वैश्विक मंदी के बावजूद भारतीय प्रबंधन संस्थान-अहमदाबाद (आईआईएम-ए) हाल ही में संपन्न हुए प्लेसमेंट सत्र के दौरान प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम (पीजीपी) और एग्री बिजनेस मैनेजमेंट (पीजीपी-एबीएम) के लगभग सभी छात्रों को नौकरी दिलाने में कामयाब रहा।
संस्थान के निदेशक समीर बरुआ का मानना है कि यह साल प्लेसमेंट के लिए 2001 के बाद से सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण रहा। उन्होंने इस संकटग्रस्त समय में प्लेसमेंट के दौरान संस्थान को सफलता दिलाने की अपनी रणनीति के बारे में हमारे संवाददाता मौलिक पाठक और विनय उमरजी से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
प्लेसमेंट के बाद आप तनावमुक्त महसूस कर रहे होंगे?
बिलकुल। हमें प्लेसमेंट पर मंदी का साया पड़ने की आशंका थी, लेकिन हम इसके लिए पूरी तरह से तैयार थे और यह ठीक तरीके से पूरा हो गया।
प्लेसमेंट प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए आपने क्या कदम उठाए?
आपको यह पता होगा कि हमारा ज्यादातर प्लेसमेंट फाइनैंस क्षेत्र से जुड़ा होता है जो वैश्विक मंदी से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती फाइनैंस की तुलना में अन्य क्षेत्रों की कंपनियों को आकर्षित करने की थी।
हमने यह मान कर अपनी रणनीति तैयार की थी कि इस साल और आगे भी फाइनैंस कंपनियां हमारे परिसर का दौरा नहीं कर सकती हैं या फिर ज्यादा अहम भूमिका नहीं निभा सकती हैं। इस साल का प्लेसमेंट 2001 की विफलता के बाद से सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण बना हुआ था। हालांकि इस बार बीपीसीएल, आईओसी और गेल जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने भी प्लेसमेंट में दिलचस्पी दिखाई।
क्या सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) के साथ काम करना चुनौतीपूर्ण नहीं होगा?
पीएसयू तीन साल, पांच साल या इससे अधिक समय के लिए संविदात्मक नियुक्तियों में दिलचस्पी दिखा रही हैं। अगर यह प्रयोग सफल रहता है तो इससे नई संभावनाएं पैदा हो सकती हैं।
क्या मंदी की वजह से छात्र इस प्रयोग को अपना सकते हैं?
शुरू में विदेशी नौकरियों के प्रति जबरदस्त क्रेज था। यह रिस्क रिवार्ड रेशियो का प्रश्न है जिसमें अब बदलाव आया है। पहले की तुलना में अब यह रुझान पीएसयू जैसी घरेलू कंपनियों के प्रति बढ़ा है। यह चलन अगले दो साल या इससे भी अधिक समय के लिए जारी रहने की संभावना है।
कुछ वर्षों में आईआईएम-ए ने कई उद्यमी पैदा किए हैं। ये उद्यमी छात्रों को नौकरी देने में कितने सफल रहे हैं?
मैं इस बारे में तुरंत कोई आंकड़ा नहीं दे सकता हूं, लेकिन आईआईएम-ए से निकले उद्यमियों द्वारा हमारे छात्रों को नौकरी मुहैया कराने की दर उत्साहजनक नहीं है। शायद उनके द्वारा पैकेज की पेशकश पर्याप्त नहीं है। हालांकि आईआईएम-ए से निकले कई उद्यमी विभिन्न कंपनियों की तरफ से भर्ती कर रहे हैं।
अगले साल आप किन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रहे हैं?
हमारा मुख्य फोकस इन्फ्रास्ट्रक्चर विस्तार पर केंद्रित होगा। इस साल हम 7 फीसदी के ओबीसी कोटा में विस्तार कर 13 फीसदी करेंगे और अगले साल हम इसे बढ़ा कर 27 फीसदी कर देंगे।
नॉलेज क्रिएशन यानी ज्ञान सृजन के तहत हमने वेब पर केस स्टडीज के जरिये कुछ शुरुआती कदम उठाए हैं। हम बेहद अहम तरीके से केस स्टडी का संपादन कर रहे हैं और उन्हें समरूप बनाने के बाद वेब पर डाल रहे हैं। हमें उम्मीद है कि इस साल मई-जून तक हमारे केस स्टडीज की संख्या लगभग 400 हो जाएगी।
क्या संस्थान को वित्तीय संकट से जूझना पड़ रहा है?
हां, हमने 54 करोड़ रुपये के एक कोष के लिए सरकार से अनुरोध किया था, लेकिन सरकार ने हमें महज 34 करोड़ रुपये ही दिए हैं। हमें कोष का अभाव झेलना पड़ रहा है। 2001 में हमारे पास लगभग 170 करोड़ रुपये की रकम थी जो अब घट कर करीब 50 करोड़ रुपये रह गई है। यह बताना भी बेहद मुश्किल है कि हम कब ब्रेक ईवन (न लाभ और न ही नुकसान) की स्थिति में आएंगे।
छठे वेतन आयोग के तहत अब 7-8 करोड़ रुपये सालाना का बोझ हमारे सिर पर है, क्योंकि हमें सेवानिवृति लाभ के तौर पर भारी-भरकम रकम का 2006 से ही एरियर के रूप में भुगतान करना पड़ेगा। मौजूदा समय में हम 7-8 करोड़ रुपये के घाटे में चल रहे हैं। हमें राजस्व में लगातार गिरावट का सामना करना पड़ रहा है और खर्च में इजाफा हो रहा है। अगले दो साल हमारे लिए बेहद मुश्किल भरे होंगे।
फैकल्टी के अभाव को दूर करने के लिए आप क्या कदम उठा रहे हैं?
हमने पिछले 15 महीनों में लगभग 10 फैकल्टी यानी संकाय सदस्य जोड़े हैं और मौजूदा समय में हमारे 91 संकाय सदस्य हैं। 2011 तक हमारे पास सभी पांचों प्रशिक्षण कार्यक्रमों के 1100 छात्रों के लिए लगभग 110 संकाय सदस्य हो जाएंगे। गैर-शिक्षण स्टाफ की बात करें तो हमारे संस्थान में इनकी तादाद अच्छी है। हमारे पास लगभग 320 गैर-शिक्षण कर्मचारी हैं और हमने फिलहाल इस संख्या में इजाफा करने की योजना नहीं बनाई है।
