फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लेक्स मालिकों के बीच कमाई के बंटवारे को लेकर छिड़ी जंग शांत होने का नाम नहीं ले रही है।
फिल्म निर्माता इसे इंसाफ की लड़ाई बता रहे हैं तो मल्टीप्लेक्स मालिक कह रहे हैं कि हिस्सेदारी देना संभव नहीं। नतीजा यह है कि मल्टीप्लेक्स खाली हैं और वहां कार्यरत कर्मचारियों की नौकरियों पर तलवार लटकी हुई हैं। सुशील मिश्र और अरुण यादव की रिपोर्ट…..
फिल्मों की कमाई के बंटवारे को लेकर फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लेक्स सिनेमा मालिकों के बीच चल रही खींचतान से अभी तक फिल्म इंडस्ट्री को लगभग 200 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
यह विवाद और बढ़ा तो नुकसान 500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो सकता है। विवाद से नुकसान सभी का हो रहा है। बावजूद विवाद हल करने के मामले में निर्माता-निर्देशक और मल्टीप्लेक्स मालिक गेंद एक दूसरे के पाले में डाल रहे हैं।
दोनों पक्ष समझौता कम और एक दूसरे को झुकाने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। फिल्म निर्माताओं का कहना है कि घाटे के चलते फिल्म इडस्ट्री ही बंद हो जाएगी तो मल्टीप्लेक्स दिखाएंगे क्या? मल्टीप्लेक्स मालिकों का कहना है कि हम सुविधाएं नहीं देगें तो दर्शक फिल्म देखने आएंगे ही नहीं तो फिर फिल्में बनेंगी किसके लिए?
फिल्मों से होने वाली कमाई के बंटवारे का विवाद काफी लम्बे समय से चला आ रहा था। दिन प्रति दिन मामला सुलझने की जगह उलझता चला गया और अंत में चार अप्रैल से निर्माता-वितरक 50 फीसदी हिस्सेदारी की मांग को लेकर हड़ताल पर चले गए। फिल्म निर्माताओं का कहना है कि फिल्में बनाने के बावजूद उनकी कमाई बड़े सिनेमा मालिकों से कम ही होती है।
दरअसल मल्टीप्लेक्स सिनेमा मालिक टिकट बिक्री से होने वाली कमाई का 33 फीसदी हिस्सा फिल्म निर्माताओं को देते हैं, बाकी अपने पास रख लेते हैं। बंटवारे की यह हिस्सेदारी कम ज्यादा होती रहती है। बड़े बजट और बड़े स्टार वाली फिल्मों के निर्माताओं को मल्टीप्लेक्स ज्यादा हिस्सेदारी देते हैं जबकि कम बजट और छोटे स्टार वालों को कम हिस्सेदारी दी जाती रही है।
बस, इसी बात पर फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लेक्स मालिकों के बीच ठन गई। निर्माता चाहते हैं कि सभी फिल्मों के लिए हिस्सेदारी आधी-आधी की जाए यानी विवाद की मुख्य जड़ मुनाफे का बंटवारा है। फिल्म निर्माता निर्देशक महेश भट्ट कहते हैं कि हालात दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
हम दो महीने पहले से इस बारे में मल्टीप्लेक्स मालिकों से बात कर रहे थे लेकिन कोई हल न निकलने पर हड़ताल का सहारा लेना पड़ा है और अब मामला इतना आगे बढ़ चुका है कि कमाई में 50-50 फीसदी हिस्सेदारी के नीचे आने की बात नहीं हो सकती है क्योंकि यह मामला सिर्फ मुनाफे का नहीं, बल्कि इंसाफ और हमारी इज्जत का भी है।
महेश भट्ट के अनुसार फिल्म लॉचिंग के समय मल्टीप्लेक्स मालिक हिस्सेदारी देने के मामले में मोलभाव करते हैं और वे ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी अपने पास रखना चाहते है। कम बजट की फिल्मों को प्रदर्शित कराने के लिए निर्माताओं को मल्टीप्लेक्स संचालकों के आगे पीछे घूमना पड़ता है। वे इन फिल्मों के निर्माताओं को 20-30 फीसदी हिस्सेदारी ही देना चाहते है।
फिल्म निर्माता-निर्देशक सुभाष घई कहते हैं कि कम बजट की बनी फिल्म का क्रेज भले ही ज्यादा हो लेकिन मल्टीप्लेक्स समूहों से महज 20-25 फीसदी ही हिस्सेदारी मिलती है और दूसरी ओर मल्टीप्लेक्स संचालकों को इन फिल्मों से 80 फीसदी तक हिस्सेदारी मिल जाती है जो सरासर गलत है।
