देश के प्रमुख इस्पात विनिर्माताओं का मानना है कि इस्पात के दाम निचले स्तर तक जा चुके हैं, भले ही इस साल की शुरुआत से इनमें गिरावट आ रही है। स्टीलमिंट के आंकड़ों पता चलता है कि इस्पात की चादरों के बेंचमार्क हॉट रोल्ड कॉइल (एचआरसी) के औसत मासिक दाम इस साल मार्च में 60,260 रुपये प्रति टन (मुंबई से बाहर) थे, जबकि 27 जून तक औसत मासिक दाम 55,443 रुपये प्रति टन थे, जिसमें पिछले महीने के मुकाबले गिरावट आई। लेकिन कंपनियों का कहना है कि दामों में आगे गिरावट की संभावना नहीं है।
टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी टीवी नरेंद्रन ने कहा ‘मुझे लगता है कि दाम निचले स्तर तक जा चुके हैं।’ उन्होंने कहा कि लौह अयस्क और कोयले की मौजूदा कीमत स्तर पर वैश्विक स्तर पर अधिकांश स्टील कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ेगा।
नरेंद्रन ने यह भी बताया कि प्रमुख कच्चे माल – लौह अयस्क और कोकिंग कोयले के दाम पिछले कुछ दिनों में बढ़ने लगे हैं। जेएसडब्ल्यू स्टील और आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया (एएम/एनएस इंडिया) का भी यही मानना है कि दामों में और गिरावट के आसार नहीं है।
जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी जयंत आचार्य ने कहा कि दाम पहले ही कम हो चुके हैं। उन्होंने कहा ‘हमें लगता है कि ये निचले स्तर तक पहुंच चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पिछले कुछ सप्ताह में दामों में करीब 20 से 30 डॉलर प्रति टन तक की बढ़ोतरी हुई है।’
उन्होंने कहा, इसलिए अब दाम स्थिर हो चुके हैं। गिरावट रुक गई है। लंबे उत्पादों में भी यह गिरावट द्वितीयक क्षेत्र की क्षमता से कहीं अधिक रही है। स्टीलमिंट के आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी से लंबे उत्पादों में सरिये में गिरावट आ रही है।
एएम/एनएस इंडिया के मुख्य विपणन अधिकारी रंजन धर ने कहा कि वैश्विक बाजारों में पिछले तीन सप्ताह के घटनाक्रम से पता चलता है कि निचला स्तर आ चुका है। उन्होंने कहा ‘खास तौर पर चीनी के एचआरसी निर्यात की पेशकश, जो पहले 535 से 540 डॉलर प्रति टन (एफओबी) के दायरे में थी, अब बढ़कर 560 से 565 प्रति टन हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर संभावित उछाल का मुख्य कारक मांग में सुधार होगा। उन्होंने कहा कि सकारात्मक बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार और भारत दोनों में ही स्टॉक का स्तर काफी कम है, जो उद्योग के लिए अच्छा संकेत है। क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस ऐंड एनालिटिक्स के निदेशक (अनुसंधान) हेतल गांधी ने कहा कि इस्पात उत्पादन के संबंध में चीनी सरकार का अनुमान कीमतों के लिए महत्वपूर्ण होगा।
उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष की तुलना में कम इस्पात उत्पादन करने की चीन की सख्त नीति के मद्देनजर इस्पात मिलों को पिछले वर्ष के आंकड़े तक पहुंचने के लिए उत्पादन में मौजूदा स्तर से आठ से 10 प्रतिशत की कटौती करनी होगी। उत्पादन में कटौती और उसके बाद चीन से होने वाले निर्यात में कमी की वजह से दामों में धीरे-धीरे बढ़ोतरी होगी।