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इंटरनेट बंद करने के मामले में भारत शीर्ष पर

Last Updated- December 11, 2022 | 7:27 PM IST

भारत ने 2021 में इंटरनेट कनेक्शन 106 बार बंद किए गए या बाधित किए। भारत लगातार चौथे वर्ष इस सूची में शीर्ष पर बना हुआ है। यह खुलासा डिजिटल अधिकार हिमायती समूह एक्सेस नाउ की रिपोर्ट से हुआ है।
वर्ष 2021 में 34 देशों में कुल मिलाकर कम से कम 182 बार इंटरनेट जानबूझकर बंद किया गया। यह जानकारी एक्सेस नाउ की नई रिपोर्ट में दी गई है। संस्था की तरफ से डिजिटल अधिनायकवाद की वापसी  : 2021 में इंटरनेट शटडाउन नाम से गुरुवार को एक रिपोर्ट जारी की गई जिसमें पिछले एक साल में इंटरनेट शटडाउन से जुड़े आंकड़े, रुझानों और कहानियों के बारे में बताया गया है।    
रिपोर्ट के माध्यम से संस्था ने कहा है कि वैश्विक कोविड-19 महामारी के फैलने के बाद धीरे धीरे स्थिति सामान्य होने से 2021 में हमें इंटरनेट बंद होने की घटनाओं में नाटकीय तौर पर तेजी नजर आई। इस साल एक्सेस नाउ और कीपइटऑन पहल के गठजोड़ ने दुनिया भर के 34 देशों में कुल मिलाकर कम से कम 182 बार इंटरनेट बंद करने की घटनाएं दर्ज कीं। 2020 में यह आंकड़ा 29 देशों में कम से कम 159 का था। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 के मुकाबले वैश्विक तौर पर इंटरनेट बंद करने की 23 घटनाओं का इजाफा हुआ है। भारत के बाद 2021 में म्यांमार ने सबसे अधिक बार इंटरनेट बंद किए। म्यांमार में 15 बार इंटरनेट को बाधित किया गया जिसके बाद सूडान ओर ईरान का स्थान है जहां पर पांच-पांच बार इंटरनेट बंद किए गए। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पिछले पांच वर्ष के हमारे दस्तावेज से पता चलता है कि चुनाव, विरोध प्रदर्शन, तख्तापलट और हिंसात्मक अभियान जैसी देश की राजनीतिक परिस्थिति को प्रभावित करने वाली घटनाओं के दौरान अधिकारियों ने बढ़ चढ़कर इंटरनेट को बंद करने के निर्णय लिए।’ एक्सेस नाउ में कीपइटऑन अभियान के प्रबंधक फेलिशिया एंटोनियो ने कहा, ‘डिजिटल तानाशाही के इन शातिर हथियारों को 2021 में कम से कम 182 बार इस्तेमाल किया गया जिससे न केवल दैनिक जन जीवन बाधित हुआ बल्कि विरोध, युद्घ और चुनावों के दौरान महत्त्वपूर्ण क्षणों पर आघात किया गया। इसका मतलब है कि किसी नेता ने लोगों को बोलने के लिए सशक्त करने की बजाए 182 बार उन्हें जानबूझ कर चुप कराने का निर्णय लिया।’
सबसे बड़े अपराधी : भारत ने कम से कम 106 बार इंटरनेट बंद किए जिससे यह लगातार चौथे वर्ष दुनिया भर में इस मामले में अग्रणी अपराधी बन गया। म्यांमार ने कम से कम 15 बार और सूडान तथा ईरान ने कम से कम पांच पांच बार इंटरनेट बंद किए।
भारत की तरफ से जम्मू कश्मीर में कम से कम 85 बार इंटरनेट बंद किए गए जहां पर प्राधिकारी लगातार अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट बाधाओं को लागू कर रहे हैं जो काफी दिनों तक बना रहता है। संचार और सूचना तकनीक पर भारत की संसदीय स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें इंटरनेट को बंद करने की व्यवस्था का दुरुपयोग और अधिकारों तथा आजादी पर इसके असर करने का उल्लेख किया गया था। हालांकि इसमें पूरी तरह से उसके इस्तेमाल की निंदा नहीं की गई थी और यह रिपोर्ट इंटरनेट बंद करने के मामले में सबसे अहम बात का उल्लेख करने में विफल रही कि इसे कभी भी न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है।  एक्सेस नाउ में एशिया पैसिफिक पॉलिसी डायरेक्टर रमन जीत सिंह चीमा कहते हैं, ‘इंटरनेट को बंद करना कोई समाधान नहीं है। यह असंगत, सामूहिक दंड है जो मानवाधिकारों का हनन करता है और 21वीं सदी के समाज में अस्वीकार्य है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सभी के लिए इंटरनेट तक पहुंच मुहैया कराने की प्रतिबद्घता से ही सुरक्षित और मजबूत किया जा सकता है।’
संदर्भ और तर्क के बावजूद इंटरनेट को बंद किया जाना मानवाधिकारों पर हमला है। वैश्विक कोविड-19 ने केवल इंटरनेट से लोगों को काटने की गंभीरता को उभार कर सामने लाने का काम किया है जब इंटरनेट का इस्तेमाल शिक्षा, काम और बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच बनाने से लेकर सूचना प्राप्त करने, संस्कृति और मनोरंजन के साथ साथ दैनिक जीवन में आधारभूत संचार तक के लिए हो रहा है।

First Published - April 29, 2022 | 12:11 AM IST

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