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तिरुपुर निटवियर उद्योग को अमेरिकी ऑर्डर घटने से ₹2,000 करोड़ का नुकसान, सरकार से सहायता बढ़ाने की मांग

तिरुपुर का निटवियर उद्योग अमेरिकी ऑर्डर में कमी, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और भारी छूट के बावजूद निर्यात जारी रखते हुए सरकार से वित्तीय मदद मांग रहा है

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शाइन जेकब   
Last Updated- September 21, 2025 | 10:54 PM IST

तिरुपुर को भारत की निटवियर कैपिटल कहा जाता है, मगर कुछ लोग निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था के कारण इसे डॉलर टाउन भी कहते हैं। शहर के बीचों-बीच खादरपेट थोक परिधान बाजार है। यह बाजार इस निर्यात केंद्र के मिजाज का जीवंत रंगमंच है जो अक्सर वैश्विक भू-राजनीति की लहरों से प्रभावित होता रहता है।

बुनियादी तौर पर देखा जाए तो यह बाजार घरेलू उद्योग को आपूर्ति करने के बावजूद तिरुपुर में निर्यात विनिर्माण के माहौल का दर्पण है। खादरपेट की संकरी गलियों की दुकानों में रंगीन कपड़ों और निर्यात के बचे हुए उत्पादों की भरमार थी। कुछ दुकानों पर निर्यात का दावा करने वाले बोर्ड भी लगे दिखते थे, मगर अब वे सभी वीरान नजर आ रहे हैं। बाजार में हमेशा चहल-पहल रहती थी, मगर ऐसा लगता है कि व्यापारिक गतिविधियां अब शांत सी हो गई हैं। उसकी मुख्य वजह गर्मी के मौसम के लिए अमेरिका से मिलने वाले ऑर्डर में आई गिरावट है।

इस साल तिरुपुर के निर्यातकों को करीब 2,000 करोड़ रुपये राजस्व का नुकसान हो सकता है। यहां के निर्यातकों की कुल आय में अमेरिका का योगदान 15,000 करोड़ रुपये से अधिक का है। मगर आगामी सीजन के लिए निर्यात ऑर्डर में कमी, कुछ मामलों में 20-25 फीसदी अतिरिक्त कर को पूरा करने के लिए अमेरिकी खरीदारों को दी जाने वाली छूट में वृद्धि, घटती नौकरियां और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण माहौल काफी अनिश्चित दिख रहा है।

शहर के मध्य से करीब 2.5 किलोमीटर दूर पॉपीज निटवियर का कार्यालय है जिसकी स्थापना ए. शक्तिवेल ने की थी। शक्तिवेल को तिरुपुर का एक निर्यात अग्रदूत माना जाता है। साल 1990 में तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (टीईए) को शुरू करने के पीछे भी उन्हीं का दिमाग था। शक्तिवेल ने महज एक पंक्ति में इतिहास को बयां किया है। भगवान गणेश की कई मूर्तियों से घिरे अपने शक्ति नामक कमरे में बैठे शक्तिवेल कहते हैं, ‘तिरुपुर से हमारा निर्यात 1985 में करीब 15 करोड़ रुपये का था जो 1990 में बढ़कर 300 करोड़ रुपये का हो गया। अब साल 2025 में यह सालाना 44,000 करोड़ रुपये से अधिक हो रहा है। हमने खराब दौर भी देखा है। इनमें कोविड महामारी, कंटेनर की कमी, 2010 की शुरुआत में रंगाई इकाइयों का बंद होना और नोटबंदी आदि शामिल हैं। मगर यह मजबूत शहर अपने उत्पादों की गुणवत्ता के कारण वैश्विक बाजारों में टिका रहा।’ शक्तिवेल का आत्मविश्वास इस सप्ताह भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वार्ता के दोबारा शुरू होने से आया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा 50 फीसदी शुल्क लगाए जाने के बाद पहली बार द्विपक्षीय वार्ता सुचारु हुई है।

शक्तिवेल ने कहा कि उद्योग अभी भी अमेरिकी खरीदारों के साथ दीर्घकालिक संबंध बनाए रखने के लिए आपूर्ति कर रहा है और भारी छूट दे रहा है। उन्होंने कहा, ‘खरीदार शुल्क की पूरी भरपाई के लिए 15 से 20 फीसदी की भारी छूट की मांग कर रहे हैं। हमें बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से भी तगड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। मगर हम गर्मियों के ऑर्डर जारी रख रहे हैं, क्योंकि इन कंपनियों ने भी आपूर्ति श्रृंखला में भारी निवेश किया है।’ मगर जमीनी स्तर पर स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। शहर के कोंगु नगर में झारखंड सरकार एक प्रवासन सहायता केंद्र चलाती है। इस केंद्र की प्रबंधक मधु दूबे और रश्मि रेखा दास ने करीब 30 मिनट की बातचीत में अपने राज्य के मजदूरों को संबोधित करने के लिए केवल ‘बच्चे’ शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने प्रवासियों या श्रमिकों जैसे सामान्य शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।

