है और उन्हें इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी। इस पूरे प्रकरण के चलते एक अहम समस्या पर ध्यान जाने लगा है कि जो विज्ञापनदाता इन फर्जी आंकड़ों (जो इन मंच की कमाई का मुख्य आधार है) के आधार पर पैसा लगाते हैं, वे नुकसान उठा रहे हैं और वे दर्शकों की आड़ में बॉट्स के लिए भुगतान कर रहे हैं।
भारत में एक वैश्विक डिजिटल एवं विज्ञापन धोखाधड़ी का पता लगाने और संरक्षण करने वाली कंपनी एमफिल्टरआईटी का कहना है कि गूगल जैसे सर्च इंजन में 10-12 प्रतिशत की सबसे कम औसत विज्ञापन धोखाधड़ी दर है जो इन मंचों का इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों के साथ काम करते वक्त अनुमान के निष्कर्षों पर आधारित है। इसका मतलब यह है कि 10-12 प्रतिशत विज्ञापन के दर्शक मशीन द्वारा ही तैयार होते हैं। ऐसे में विज्ञापनदाताओं को इतनी ही मात्रा में अपने पैसे भी गंवाने पड़ते हैं।
लेकिन गूगल विज्ञापन नेटवर्क और फेसबुक दर्शकों के नेटवर्क पर औसत विज्ञापन धोखाधड़ी दर (जहां वे राजस्व-साझेदारी समझौते के माध्यम से अन्य डिजिटल मंचों के साथ गठजोड़ करते हैं, जिसमें आमतौर पर 70 प्रतिशत हिस्सा वेबसाइट पर जाता है और 30 प्रतिशत सोशल मीडिया कंपनी को जाता है) 18 प्रतिशत से अधिक है।
डेटा के आधार पर लोकप्रिय यूट्यूब और अन्य ओवर-द-टॉप (ओटीटी) चैनलों पर यह दर 17 प्रतिशत है। आपके द्वारा क्लिक किए जाने वाले विज्ञापनों के लिए, विज्ञापन धोखाधड़ी की दर 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत के बीच होती है। ई-कॉमर्स वेबसाइटों, प्रकाशन एजेंसियों और स्पोर्ट्स मंचों जैसे अन्य डिजिटल नेटवर्क के लिए यह दर 30 प्रतिशत से 35 प्रतिशत के बीच हो सकती है।
एमफिल्टरइट के सह-संस्थापक और मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी धीरज गुप्ता कहते हैं, ‘यह अकेले ट्विटर की ही बल्कि सभी डिजिटल मंचों द्वारा सामना की जाने वाली एक बड़ी समस्या है। एक बॉट बनाने की तकनीक इतनी सरल और आसान हो गई है कि इसका इस्तेमाल अनपेक्षित प्रभाव के साथ फैल रहा है जैसा कि ट्विटर के साथ हुआ है।’
हालांकि, गूगल और मेटा ने इन मुद्दों पर प्रश्नों का जवाब नहीं दिया। ट्विटर ने दावा किया कि उसके 5 प्रतिशत से भी कम खाते नकली हैं लेकिन वैश्विक अनुसंधान एजेंसियों का कहना है कि यह बताई जा रही संख्या से कम से कम 3 गुना अधिक है। मूल्यांकन के लिहाज से भी है यह ट्विटर के लिए पैसा कमाने के लिए अहम क्योंकि इसके राजस्व का 95 प्रतिशत से अधिक हिस्सा विज्ञापन से मिलता है।
हालांकि, भारत में, एमफिल्टरइट का कहना है कि सोशल मीडिया पर फर्जी खातों का प्रतिशत 20 प्रतिशत के वैश्विक औसत से लगभग 30 प्रतिशत हो सकता है। गुप्ता कहते हैं, ‘भारत प्रौद्योगिकी का एक केंद्र है। इसमें एक बड़ा डेवलपर समुदाय है जो अन्य देशों की तुलना में कम कीमत में बॉट तैयार कर सकता है। हमारा आकलन यह है कि यह बहुत अधिक है।’
कंपनियां बॉट्स का इस्तेमाल कुछ कामों को स्वचालित करने के लिए करती हैं मसलन आलोचना की निगरानी करने के लिए, शिकायतों पर नजर रखने के लिए आदि। लेकिन जब इनका इस्तेमाल उन विज्ञापनों को देखने के लिए भी किया जाता है जिनके लिए कंपनियां वास्तविक उपभोक्ताओं के लिए भुगतान करती हैं न कि इसे पढ़ने के लिए मशीनें के लिए ऐसे में यह एक तरह की धोखाधड़ी है। कई मामलों में बॉट मुख्य रूप से एक एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए होते हैं लेकिन नतीजा यह होता है कि यह विज्ञापनों पर भी नजर रखता है और इससे पूरी संख्या बढ़ती है।
बॉट एकमात्र तरीका नहीं है जिसके माध्यम से विज्ञापन धोखाधड़ी होती है। करीब 45 प्रतिशत से अधिक धोखाधड़ी इसके माध्यम से होती है लेकिन इसके बाद क्लिक स्पैम (25 प्रतिशत) होते हैं, जिसमें डोमेन स्पूफिंग और विज्ञापन क्लिक पाने के लिए डिवाइस में मैलवेयर डाला जाता है।