दूरसंचार उपकरण बनाने वाली यूरोपीय कंपनियों के नेतृत्व में गैर-चीनी कंपनियों ने दूरसंचार विभाग से आग्रह किया कि स्थानीयकरण एवं मूल्यवद्र्धन की गणना करते समय सेवा लागत को भी उसमें शामिल किया जाए ताकि वे सार्वजनिक खरीद आदेश 2017 के संशोधित नियमों के तहत स्थानीय आपूर्तिकर्ता के तौर पर पात्र हो सकें। इस मामले में सरकार के निर्णय को काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि उसी के आधार पर यह तय होगा कि बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए 4जी गियर की आपूर्ति के लिए आगामी आशय पत्र (आरएफपी) में विदेशी गियर विनिर्माता भाग ले सकेंगे अथवा नहीं।
सरकारी दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल ने हाल में देसी कंपनियों के जबरदस्त विरोध के मद्देनजर अपने आरएफपी को रद्द करने के लिए मजबूर हुई थी। देसी कंपनियों ने बीएसएनएल पर खरीद नीति का उल्लंघन करने और विदेशी कंपनियों का पक्ष लेने का आरोप लगाया था। इस प्रकार की पहल से भविष्य में दूरसंचार उपकरणों के निविदाओं में शामिल होने के लिए विदेशी गियर विनिर्माताओं के लिए दरवाजे बंद भी कर सकती है अन्यथा उन्हें अपने उपकरणों में स्थानीयकरण को बढ़ाना होगा।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवद्र्धन विभाग (डीपीआईआईटी) द्वारा पिछले महीने जारी संशोधित दिशानिर्देश के तहत वर्ग-1 के स्थानीय आपूर्तिकर्ता के तौर वर्गीकृत होने के लिए कंपनियों को अपने उत्पाद में 50 फीसदी से अधिक स्थानीयकरण को सुनिश्चित करना होगा जो विदेशी कंपनियों के लिए आसान नहीं होगा। इसी प्रकार वर्ग-2 के स्थानीय आपूर्तिकर्ता के तौर पर वर्गीकृत होने के लिए कंपनियों को अपने उत्पाद में 20 फीसदी से अधिक लेकिन 50 फीसदी से कम स्थानीयकरण को सुनिश्चित करना आवश्यक होगा।
विदेशी दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि फिलहाल उनके पास मूल्यवद्र्धन का दायरा 12 फीसदी और 14 फीसदी (एरिक्सन और नोकिया जैसी कंपनियों के विनिर्माण संयंत्र भारत में हैं) के दायरे में है जिसकी गणना पुर्जों की कीमतों के आधार पर की गई है। लेकिन यदि इसमें सेवाओं की लागत को भी शामिल कर लिया गया तो यह आंकड़ा 20 फीसदी से अधिक हो जाएगा।
गियर बनाने वाली एक कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हम दूरसंचार विभाग से आग्रह कर रहे हैं कि उन्हें उपकरणों को स्थापित करने, रखरखाव एवं लॉजिस्टिक जैसी लागत पर भी गौर करना चाहिए क्योंकि मूल्यवद्र्धन के निर्धारण में पुर्जों के अलावा इस प्रकार की लागत भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। भारत में हमारी इस प्रकार की लगात उपकरण की कुल लागत का 10 से 20 फीसदी के दायरे में होती है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो देश में हमारी विनिर्माण इकाइयां होने के बावजूद हम स्थानीय आपूर्तिकर्ता के तौर पर पात्र नहीं होंगे।’
कंपनियों का कहना है कि यदि मोबाइल रेडियो बनाने के लिए आवश्यक उपकरण देश में भी उपलब्ध होने के बावजूद आयात किए जाते थे तो उन कंपनियों को बंद किया जाना चाहिए। लेकिन जहां तक चिपसेट का सवाल है तो वह रेडियो में इस्तेमाल होने वाला एक अहम उपकरण है और देश में उसका उत्पादन नहीं होता है। ऐसे में किसी तीसरे पक्ष के वेंडर के जरिये उसका आयात करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। कंपनियों ने कहा है कि इस प्रकार के तीसरे पक्ष के वेंडर पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता।
