मल्टीप्लेक्स मालिकों और फिल्म निर्माता-वितरकों के बीच जारी गतिरोध के कारण हिंदी फिल्में मल्टीप्लेक्स में रिलीज नहीं हुई। इससे मराठी फिल्मों को मल्टीप्लेक्स में अच्छी ओपनिंग मिली।
मराठी फिल्म मी शिवाजी राजे भोसले बोलतोय दर्शकों को अपनी ओर खींचने में सफल रही। इससे कुछ हद तक मल्टीप्लेक्सों का घाटा नहीं बढ़ा। दूसरी ओर भोजपुरी फिल्मों के कारोबार में कोई सुधार नहीं हुआ। जबकि माना जा रहा था कि हिंदी फिल्मों के अभाव में भोजपुरी फिल्मों के दर्शकों में वृध्दि होगी।
क्षेत्रिय फिल्मों के दर्शक कम होने से मल्टीप्लेक्स मालिक हमेशा इन फिल्मों को अपने यहां प्रदर्शित करने में कतराते रहते हैं लेकिन हिंदी फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लेक्स मालिकों के बीच कमाई को लेकर जारी गतिरोध के कारण इन फिल्मों को मनचाहा स्लॉट मिल गया है।
इस बीच मी शिवाजी राजे भोसले बोलतेय, नऊ महीने नऊ दिवस, बोक्या सातबंडे जैसी मराठी फिल्में मल्टीप्लेक्स में न सिर्फ रिलीज हुई बल्कि मल्टीप्लेक्स मालिकों के लिए डूबते को तिनके का सहारा भी साबित हुई।
फन मल्टीप्लेक्स समूह के सीओओ विशाल कपूर कहते हैं कि हमारा 90 फीसदी कारोबार हिंदी फिल्मों से होता है। 10 फीसदी कारोबार मराठी, अंग्रेजी और दूसरी फिल्मों के सहारे होता है। लेकिन ये बात सही है कि इस गतिरोध के चलते मराठी फिल्मों को ज्यादा समय मिल जा रहा है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार के नियमों के अनुसार मल्टीप्लेक्स सिनेमा मालिकों को 52 सप्ताह (एक साल) में कम से कम 30 सप्ताह अपने किसी एक स्क्रीन पर मराठी फिल्म दिखाना अनिवार्य है पर सच्चाई यह है कि कानूनी दांव पेच से बचने के लिए मल्टीप्लेक्स में मराठी फिल्में प्रदर्शित तो होती हैं लेकिन उनको ऐसा समय दिया जाता है जब कम ही दर्शक थियेटर आते हैं।
मराठी फिल्मों के जाने माने निर्माता, निर्देशक एवं अभिनेता महेश मांजरेकर कहते हैं कि यह सच है कि इस समय मराठी फिल्मों ने अच्छा कारोबार किया क्योंकि लोगों के पास कोई विकल्प नहीं था। लेकिन इस तरह का विवाद सही नहीं है क्योंकि इससे सबका नुकसान होता है।
हिंदी के काफी करीब मानी जाने वाली भोजपुरी इस मौके को भुनाने में कामयाब नहीं हो सकी। ये रिश्ता अनमोल बा भोजपुरी फिल्म रिलीज तो हुई, पर दर्शकों को चुनावी समर से थियेटर तक खींच नहीं पाई। भोजपुरी फिल्म अभिनेता रवि किशन कहते हैं कि ये गतिरोध मल्टीप्लेक्स मालिकों के अहम का परिणाम है। निर्माताओं की बात एकदम सही है।
कुछ गिनी चुनी क्षेत्रीय फिल्मों को छोड़कर बाकी फिल्में मल्टीप्लेक्स में रिलीज नहीं हो पाती है। इसकी मुख्य वजह टिकट की ऊंची कीमत है। आम आदमी 100 रुपये तक तो दे सकता है लेकिन मल्टीप्लेक्स तो 200-250 रुपये में टिकट बेचते हैं। भोजपुरी फिल्मों के लिए तो मल्टीप्लेक्स सही ही नहीं है क्योंकि इतना महंगा टिकट देकर लोग फिल्म देखने आने वाले ही नहीं हैं।
