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रक्षा क्षेत्र में एफडीआई को लेकर निजी क्षेत्र में मतभेद

Last Updated- December 06, 2022 | 12:04 AM IST

रक्षा उपकरणों की खरीद में भारत 155 मिलीमीटर आर्टिलरी गन्स के अरबों डॉलर की खरीद की ओर बढ़ रहा है।


इस सौदे से भारतीय निजी रक्षा उद्योग के सामने 26 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रावधानों से चुनौती मिलने के आसार हैं। यह कानून वाणिज्य मंत्रालय ने 2001 में बनाया था।


महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स (एमडीएस) और दुनिया में हथियार की चौथी बड़ी कंपनी बीएई सिस्टम्स ने 21 अप्रैल को संयुक्त उपक्रम स्थापित करने के लिए विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड (एफआईपीबी) से अनुमति के लिए आवेदन किया था। इसमें बीएई सिस्टम्स की 49 प्रतिशत और एमडीएस की 51 प्रतिशत भागीदारी की बात कही गई है।


एमडीएस और बीएई के सूत्रों ने इस योजना की पुष्टि की है। इसमें फरीदाबाद के निकट बीएई सिस्टम्स के साथ बनी नई फैक्ट्री में 155 एमएम गन्स महत्वपूर्ण पुर्जे बनाए जाने की योजना है।बीएई सिस्टम्स अल्ट्रा लाइट 155 एमएम हावित्जर और एफएच-77बी बोफोर्स गन ऑफ कारगिल के लिए बोली में शामिल होने जा रहा है। अब इसका निर्माण बीएई सिस्टम्स करेगा।


अगर कंपनी को इसका कांट्रैक्ट मिलता है तो इससे कांट्रैक्ट के कुल मूल्य की 30 प्रतिशत हिस्सेदारी  नए संयुक्त उपक्रम को मिल जाएगी। बहरहाल दोनों कंपनियों का कहना है कि संयुक्त उपक्रम ऑफसेट्स के बारे में नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य भारत में मैन्युफैक्चरिंग हब का निर्माण करना है। यह यूके की बड़ी ग्लोबल सप्लाई चेन का हिस्सा होगी। बीएई सिस्टम्स के सूत्रों का कहना है कि उनकी हिस्सेदारी 49 प्रतिशत की भागीदारी की अनुमति पर निर्भर करेगी।


औद्योगिक नीति और प्रोत्साहन विभाग (डीआईपीपी) ने 2001 के प्रेस नोट संख्या 4 में रक्षा उपकरणों के उत्पादन के क्षेत्र में निजी उद्योगों के लिए 26 प्रतिशत भागीदारी का प्रावधान किया था। उसके बाद से ही विदेशी कंपनियां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाकर 49 प्रतिशत किए जाने की मांग कर रही हैं। उनका कहना है कि संयुक्त उपक्रम स्थापित करने में लाभ के साथ खतरे भी बहुत हैं, क्योंकि संवेदनशील तकनीकों के हस्तांतरण की गोपनीयता एक अहम मुद्दा है। 


रक्षा मंत्रालय, जो इस तरह की छूट दिए जाने में अहम भूमिका निभाता है, ने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा है कि अगर इससे भारत को बेहतरीन तकनीक मिलती है, तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई जा सकती है। रक्षा मंत्रालय ब्रम्होस की सफलता की कहानी दोहराना चाहता है, जिसमें भारत-रूस का 50-50 प्रतिशत का संयुक्त उपक्रम था। इस उपक्रम में दुनिया की अत्याधुनिक क्रूज मिसाइल तकनीक का प्रयोग किया गया था।


बुधवार को रक्षामंत्री एके एंटनी ने संसद में कहा ता कि सरकार रूस के साथ 50-50 प्रतिशत भागीदारी वाले एक और संयुक्त उपक्रम की प्रक्रिया में है, जिसमें मल्टी रोल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट का विकास किया जाएगा। इसके साथ ही एक इजराइली कंपनी के साथ भी 50-50 के संयुक्त उपक्रम की योजना भी प्रस्तावित है। इसमें अगली पीढ़ी के बराक मिसाइल के विकास की योजना है।


निजी भारतीय कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा, वर्तमान सीमा से बढ़ाए जाने का विरोध भी हो रहा है।  एलएंडटी और किर्लोस्कर जैसी कुछ बड़ी कंपनियां कानफेडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के साथ मिलकर लॉबी बनाने में जुटे हैं, जिससे रक्षा मंत्रालय को इस तरह की छूट देने से रोका जा सके। उनका तर्क है कि इस तरह के प्रोत्साहनों से भारतीय उद्योग विदेशी तकनीक का पिछलग्गू बनकर ही रह जाएगा।


खुद की तकनीक बहुत पीछे चली जाएगी। बहरहाल इस मुद्दे पर सीआईआई किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका है।  इस बीच निजी क्षेत्र के साथ संयुक्त उपक्रम स्थापित करने के लिए फ्रांसीसी कंपनी और रोल्टा लिमिटेड के साथ 5 करोड़ रुपये के उपक्रम के लिए छूट दी गई है। 

First Published - April 28, 2008 | 10:41 PM IST

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