मेटा के स्वामित्व वाले सोशल मीडिया मंच फेसबुक ने अपनी हालिया मासिक रिपोर्ट में बताया है कि मई महीने के दौरान भारत में 13 उल्लंघन श्रेणियों के तहत उसने करीब 1.75 करोड़ सामग्रियों (कंटेंट) के खिलाफ कार्रवाई की है। इसमें बताया गया कि जिन सामग्री के खिलाफ कार्रवाई की गई वे प्रताड़ित करने, दबाव बनाने, हिंसा या ग्राफिक सामग्री, वयस्क नग्नता एवं यौन गतिविधियां, बच्चों को खतरे में डालने, खतरनाक संगठनों और व्यक्तियों तथा स्पैम जैसी श्रेणियों में आती थीं। भारत के परिप्रेक्ष्य में मासिक रिपोर्ट में कहा गया कि फेसबुक ने एक मई से 31 मई, 2022 के बीच विभिन्न श्रेणियों के तहत 1.75 करोड़ सामग्रियों के खिलाफ कार्रवाई की है, वहीं मेटा के अन्य मंच इंस्टाग्राम ने समान अवधि के दौरान 12 श्रेणियों में करीब 41 लाख सामग्रियों के खिलाफ कार्रवाई की।
मेटा की इस रिपोर्ट में कहा गया, ‘कार्रवाई करने का मतलब है फेसबुक या इंस्टाग्राम से कोई सामग्री हटाना या ऐसी तस्वीरों और वीडियो को कवर करना और उनके साथ चेतावनी जोड़ना है जो कुछ लोगों को परेशान करने वाले लग सकते हैं। पिछले वर्ष मई माह में प्रभाव में आए नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के तहत 50 लाख से अधिक उपयोगकर्ताओं वाले बड़े डिजिटल मंचों को हर महीने अनुपालन रिपोर्ट प्रकाशित करना होती है जिनमें प्राप्त शिकायतों और की गई कार्रवाई की जानकारी हो। इसमें ऐसी सामग्री की भी जानकारी होती है जिसे हटाया गया या पहले से सक्रियता बरतते हुए जिसे रोका गया हो। ट्विटर इंडिया की पारदर्शिता रिपोर्ट जून, 2022 में बताया गया कि देश में 26 अप्रैल, 2022 से 25 मई, 2022 के बीच उसे 1,500 से अधिक शिकायतें मिलीं। इसमें कहा गया है कि दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर 46,500 से अधिक खातों को निलंबित किया गया।
सोशल मीडिया के अनिवार्य विनियमन की वकालत
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जे. बी. पारदीवाला ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों पर ‘व्यक्तिगत, एजेंडा संचालित हमलों’ के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ पार करने की प्रवृत्ति को ‘खतरनाक’ करार देते हुए रविवार को कहा कि देश में संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया को अनिवार्य रूप से विनियमित किया जाना जरूरी है।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में यह टिप्पणी की। उनका संदर्भ पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ भाजपा की निलंबित नेता नुपुर शर्मा की विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर अवकाशकालीन पीठ की कड़ी मौखिक टिप्पणियों पर हुए हंगामे से था। इस खंडपीठ में न्यायमूर्ति पारदीवाला वाला भी शामिल थे।