देश में लैंडलाइन फोनों की संख्या लगातार घटती जा रही है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के मुताबिक, बेसिक फोनों की संख्या में सालाना 10 लाख की कमी हो रही है।
इससे परेशान दूरसंचार ऑपरेटरों ने जहां सरकार से मदद की गुहार लगाई है, वहीं लैंडलाइन उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए कई लुभावने ऑफर पेश किए हैं। ट्राई के मुताबिक, जनवरी में लैंडलाइन उपभोक्ताओं की संख्या 10 लाख घटकर 3.775 करोड़ रह गई है।
दूसरी ओर, मोबाइल फोनों का प्रसार 12 करोड़ सालाना की दर से हो रहा है। अकेले जनवरी 2009 में मोबाइल फोनों की संख्या में 1.54 करोड़ की वृद्धि हुई। इस बढ़ोतरी के चलते देश में मोबाइल फोनों की मौजूदा संख्या 36.2 करोड़ हो गई।
सूत्रों के मुताबिक, दूरसंचार क्षेत्र के बड़े खिलाड़ियों ने लैंडलाइन फोनों का विस्तार करने या इसकी संख्या में हो रही कमी थामने के लिए बड़ी योजनाएं लाने का विचार कर रही हैं। एमटीएनएल, बीएसएनएल और भारती एयरटेल ने ऐसी योजनाओं की शुरुआत भी कर दी है।
इससे पहले पिछले नवंबर में भारती एयरटेल के अध्यक्ष सुनील मित्तल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने वित्त मंत्री से मुलाकात की थी। इसने सरकार से मांग की थी कि लाइसेंस फीस, सेवा कर और यूनिवर्स सर्विस ऑब्लिगेशन फंड के भुगतान आदि को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए।
फिलहाल फिक्सड लाइन ऑपरेटरों को 6-10 फीसदी लाइसेंस फीस, 12.36 फीसदी सेवा कर और 5 फीसदी यूएसओ फंड में हिस्सेदारी देनी होती है। दूरसंचार कंपनियों का दावा है कि ये लैंडलाइन के अस्तित्व के लिए रोड़ा हैं। मित्तल के मुताबिक, ‘लैंडलाइन फोन, ब्रॉडबैंड तकनीक की बुनियाद है। इस तरह यह सेवा ज्ञानवान समाज के लिए महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म हैं।
पूरी दुनिया में चाहे निजी क्षेत्र हों या सार्वजनिक क्षेत्र इंटरनेट और ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए सबकी निर्भरता फोन पर ही है। इसलिए टेलीफोनों की घटती संख्या चिंता का सबब है। ऐसे में सरकार को कुछ करना चाहिए।’ लेकिन दूरसंचार ऑपरेटर हालांकि सरकार के जवाब की बहुत प्रतीक्षा करने के मूड में नहीं हैं।