नए साल की शुरूआत के साथ ही शुरू हो गया है बॉलीवुड का नया सफ र लेकिन कुछ यादें अब भी बाकी हैं। पिछले साल बॉलीवुड इंडस्ट्री का हाल कुछ खट्टा कुछ मीठा सा रहा।
‘सिंह इज किंग’ ने तो बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़ दिए। लेकिन बड़े बजट वाली फिल्म ‘लव स्टोरी 2050’ ‘कर्ज’ और ‘द्रोण’ बुरी तरह से फ्लॉप हो गई। रोहित शेट्टी की फिल्म ‘गोलमाल रिटर्न्स’ और करण जौहर की ‘दोस्ताना’ का प्रदर्शन ठीकठाक ही रहा।
साल के आखिरी महीने की दो फिल्मों, ‘रब ने बना दी जोड़ी’ और ‘गजनी’ के बेहतर कारोबार ने फिल्म इंडस्ट्री को खुशनुमा सौगात दी।
नए साल का नया सफर
नए साल में फिल्म इंडस्ट्री भी अपने नए रंग में दिखाई देगी। फिल्मों की सफलता बड़े बजट या छोटे बजट से नहीं बल्कि बेहतर कहानी और स्क्रिप्ट से तय होगी। फिल्मों के बजट जो अब तक आसमान छू रहे थे, उनमें कटौती होगी।
फिल्मकारों को अलग तरह की मार्केटिंग पर भी जोर देना पड़ेगा। फिल्म विशेषज्ञ तरण आदर्श का कहना है, ‘2008 में लगभग 90 फीसदी फिल्में तो फ्लॉप हो गई। मुझे लगता है कि इस साल भी अच्छी फिल्में जरूर आएंगी।’ फिल्म निर्देशक करण राजदान का मानना है कि हर साल फिल्म इंडस्ट्री का एक ही ट्रेंड रहता है।
वही फिल्में हिट होती हैं जो अच्छी हों और आपको सरप्राइज दें। फिल्म निर्देशक और अभिनेता रजत कपूर का कहना है, ‘मेरे ख्याल से फिल्म इंडस्ट्री में मुश्किलात आएंगी। लोगों के पास कम पैसा होगा तो लोग कम सिनेमा देखेंगे। बड़ी फि ल्में ही हॉल में देखने जाएंगे।’
मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल का कहना है, ‘पिछले चार-पांच सालों से फिल्म इंडस्ट्री की विकास दर सालाना 15-22 फीसदी की दर से बढ़ रही थी, अब मंदी की वजह से इस दर में कमी आ रही है।
फिल्म की लागत के साथ ही कलाकारों की फीस भी बढ़ी । लेकिन अब फिल्म इंडस्ट्री में बजट लागत और फीस में कटौती की जा रही है।’
वहीं मशहूर फिल्मकार प्रकाश झा मानते हैं कि साल के आखिरी दौर में आई फिल्मों ने यह साबित कर दिया है कि लोग अलग तरह की फिल्में जरूर देखते हैं। मशहूर फिल्मकार महेश भट्ट का कहना है कि जिस तरह की फिल्में कामयाब होंगी लोग उनकी ही नकल करके भेड़चाल करेंगे।
विदेशी और कॉरपोरेट खिलाड़ी
बॉलीवुड में हॉलीवुड खिलाड़ियों की दखल धीरे ही सही लेकिन बढ़ रही है। तरण आदर्श का मानना है, ‘विदेशी खिलाड़ियों मसलन सोनी, फॉक्स, वॉल्ट डिजनी और वार्नर ब्रदर्स का बॉलीवुड में आना अच्छा ही है। जहां तक स्वतंत्र फिल्मकारों की बात है तो वे शायद कॉरपोरेट जगत के साथ मिलकर ही फिल्में बना सकते हैं।’
रुपर्ट मर्डोक के नए समूह ने भी बॉलीवुड के बेहतरीन निर्माताओं के साथ कई तरह की फिल्में बनाने के लिए सहमति बनाई है। भारत के अरबपति अनिल अंबानी ने भी स्टीवन स्पीलबर्ग की नई ड्रीमवर्क्स फिल्म स्टूडियो के लिए 30 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
