भारत-जापान गठजोड़ वैश्विक निवेशक सम्मेलन वाइब्रैंट गुजरात 2009के दौरान और भी पक्का हो रहा है। देश की सबसे पहली लखटकिया कार नैनो के गुजरात पहुंचने के बाद उम्मीद है कि एक और छोटी कार भी यहीं से देशभर में पहुंचेगी।
इंटरनेट रिसर्च इंस्टीटयूट इंक की योजना अपनी इलेक्ट्रिक कार के लिए भारत में विनिर्माण संयंत्र लगाने की है।
इस मामले से जुड़े उच्चे सूत्रों का कहना है कि इस सिलसिले में कंपनी ने आकलन भी शुरू कर दिया है। कई जापानी कंपनियां गुजरात में अपने निवेश की योजनाओं को अंतिम आकार दे सकती हैं।
सूत्रों का कहना है कि इस दौरान निसान, मित्सुबिशी हैवी इंडस्ट्रीज, मित्सुबिशी केमिकल्स भी राज्य में निवेश पर विचार कर रही हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि जहां टीमइंडियन ने देश में पांच सितारा होटल बनाने के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, वहीं बंदरगाह, ऊर्जा और इस्पात में दिलचस्पी रखने वाला मरुबेनी समूह राज्य में निवेश की तलाश में है।
उनका कहना है कि मित्सुबिशी केलिकल्स दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (डीएमआईसी) के अलावा राज्य में विभिन्न परियोजनाएं लगाने की तलाश में है। आईआरआई के प्रमुख अनुसंधानकर्ता एवं निर्माता एवं संस्थापक मुख्य कार्याधिकारी हिरोशी फुजीवारा वाइब्रैंट गुजरात सम्मेलन में मौजूद भी थे।
आईआरआई मुख्यतौर पर इंटरनेट रिसर्च कारोबार में है, हालांकि कुछ समय पहले ही यह इलेक्ट्रिक कार विनिर्माण के क्षेत्र में उतरी है।
फुजीवारा इंटरनेट प्रोटोकॉल के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार और उद्योग मंत्रालय के सदस्य हैं। सूत्रों का कहना है, ‘आईआरआई का विचार गुजरात में अपना दूसरा विनिर्माण संयंत्र लगाने का है।’
जापान की क्रिएटिव कंपनी लिमिटेड के परिचालन निदेशक गजेंद्र पंटवाणे का कहना है कि जापान में 2000 डॉलर कीमत के लिए नैनो खासी लोकप्रिय हो गई है। कंपनी ने अहमदाबाद नगर निगम के साथ बेकार की चीजों जैसे (अस्वीकृत कागज, प्लास्टिक, लकड़ी आदि) ईंधन बनाने की परियोजना के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस ईंधन का इस्तेमाल बिजली उत्पादन में कोयले की जगह पर किया जा सकेगा। इस परियोजना की शुरुआती लागत 110 करोड़ रुपये है जिसमें कामयाब होने के बाद कंपनी का लक्ष्य 700 करोड़ रुपये की लागत के साथ इस परियोजना में 6 से 7 शहरों को शामिल करने है।
गजेंद्र का कहना है, ‘ जहां कोयले से 2.409 प्रति टन कार्बन उत्सर्जन होता है, वहीं इस ईंधन से सिर्फ 0.896 कार्बन उत्सर्जन होगा। हर एक किलोग्राम कोयले से 19 से 22 एम जूल हासिल होता है, जबकि इस ईंधन से 26 एम जूल ऊर्जा प्राप्त होगी।’