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विदेशी सैलानियों की पसंदीदा धारावी

Last Updated- December 10, 2022 | 2:05 AM IST

मुंबई के धारावी इलाके के झुग्गी झोपड़ी वालों के जीवन पर आधारित फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर केसिने फेस्टिवल्स में छा जाने और चर्चाओं में आने केसाथ ही यहां विदेशी सैलानियों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है।
पिछले एक महीने के दौरान यहां आने वाले विदेशी सैलानियों की संख्या में लगभग 25 फीसदी का उछाल देखा गया है। जिसका फायदा यहां के लोगों को न होकर टूर्स एंड ट्रैवल्स उद्योग से जुड़े लोगों और होटल कारोबारियों को हो रहा है।
धारावी जैसे इलाकेमें कुछ महीने पहले दिन भर में मुश्किल से कोई विदेशी दिखाई पड़ता था, लेकिन इस समय दिन भर में लगभग 100 विदेशी सैलानी तो धारावी दर्शन कर ही लेते हैं। 

धारावी के लोगों का मानना है कि यह खुशी की बात जरूर है कि हमारे बच्चों के काम को सराहा गया है, लेकिन जिस तरह से हमारी गरीबी को बेचा जा रहा है, शायद वह सही नहीं है।
सड़क पर रहने वाले अनाथ और गरीब बच्चों के बेहतरी के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था प्रथम के सहायक निदेशक किशोर भांबरे का कहना है कि दरअसल ये फिल्म दुनिया के सामने भारत की नकारात्मक छवि पेश कर रही है।
सच्चाई से हम मुंह नहीं फेर रहे हैं, लेकिन भारत में सिर्फ भूखे नंगे लोग नहीं रहते हैं। लगभग 175 एकड़ में फैली धारावी में करीब 6 लाख लोग रहते हैं। इनमें से ज्यादातर छोटे-छोटे उद्योगों से जुड़े हुए लोग हैं।
धारावी के बारे में लोगों को सिर्फ इतना पता है कि यह गंदी और गरीब लोगों की बस्ती है जबकि ऐसा नहीं है। उनका कहना है धारावी आज लद्यु उद्योग नगरी है, जहां पर रोजाना करोड़ रुपये का कारोबार होता है।
देश के अंदर होने वाले जरी का सबसे ज्यादा काम धारावी में ही होता है। चमड़े से बनने वाला सामान मुंबई में सबसे ज्यादा धारावी में बनाया जाता है। बीड़ी, बच्चों के खिलौने, पैकिंग का सामान, बड़े-बड़े ब्रांडों के कपड़ों की सिलाई जैसे काम में आज धारावी नंबर वन है।
धारावी निवासी राजू के अनुसार धारावी से सालाना सरकार को करोड़ रुपये का टैक्स जाता है। यहां की जमीन पर आज दुनिया भर केभवन निर्माताओं की निगाहें लगी हुई हैं। तो सिर्फ यह बताना कि धारावी में भूखे लोग ही रहते हैं, सरासर गलत है।
दरअसल, आज से 10 साल पहले धारावी कुछ और थी और आज कुछ और है। पिछले 10 साल पहले धारावी का जो हाल था वही छवि दिखा कर कई बैर सरकारी संगठन सरकार और विदेशों से पैसा मांगते हैं, जिससे उनका कारोबार चलता है, जिससे वे अपना जीवन-यापन करते हैं।

First Published - February 23, 2009 | 10:33 PM IST

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