हालांकि फिल्म निर्देशक सुनील दर्शन यह मानते हैं कि विदेशी खिलाड़ियों के आने से स्वतंत्र फिल्मकारों को दिक्कतें आएंगी। जबकि श्याम बेनेगल का मानना है कि मंदी की वजह से भारत के मुकाबले अमेरिका की अर्थव्यवस्था ज्यादा खराब है। ऐसे में हॉलीवुड से जुड़े लोग बॉलीवुड में पैसा लगाने के लिए खासे उत्साही होंगे।
मशहूर फिल्मकार महेश भट्ट का कहना है, ‘जो विदेशी खिलाड़ी बॉलीवुड में मौजूद हैं वही रहेंगे। नए लोग नहीं आएंगे। कॉरपोरेट सेक्टर की कमर तो टूट ही गई है तो वे भी अब काफी संभल जाएंगे।’ सैटेलाइट म्यूजिक और वीडियो अधिकार किसी भी फिल्म की कमाई का खास जरिया होते हैं।
सुनील दर्शन कहते हैं, ‘ओवरसीज राइट्स, सेटेलाइट, ऑडियो-होम वीडियो अधिकारों से होने वाली कमाई अब तक 60 फीसदी थी लेकिन अब उसमें काफी मुश्किल होगी।’ विज्ञापनों की कमी की वजह से टेलीविजन की कमाई घट रही है। ऐसे में सेटेलाइट अधिकार खरीदना भी बड़ी चुनौती होगी।
बॉलीवुड पर मंदी का असर
नई फिल्मों के लिए पैसे की कमी तो खलेगी ही। अब स्टार कलाकारों की फीस में भी कमी होगी। लोग अब किसी बेहतर और पसंदीदा फिल्म के लिए ही पैसे खर्च करेंगे। जिन फिल्मों की बेहतर योजना और मार्केटिंग रणनीति होगी उनकी फिल्में ही हिट हो पाएंगी।
सुनील दर्शन यह मानते हैं कि मंदी के दौर में नए फिल्मकार और नए कलाकारों के लिए काम करना मुश्किल होगा। वहीं रजत कपूर का कहना है कि बेहतर स्क्रिप्ट और नए आइडिया की अपनी जगह तो हर वक्त बरकार रहती ही है। मशहूर फिल्मकार प्रकाश झा का कहना है, ‘पहले बड़ी फिल्मों के प्रोजेक्ट को खरीदार बड़ी आसानी से मिल जाते थे लेकिन अब मुश्किल है।’
नई फिल्मों की बहार
16 जनवरी को अक्षय कुमार की बेहद चर्चित एक्शन कॉमेडी फिल्म ‘चांदनी चौक टू चाइना’ रिलीज होने वाली है। फरवरी में आएगी प्रियदर्शन की निर्देशित फिल्म ‘बिल्लो बार्बर’ जो एक कॉमेडी ड्रामा फिल्म है।
इसमें शाहरुख खान, इरफान खान, लारादत्ता और ओम पुरी हैं। कबीर खान भी जॉन अब्राहम, कैटरीना कैफ और नील मुकेश वाली अपनी नई फिल्म ‘न्यूयॉर्क’ के जरिए इस रेस में हैं। यशराज भी ‘वीर-जारा’ के बाद अपनी नई फिल्म को निर्देशित करने के लिए तैयार हैं।
अनिल शर्मा की फिल्म ‘वीर’ की शूटिंग भी चल रही है जिसमें सलमान खान हैं। प्रकाश झा की फिल्म आ रही है, ‘राजनीति’। इसके अलावा मणिरत्नम की फिल्म आ रही है ‘रावण’। इस फिल्म में ऐश्वर्या राय के साथ हैं अभिषेक बच्चन। फरहान अख्तर भी अपनी अगली फिल्म ‘लक बाइ चांस’ के साथ आ रहे हैं।
इसका निर्देशन किया है जोया अख्तर ने। मोहित सूरी की फिल्म आ रही है राज पार्ट 2 इसमें मुख्य भूमिका में हैं इमरान हाशमी और कंगना राणावत। शाहिद कपूर आयशा टॉकिया और नाना पाटेकर की फिल्म आ रही है, ‘पाठशाला’। इसके अलावा एनीमेशन फिल्मों की भी रहेगी धूम।
खुलेगा मनोरंजन का पिटारा
हर साल की तरह नए साल में भी छोटे पर्दे के मनोरंजन चैनल दर्शकों को लुभाने के लिए नई तैयारियों में जुट गए हैं। उनके सामने चुनौती होगी दर्शकों को खुद के साथ जोड़े रखने की।
