दूरसंचार विभाग ने स्पेक्ट्रम नीलामी शुरू करने से पहले प्रतिक्रियाएं आमंत्रित करने के लिए कैबिनेट प्रस्ताव जारी कर दिया है। विभाग ने इस नीलामी प्रस्ताव से 5जी स्पेक्ट्रम को बाहर रखा है। विभाग का मानना है कि समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) के भुगतान संकट से गुजर रहा दूरसंचार उद्योग इस समय उच्च तकनीक वाले इस स्पेक्ट्रम के लिए बोली लगाने में दिलचस्पी नहीं दिखा पा रहा है। इस बारे में एक अधिकारी ने कहा, ‘हमने स्पेक्ट्रम नीलामी प्रस्ताव में 5जी स्पेक्ट्रम को शामिल नहीं किया है। दूरसंचार कंपनियां इस समय नकदी संकट से गुजर रही हैं, इसलिए 5जी स्पेक्ट्रम के लिए वे बहुत अधिक दिचलस्पी नहीं दिखा सकती हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए हमने कैबिनेट नोट में 5जी स्पेक्ट्रम शामिल नहीं किया है।’
विभाग के इस प्रस्ताव में मोटे तौर पर वे स्पेक्ट्रम शामिल हैं, जिनकी लाइसेंस अवधि अगले कैलेंडर वर्ष में समाप्त हो रही है।
इस बार 700 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम की भी नीलामी की जाएगी। वर्ष 2016 में हुई नीलामी में इस स्पेक्ट्रम के लिए बोलियां नहीं आई थीं। 700 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम के लिए दूरसंचार नियामक एवं विकास प्राधिकरण (ट्राई) ने आधार मूल्य 6,568 करोड़ रुपये प्रति मेगाहट्र्ज रखा है। यह 2016 में रखे मूल्य 11,485 करोड़ रुपये से 43 प्रतिशत कम है। 4जी एलटीई नेटवर्क के लिए यह स्पेक्ट्रम सक्षम माना जाता है। अगस्त 2018 में ट्राई ने सुझाव दिया था कि 5जी तकनीक पर दूरसंचार सेवाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले 8,093 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम और अन्य बैंड की नीलामी 5.7 लाख करोड़ रुपये के शुरुआती मूल्य पर होनी चाहिए।
ट्राई ने कहा कि 3,300-3,600 मेगाहट्र्ज बैंक की नीलामी एक एकल बैंड के रूप में 20 मेगाहट्र्ज के ब्लॉक में 492 करोड़ रुपये (प्रति ब्लॉक) की दर से होनी चाहिए। बाजार में पहले से मौजूद दूरसंचार कंपनियों ने यह कीमत बहुत अधिक बताई थी और कहा था कि दक्षिण कोरिया, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम और इटली में हुई नीलामी में 5जी बैंड का औसत मूल्य 84 करोड़ रु पये प्रति मेगाहट्र्ज रखा गया था। 5जी स्पेक्ट्रम में भारतीय अंतरिक्षण अनुसंधान संगठन ने 5जी स्पेक्ट्रम में 25 मेगाहट्र्ज (3,400 से 3,425 मेगाहट्र्ज) सुरक्षित छोडऩे का आग्रह किया था। इसरो के अलावा रक्षा मंत्रालय के पास भी 5जी सपेक्ट्रम है और वह इससे छोडऩा नहींं चाहता है। अधिकारी ने कहा कि प्रस्तावित नीलामी में 5जी स्पेक्ट्रम शामिल नहीं करने की यह भी एक वजह है।
दूरंसचार उद्योग इस समय एजीआर भुगतान की चुनौती से जूझ रहा है। भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया जैसी बड़ी कंपनियां सरकार को एजीआर का भुगतान करने के लिए रकम का बंदोबस्त कर रही हैं। सरकार की गणना के अनुसार एजीआर मद में वोडाफोन आइडिया पर 53,000 करोड़ रुपये से अधिक और भारती एयरटेल पर 35,500 करोड़ रुपये बकाया हैं। इन दोनों कंपनियों ने एजीआर मद में आंशिक भुगतान किए हैं।