दूबे ने कहा, ‘जब से अमेरिकी संकट शुरू हुआ है, हम झारखंड से हर महीने होने वाली नई भर्तियों में 50 से 60 फीसदी की भारी कमी देख रहे हैं। कुछ अमेरिकी कंपनियों में बच्चों को वेतन में कटौती का सामना करना पड़ रहा है।’ इस क्षेत्र में सामान्य तौर पर नौकरी छोड़ने की दर अधिक होने के बावजूद यह स्थिति है। करीब 7,00,000 लोग सीधे तौर पर इस क्षेत्र पर निर्भर हैं। इनमें से करीब 3,00,000 प्रवासी मजदूर ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों आते हैं। ये राज्य सहायता केंद्र नए श्रमिकों तब तक निःशुल्क रहने और खाने-पीने की सुविधा प्रदान करते हैं जब तक वे अपनी व्यवस्था खुद नहीं कर लेते। इसके अलावा ये केंद्र उन्हें वेतन संबंधी बातचीत करने में भी सहायता करते हैं।

सोशल मीडिया पर कुछ कंपनियों के भारी नुकसान की खबरें आ रही थीं। न्यू मैन एक्सपोर्ट्स के अरुण रामास्वामी की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। रामास्वामी ने कहा, ‘हमारे लगभग 4 करोड़ रुपये के खरीद ऑर्डर रोक दिए गए हैं। हम अपनी नौकरियां बचाने के लिए तीन-चार दिन ही फैक्टरी चला रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि दूसरे बाजारों में भी उनकी अच्छी पकड़ है और इसलिए यह चिंता थोड़े समय की है।

तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और केएम निटवियर के प्रवर्तक केएम सुब्रमण्यन ने कहा, ‘हमारी कुल 44,747 करोड़ रुपये की आय में अमेरिका का योगदान करीब 35 फीसदी या 15,000 करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक है। इसके लिए हम साल के तीन चक्रों में निर्यात करते हैं। गर्मी के मौसम के लिए करीब 6,000 करोड़ रुपये का माल स्टोर में मौजूद है और उद्योग को लगभग 2,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने की आशंका है। हमारे अधिकतर खरीदार भारी छूट पर ऑर्डर ले रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौता लागू हो जाने के बाद हमारी चिंताएं कुछ हद तक दूर हो सकती हैं। अमेरिका की जगह लेने के लिए हमें बाजारों में और अधिक विविधता लाने की जरूरत है। सुब्रमण्यन ने कहा कि ब्रिटेन के अलावा पश्चिम एशिया, न्यूजीलैंड और यूरोपीय संघ के देशों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

उद्योग संगठन ने वित्त मंत्रालय के साथ बैठक में सब्सिडी के अलावा एक केंद्रित बाजार-आधारित योजना तैयार करने, 5 फीसदी ब्याज सहायता योजना को बहाल करने और ऋण स्थगन अवधि को 90 दिनों से बढ़ाकर 180 दिन करने की मांग की है।

विघ्नेश्वर नगर के समीप एस्टी एक्सपोर्ट्स इंडिया के प्रवर्तक एन. तिरुकुमरन अमेरिकी संकट से उबरने के लिए बिल्कुल आश्वस्त दिखे। उन्होंने कहा, ‘उद्योग छूट देने की तैयारी कर रहा है और ऑर्डर जारी रख रहा है। हम चाहते हैं कि सरकार एफटीए और अल्पकालिक राजकोषीय सहायता में तेजी लाए। हमारे प्रतिस्पर्धी देश कथित तौर पर छूट के जरिये आक्रामक रुख दिखा रहे हैं।’ तमाम लोगों द्वारा दिखाए गए साहस के बावजूद तिरुपुर में उद्योग जगत के कुछ लोग चिंतित भी दिख रहे हैं। साउथ इंडिया होजरी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के एस बालचंद्र ने कहा, ‘हमारे होजरी बाजार पर अमेरिकी संकट का गहरा असर पड़ सकता है, क्योंकि हमारा 40 फीसदी निर्यात अमेरिका को होता है। ऐसे में अगर सरकार जल्द से जल्द कोई उपाय नहीं करेगी तो नौकरियों का भारी नुकसान हो सकता है।’

अविनाशी बाईपास के समीप बस स्टैंड जाते हुए एक कैब ड्राइवर ने कहा, ‘तिरुपुर फीनिक्स पक्षी जैसा है। इसने संकट का सबसे बुरा दौर भी देखा है, लेकिन हम वापसी करेंगे।’ उन्होंने यह भी कह दिया, ‘अब बिहार और ओडिशा से प्रवासी मजदूर बनकर आए लोग कारखाने खोल रहे हैं और तमिलों को रोजगार दे रहे हैं।’शायद शक्तिवेल ने बिल्कुल सही ही कहा था, ‘कल का मजदूर, आज का कारखाना मालिक है और वह कल का निर्यातक होगा।’

First Published : September 21, 2025 | 10:54 PM IST