वर्ष 2008 में नए-नए चैनलों के लॉन्च होने और नए प्रोग्राम आने से मनोरंजन चैनलों के बाजार में अस्थिरता की स्थिति बनी हुई थी लेकिन अब दर्शकों खुद को किसी पसंदीदा खास चैनल से जोड़ना चाहेंगे।
नए साल में छोटे चैनलों को नुकसान होने की ज्यादा संभावना है क्योंकि विज्ञापनदाताओं का रूझान केवल सबसे बेहतरीन चैनलों के लिए ही होगा।
अब चैनलों की कोशिश यह भी होगी कि वे विज्ञापनदाताओं को लुभाने के लिए अपने प्रोग्राम में विशेष एड स्पॉट भी दें। मसलन सोनी ने एलजीए इंडियन ऑयडल के साथ नया प्रयोग शुरू किया है।
एक बात तो तय है कि नए साल में मनोरंजन चैनलों में ज्यादा निवेश नहीं होगा। यानी कम निवेश में बेहतर कमाई के मॉडल पर तवाो दी जाएगी। इन चैनलों का कंटेट तैयार करने वालों के सामने चुनौती होगी बेहतर कार्यक्रमों को बनाने की।
सोनी के मार्केटिंग हेड दानिश खान कहते हैं, ‘नए साल में हमारे शो में आशाएं और खुशियों को ही थीम बनाया जाएगा। अब हम अपने कार्यक्रम में युवाओं के लिए कुछ खास करने की कोशिश करेंगे। नए साल में हम नयापन, गुणवत्ता और वेरायटी पर बहुत जोर देंगे।’
छोटे चैनलों की मुश्किलें
विज्ञापनदाता उन्हीं चैनल को अपना विज्ञापन देना पसंद करेंगे जिन चैनलों की रेटिंग में ज्यादा अस्थिरता नहीं होती। छोटे चैनलों को नए साल में मुश्किलें झेलनी पड़ सकती है क्योंकि विज्ञापन दाताओं की नजर-ए-इनायत छोटे चैनलों पर शायद नही होगी।
मनोरंजन चैनलों में भी लागत में कमी लाने की कवायद शुरू हो चुकी है। हालांकि इस इंडस्ट्री से जुड़े लोग इसे अस्थायी दौर ही मानते हैं। जीटीवी के बिजनेस हेड तरुण मेहता का मानना है कि नए साल में सभी चैनल अपने कंटेट को बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे।
दर्शकों की पसंद हर रोज बदल रही है तो चुनौतियां बरकरार रहेंगी हीं। पिछले साल अमेरिका के बड़े मीडिया गु्रप वायाकॉम और नेटवर्क 18 की साझेदारी रंग लाई और कलर्स चैनल लॉन्च किया गया। इस चैनल ने बहुत जल्दी अपनी पहचान बनाई। इस साल नए विदेशी खिलाड़ी छोटे पर्दे पर निवेश करने में थोड़ी सतर्कता बरतेंगे।
नई बयार, मनोरंजन की
कई चैनल नए साल में नए शो और सीरियल भी लाने जा रहे हैं। जीटीवी ने ‘छोटी-बहू’ लॉन्च किया है और अब वह एक रियलिटी शो, ‘डांस इंडिया डांस’ एक थ्रिलर, ‘मोनिका मोगरी’ और ‘मां’ भी लॉन्च करेगी। वहीं सोनी भी ‘झलक दिखला जा’ फरवरी में पेश करेगी।
जी टीवी के बिजनेस हेड तरुण मेहरा कहते हैं, ‘एक-डेढ साल में कई मनोरंजन चैनल लॉन्च हुए हैं। ऐसे में निश्चित तौर पर चुनौतियां बहुत ज्यादा हैं इस वक्त क्योंकि दर्शक भी हर चैनल को परखने के बाद अपने पसंदीदा चैनल को ही देखना चाहेगा।’
मनोरंजन चैनलों के लिए विदेशी पूंजी निवेश के बाबत तरुण का कहना है कि इसकी उम्मीद बहुत कम है। लेकिन वे अगले साल मनोरंजन चैनलों के लिए सकारात्मक नतीजे की उम्मीद ही रखते हैं।
सब टीवी के बिजनेस हेड अनुज कपूर कहते हैं, ‘मंदी का मुकाबला करने के लिए सभी चैनल तैयार हैं। हम भी नए साल के लिए दर्शकों के मनोरंजन के लिए नए प्रोग्राम लेकर आ रहे हैं।
