हिंदुस्तानी लोगों का फिल्मी शौक तो जगजाहिर है। दौड़ती-भागती जिंदगी में लोगों के पास कम ही वक्त होता है थियेटर में जाकर फिल्म देखने का और वह भी तब, जब सवाल हो अपनी मनपसंद फिल्म देखने का।
फिल्मों के दीवानों ने वीसीडी और डीवीडी के जरिये इसका तोड़ भी निकाल लिया। आस पड़ोस की छोटी-बड़ी दुकानों से फिल्म की वीसीडी या डीवीडी किराये पर लाकर देखना बड़ी-बड़ी कंपनियों को नागवार गुजर रहा है।
भला ये कंपनियां तेजी से बढ़ते इस कारोबार को कैसे नजरअंदाज कर सकती हैं? एक अनुमान के मुताबिक जल्द ही देश में 5 करोड़ डीवीडी प्लेयर हो जाएंगे। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कारोबार कितनी तेजी से बढ़ रहा है।
बढ़ता निवेश, मिलते हाथ
शुरू में छोटी-छोटी कंपनियों ने इस धंधे में हाथ आजमाया। इनमें दिल्ली की मैडहाउस मीडिया और बेंगलुरु की सेवेंटी एमएम जैसी कंपनियां शामिल हैं। मैडहाउस मीडिया ने पहले दिल्ली एनसीआर, चंडीगढ़, मोहाली और पंजाब में अपनी जड़ें जमाने की पहल की। वहीं सेवेंटी एमएम का मकसद दक्षिण के बाजार में पैठ बनाना था।
इसी वर्ष मैट्रिक्स पार्टनर्स ने सेवेंटी एमएम में तकरीबन 28 करोड़ रुपये का निवेश किया वहीं जून के पहले हफ्ते में मैडहाउस मीडिया में लगभग 1.05 करोड़ रुपये का निवेश दिल्ली और मुंबई के एंजेल इनवेस्टर्स ने किया। लेकिन फिर यह भी खबर आई कि सेवेंटी एमएम ने मैडहाउस मीडिया का अधिग्रहण कर लिया। बाजार के जानकारों का इस अधिग्रहण के बारे में कहना था कि बड़े खिलाड़ियों से मुकाबला करने के लिए इन कंपनियों को यह कदम तो बाद में उठाना पड़ता, बेहतर है कि दोनों कंपनियों ने वक्त की नजाकत को पहचानते हुए पहले ही इस काम को अंजाम दे दिया।
बड़े खिलाड़ी दे रहे हैं दस्तक
छोटी कंपनियों को मुनाफा बनाते देख अब बड़े सूरमा भी इस जंग में उतरने की तैयारी कर चुके हैं। रिलायंस एडीएजी समूह की बिग फ्लिक्स बाजार में दस्तक दे चुकी है। वहीं मनोरंजन क्षेत्र की एक और महारथी कंपनी निंबस कम्युनिकेशंस, ‘शो टाइम विद यू’ नाम से इस कारोबार में उतर चुकी है। शो टाइम विद यू के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर संजय शर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘यह कारोबार सालाना 30 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है और हम तेजी से बढ़ते इस कारोबार को बढ़िया तरीके से भुनाना चाहते हैं। इसके लिए कंपनी ने पूरी तैयारी भी की हुई है।
हम जल्द ही पूरे देश में फैलने की तैयारी कर चुके हैं। ‘ बिग फ्लिक्स 10 शहरों में अपने 80 स्टोर खोल चुकी है और उसकी योजना अगले तीन साल में 400 करोड़ रुपये के निवेश करके अपने स्टोरों की संख्या बढ़ाकर 500 तक करने की है। वहीं निंबस भी इसमें 150 करोड़ रुपये का निवेश कर रही है। वैसे इन बड़ी कंपनियों का गणित भी ऑप्टिकल डिस्क बनाने वाली कंपनी मोजर बेयर ने बिगाड़ रखा है जो 34 रुपये में फिल्म की डीवीडी मुहैया करा रही है।
ऐसे में ग्राहक डीवीडी किराये पर लेने की बजाय डीवीडी खरीदने को तरजीह देता है। इस बाबत दूसरी कंपनियों से जुड़े लोगों का कहना है कि मोजर बेयर सस्ते में डीवीडी उपलब्ध तो करा रही है लेकिन उनके पास लोगों को लुभा सकने वाले टाइटल ही नहीं हैं। वैसे संजय, मोजर बेयर की इस रणनीति से काफी प्रभावित हैं। उनका कहना है कि उनकी कंपनी इस रणनीति पर भी काम कर रही है।
कितने का है बाजार
एक अनुमान के मुताबिक 2010 तक किराये पर डीवीडी देने का कारोबार बढ़कर तकरीबन 96 अरब रुपये का हो जाएगा। इसका सीधा सा गणित भी है कि यदि 4-5 करोड़ ग्राहक हर महीने भी 200 रुपये का सबक्रिप्शन लेंगे तो अंदाजा लगाना बहुत आसान है कि इस बाजार में कितनी संभावनाएं हैं। शर्मा बताते हैं कि ऑनलाइन के बजाय ऑफलाइन यानी कि स्टोरों के जरिये इस कारोबार में बहुत तेजी आएगी। तभी तो सभी कंपनियों का जोर अधिक से अधिक स्टोर खोलने पर है।
उनके मुताबिक इसमें सफलता दो बातों पर निर्भर करेगी पहला तो यह कि आपका स्टोर रणनीतिक रूप से कितनी सही जगह पर है और दूसरा यह कि लॉजिस्टिक्स के लिए आपका चुनाव कितना सही है। अगर इन दोनों बातों पर ध्यान दिया जाए तो बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है। एक जानकार का मानना है कि यह बाजार बहुत प्रतिस्पर्द्धी होने जा रहा है और जिस कंपनी की भी बाजार में 15 से 20 फीसदी की हिस्सेदारी होगी वही बाजार की अगुवा होगी। छोटी कंपनियां भी बड़ी कंपनियों के सामने टिके रहने के लिए अपनी रणनीति दुरुस्त करने में लगी हैं।
मूवी रेंटल कंपनी ‘मूवीमार्ट’ के अध्यक्ष सुरेश मनसुखरमानी कहते हैं कि छोटी कंपनियां सही समय पर डिलिवरी और बढ़िया क्वालिटी की डीवीडी मुहैया कराकर ही ग्राहकों का दिल जीत सकती हैं। उनका कहना है कि लोगों को बढ़िया सर्विस चाहिए, नाम से उन्हें कोई लेना देना नहीं होता। दो साल तक दिल्ली में ही सीमित रहकर जुलाई में ही मूवीमार्ट ने अपने कदम फैलाए हैं।
मूवीमार्ट के पास तकरीबन 20,000 फिल्मों के टाइटल हैं। दूसरों की तरह उनको भी इस बाजार से बहुत उम्मीदें हैं। कुछ भी हो कंपनियों की इस होड़ में मनोरंजन की खुराक चाहने वाले ग्राहक किसी भी लिहाज से टोटे में नहीं रहेंगे क्योंकि छोटी हो या बड़ी सभी कंपनियों डोरे तो उन्हीं पर ही डालेंगी।