दूरसंचार विभाग देश भर में 1 लाख दूरसंचार टावरों को स्थापित करने के लिए भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के अनुबंध को विभाजित करने के विकल्प पर विचार कर रहा है। विभाग ने सुझाव दिया है कि बीएसएनएल को जनवरी में जारी अपने मौजूदा अभिरुचि पत्र के साथ आगे बढऩा चाहिए और आत्मनिर्भर भारत पर सरकार के जोर को देखते हुए 50,000 रेडियो ऐक्सेस नेटवर्क (आरएएन) की स्थापना को घरेलू वेंडरों के लिए विशेष तौर पर आरक्षित किया गया है।
दूरसंचार विभाग का कहना है कि बीएसएनएल को भी अपने सामान्य निविदा नियमों के तहत शेष आरएएन (50,000) के लिए निविदा जारी करने की समांनतर योजना बनानी चाहिए जो नोकिया और एरिक्सन जैसी वैश्विक दूरसंचार गियर विनिर्माताओं के लिए भी खुली होगी। एक अन्य विकल्प यह भी सुझाया गया है कि 4जी नेटवर्क स्थापित करने के लिए बीएसएनएल के 5 जोन में से एक जोन को भारतीय कंपनियों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए। जबकि शेष जोन सामान्य खरीद नीति के तहत वैश्विक कंपनियों सहित अन्य कंपनियों द्वारा बोली लगाने के लिए खुले रहेंगे। लेकिन चीन की कंपनियों को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। भारत के सीमावर्ती देशों की कंपनियों को पहले पंजीकरण कराने की आवश्यकता होगी और उसके बाद उन्हें बोली लगाने की अनुमति दी जाएगी। बीएसएनएल के अनुबंध को विभाजित करने का सुझाव कंपनी के लिए बीच का रास्ता है क्योंकि सरकार चाहती है कि दूरसंचार गियर बनाने के लिए भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाए। दूरसंचार कंपनियां गियर की खरीद पर सालाना करीब 10 अरब डॉलर का खर्च करती हैं और इसमें से करीब 70 फीसदी दूरसंचार गियर का आयात किया जाता है। इससे पहले दूरसंचार गियर का पूरा अनुबंध किसी भारतीय कंपनी अथवा कंसोर्टियम को देने की योजना बनाई गई थी।
सरकार के इस प्रस्ताव पर बीएसएनएल ने चिंता जताई थी कि 4जी नेटवर्क स्थापित करने में पहले ही कई वर्षों की देरी हो चुकी है। यदि अब और हुई तो मोबाइल दूरसंचार की दौड़ में वह निजी कंपनियों से पिछड़ जाएगी और उसे ग्राहकों का बड़ा नुकसान होगा। इसका उद्देश्य तेजी से अनुबंध देना है। कंपनी ने देरी के कारण निजी कंपनियों से पिछडऩे के लिए सरकार से मुआवजे की मांग की थी जो सरकार ने निविदा रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया था।