हम अपने सीरियलों में इसका खास ख्याल रखेंगे कि इसे परिवार के सभी लोग साथ बैठ कर देखें। इसके लिए हम पारिवारिक कॉमेडी भी पेश करेेंगे जिसमें महिला किरदार होंगी। हम हॉस्पिटल कॉमेडी, कोर्ट रूम कॉमेडी, हॉरर कॉमेडी भी नए साल के लिए बना रहें हैं।’
टेलीविजन से जुड़े कर्मचारियों की हड़ताल ने पिछले साल के आखिरी महीनों के दौरान मनोरंजन चैनलों की मुश्किलें बहुत ज्यादा बढ़ा दी थीं। दानिश खान यह उम्मीद करते हैं कि नए साल टीवी प्रोडक्शन से जुड़े कर्मचारी असंतोष की वजह से हड़ताल नहीं करेंगे।
रेडियो का जलवा
नया साल रेडियो इंडस्ट्री के लिए भी खुशनुमा हो सकता है। प्राइवेट एफएम चैनलों को उम्मीद है कि समाचार, खेल और समसामयिक खबरों के प्रसारण की इजाजत मिलने पर नया साल उनके लिए खुशनुमा हो सकता है।
टेलीविजन पर खबरों के प्रसारण के लिए नियमन के लिए कोई कदम उठाए जाएं तो प्राइवेट चैनलों की अहमियत ज्यादा बढ़ सकती है। कुछ ऐसी ही उम्मीद इस साल भी प्राइवेट एफएम चैनल जरूर करेंगे। रेडियो चैनलों से जुड़े खर्चो में भी बढ़ोतरी होने की संभावना है।
मंदी की वजह से एक नया ट्रेंड शुरू हो सकता है रेडियो इंडस्ट्री में। संभव है कि प्राइवेट एफएम चैनलों से जुड़े कई बड़े खिलाड़ी छोटे चैनलों का अधिग्रहण करें और बिक्री के लिए एक रणनीतिक गठजोड़ भी कायम करें।
रेडियो सिटीकी सीईओ और एआरओआई की अध्यक्ष अपूर्वा पुरोहित का कहना है, ‘मुझे लगता है कि 2009 किसी भी इंडस्ट्री के लिए थोड़ा दिक्कत भरा होगा। इस वक्त कुछ भी कहना मुमकिन नहीं है।
अगर सरकार की ओर से योजनाओं के लिए पहल की जाती है और अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधरती है तब कुछ सकारात्मक स्थिति बन सकती है। हमें लगता है कि अप्रैल तक स्थिति में सुधार होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमें शायद मंदी से उबरने में काफी वक्त लग जाए।’
हालांकि रेडियो मिर्ची के सीईओ प्रशांत पांडेय का मानना है कि जनवरी, फरवरी और मार्च का महीना अच्छा नहीं साबित होगा लेकिन अप्रैल से स्थितियां काबू में होंगी।
अगर सरकार ने एफएम चैनलों के तीसरे चरण के विस्तार के लिए नए साल में कोई फैसला लिया तो संभव है कि चैनलों के मालिकों के पास एक से ज्यादा फ्रीक्वेंसी पर अपने श्रोताओं का मनोरंजन करने का विकल्प मौजूद होगा।
रेडियो मिर्ची के सीईओ प्रशांत पांडेय का कहना है, ‘नए साल में नए मौके के लिए हम इंतजार कर रहे हैं। अप्रैल और मई में पॉलिटिकल विज्ञापन मिलने की संभावना है तो वह वक्त हमारे लिए अच्छा साबित हो सकता है।
हमारे सामने कई चुनौतियां भी यकीनन होंगी। जितने भी प्राइवेट एफएम चैनल हैं उनको केवल मेट्रो शहरों में ही फायदा होता है।
छोटे शहरों में उन्हें अपने चैनल चलाने में नुकसान ही हो रहा है। इसकी वजह यह है कि हर जगह के लिए समान म्यूजिक रॉयल्टी देनी पड़ रही है।’
रॉयल्टी के लिए एफएम चैनलों की तकरार म्यूजिक कंपनियों से नए साल में भी बरकरार रहेगी। एफएम चैनलों का अगर विस्तार होता है तो दर्शक भी किसी खास चैनल के बजाय अपने क्षेत्र के चैनलों से खुद को जोड़ सकते हैं।