कमाई के बंटवारे के मामले में फन सिनेमाज के सीओओ विशाल कपूर कहते हैं कि 50 फीसदी हिस्सेदारी देने का तो सवाल ही नहीं उठता है क्योंकि फिल्मों को चलाने के लिए खर्च तो हमें ही करना पड़ता है। इसके बावजूद हमने सुझाव दिया है कि परफॉरमेंस के आधार पर कमाई का बंटवारा किया जा सकता है क्योंकि कोई भी फिल्म पूरे सप्ताह हाउस फुल नहीं चलती है।
इसके अलावा आज कल जिस तरह कि फिल्में आ रही हैं, उनमें से एक दो को छोड़कर अधिकांश का प्रदर्शन सही नहीं रहता है जिसके लिए दर्शक थियेटर तक नहीं आ पाते हैं। कपूर के अनुसार दर्शक कम हों या ज्यादा, एक मल्टीप्लेक्स चलाने के लिए एक महीने में औसतन 30 से 60 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
दूसरी बात अगर हम दर्शकों को सुविधाएं नहीं देगें तो मल्टीप्लेक्स में वे फिल्म देखने आएंगे ही नहीं और अगर दर्शक ही नहीं होंगे तो फिल्में चलेगी कहां से? कपूर जोर देकर कहते हैं कि अगर कमाई का बंटवारा परफॉर्मेन्स आधारित होगा तो पारदर्शिता आएगी और फिल्मों की बेहतर गुणवता के लिए भी निर्माताओं पर दबाव रहेगा। इसका फायदा दर्शकों को भी मिलेगा क्योंकि उनको अच्छी फिल्में देखने का मौका मिलेगा।
विवाद जितना लंबा खींचता जाएगा, नुकसान भी उतना ज्यादा होगा। नुकसान किसी एक पक्ष को नहीं, बल्कि सभी को हो रहा है। यूनाइटेड प्रोडयूसर्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फोरम के अध्यक्ष फिल्म निर्माता मुकेश भट्ट कहते हैं कि हड़ताल पर जाने का फैसला इतना आसान नहीं था क्योंकि नुकसान सभी को हो रहा है। हड़ताल का फैसला मजबूरी में लेना पड़ा है।
इस विवाद के चलते अभी तक फिल्म निर्माताओं, वितरकों और प्रदर्शनकर्ताओं को 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है और विवाद थोड़ा और लंबा चला तो नुकसान 500 करोड़ रुपये तक का हो सकता है। मौजूदा गतिरोध, चुनावी माहौल और आईपीएल के चलते इस समय मल्टीप्लेक्स में महज 15 से 20 फीसदी ही दर्शक पहुंच पा रहे हैं जिससे मल्टीप्लेक्स मालिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
ताजा विवाद से जहां दोनों को नुकसान हो रहा है, वहीं कुछ फिल्मों को इसका फायदा भी मिला है। मराठी फिल्म मी शिवाजी राजे भोसले बोलतोय दर्शकों को अपने ओर खींचने में सफल रही है। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और अभिनेता महेश मांजरेकर कहते हैं कि यह सच है कि लोगों के पास विकल्प न होने से हमारी फिल्म का प्रर्दशन अच्छा रहा है लेकिन इस तरह का विवाद खिल्म उद्योग के लिए अच्छा नहीं है। इसे जल्द से जल्द खत्म होना चाहिए।
सवाल उठता है कि आखिरकार यह विवाद कैसे पैदा हुआ और यह कब सुलझेगा? दरअसल जब मल्टीप्लेक्स ट्रेंड शुरू हुआ, तब सिंगल स्क्रीन थियटरों की तरह यहां भी नई फिल्में साप्ताहिक दरों पर चलती थी। धीरे-धीरे शेयर सिस्टम का प्रचलन शुरू हो गया। फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्ज कहते हैं कि यह विवाद फिल्म निर्माताओं ने ही पैदा किया है।
शुरुआत में बड़े फिल्म निर्माताओं ने अपनी फिल्म हिट कराने के लिए हिस्सेदारी शुरू करवाई और इसके बाद धीरे धीरे मोलभाव शुरू हुआ। मल्टीप्लेक्स मालिकों ने मोलभाव की कला इन्ही लोगों से सीखी। इसीलिए कम बजट और छोटे बैनर की फिल्मों को कमाई में कम और बड़े बैनर की फिल्मों को ज्यादा हिस्सेदारी दी जाने लगी।
जब बात ज्यादा बढ़ गई तो निर्माता इंसाफ की लड़ाई बता रहे हैं। यह पूरा मामला कमाई का है। ब्रह्मात्ज के अनुसार मल्टीप्लेक्स मालिक 50 फीसदी की हिस्सेदारी तो देने वाले नहीं हैं। इसलिए यह विवाद चुनाव खत्म होने तक चलता रहेगा। चुनाव के बाद सरकारी हस्तक्षेप के बाद ही यह विवाद सुलझेगा क्योंकि मामला अब दोनों पक्षों के अहम का भी हो गया है।