विज्ञापनदाताओं का रुझान भी रेडियो चैनलों के प्रति निश्चित तौर पर बढ़ेगा क्योंकि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक के बजाय यह माध्यम उन्हें ज्यादा बेहतर लगेगा।
अपूर्वा पूरोहित का कहना है, ‘मुझे लगता है कि रेडियो सिटी के लिए ही नहीं बल्कि पूरे रेडियो इंडस्ट्री के लिए बेहतर संदेश होगा कि लोग इस माध्यम को अब पूरी गंभीरता से लेने लगे हैं और किसी ब्रांड की स्थानीय मार्केटिंग की रणनीति के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि विज्ञापनदाताओं को नए साल में रेडियो बिल्कुल निराश नहीं करेगा।’
मंदी का असर एफएम की जॉब वैकेंसी पर कितना पड़ रहा है, इस बाबत फीवर की एचआर प्रमुख पूजा शर्मा का कहना है, ‘यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां बेहतर टैलेंट की हमेशा ही मांग रहती है। ऐसे में हम बेहतर लोगों की तलाश में तो हमेशा ही रहते हैं और मंदी की वजह से भी हम ऐसे कलाकारों के वेतन में कटौती नहीं कर सकते। दरअसल यही कलाकार हमारे मुनाफे की मुख्य वजह होते हैं।’
नई धुनों की झनकार
जमाने की रफ्तार के साथ ही नई धुनों और नई आवाजों से लैस होगा नया साल। लेकिन चुनौतियां तो फिर भी कायम ही रहेंगी।
बेहद मशहूर गायिका आशा भोंसले का कहना है, ‘नए साल पर एक सवाल जेहन में जरूर उभरता है कि फिल्मों में संगीत की जो खास अहमियत पहले थी क्या वह बरकरार नहीं रहेगी? आज संगीत में बहुत शोर और धूम-धड़ाका सुनाई देता है। मैं तो बस यही सोचती हूं कि क्या यही सब चलता रहेगा?’
बॉलीवुड के मशहूर सिंगर अभिजीत कहते हैं, ‘मुझे तो लगता है कि नए साल में भी संगीतकारों की मुश्किलें बढ़ेंगी। आजकल म्यूजिक इंडस्ट्री जैसी कोई चीज रह नहीं गई है। अब कारोबार के नाम पर कोई चीज नहीं होती। म्यूजिक इंडस्ट्री का घाटा बढ़ता ही जा रहा है। कोरस सिंगर के पास कोई काम नहीं है।
कई रिकॉर्डिंग स्टूडियो बंद हो चुके हैं। आजकल हर गाने का बहुत ज्यादा प्रोमोशन कर दिया जाता है। लोग उस गाने को बार-बार रेडियो और कॉलर टयून के जरिए सुनते रहते हैं इसलिए वह आकर्षण नहीं रह पाता है।’
हालांकि संगीत निर्देशक इस्माइल दरबार ऐसा मानते हैं कि 2009 में भी अच्छा संगीत सुनने को जरूर मिलेगा। लेकिन निर्माता और निर्देशकों को ऐसा लगता है कि हीरो-हीरोइन पर पैसे खर्च करना संगीत पर खर्च करने से ज्यादा जरूरी है।
आशा भोंसले का कहना है, ‘आज लोग डांस देखते हैं, कोई भी गाना नहीं सुनता। गाने के बोल और संगीत की धुनों में वह बात नजर नहीं आती। हालांकि कुछ संगीतकार और गीतकार हैं जो अच्छी धुनें और बोल तैयार करते हैं। आज तो एक गाना बेहद हिट होना अपने आप में एक बड़ी बात बन गई है।’
वहीं मशहूर गायक दलेर मेहंदी का कहना है कि नए साल में भी पंजाबी म्यूजिक का जोर बढ़ेगा। लेकिन नए एलबम आने में बहुत दिक्कत होगी क्योंकि म्यूजिक कंपनियां अपना ही मुनाफा देखने की फिराक में होती हैं।