रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने शनिवार को नई दिल्ली में ब्लूप्रिंट पत्रिका के विमोचन पर भारत के रक्षा सुधारों, स्वदेशी तकनीक, स्टार्टअप समर्थन और महत्त्वपूर्ण खनिज रणनीति पर बात की। बिज़नेस स्टैंडर्ड के एके भट्टाचार्य के साथ उनकी बातचीत के प्रमुख अंशः
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में भारत ने कितनी प्रगति की?
भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में अच्छी प्रगति की है लेकिन अभी यह यात्रा जारी है। तोपखाना, बख्तरबंद वाहन, लंबी दूरी की मिसाइलें और मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर जैसे कई क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन बहुत उन्नत स्तर पर पहुंच गया है। सच्चे मायने में स्वदेशीकरण के लिए यह अहम होगा कि पूरा डिजाइन और बौद्धिक संपदा अधिकार देश में ही रहे। हालांकि, कुछ अत्याधुनिक तकनीक के क्षेत्र के लिए अब भी हमें तकनीकी हस्तांतरण के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। सरकार की कोशिश है कि घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाए लेकिन जहां जरूरी हो वहां विदेशी तकनीक का उपयोग किया जाए।
सरकार घरेलू उत्पादन और रणनीतिक आयात में संतुलन कैसे बना रही है?
हमारी नीति भारतीय कंपनियों और विदेशी तकनीकी साझेदार के बीच सहयोग को बढ़ावा देती है। घरेलू उत्पादन पर जोर देने के साथ-साथ, उन क्षेत्रों में आयात की भी अनुमति है जहां हमारे पास जरूरी तकनीकी क्षमता नहीं है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि देश की रक्षा जरूरतें पूरी की जा सकें और आत्मनिर्भरता का लक्ष्य भी बना रहे। सरकार, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की तकनीकों को घरेलू उत्पादनकर्ताओं को लाइसेंस देने पर रॉयल्टी शुल्क लेने पर भी विचार कर रही है।
निगमीकरण के बाद सार्वजनिक रक्षा कंपनियों का प्रदर्शन कैसा है?
भारत में 16 केंद्रीय रक्षा पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) हैं, जिनमें से 7 का निगमीकरण हो चुका है। इन कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्धी और कुशल बनाने के लिए कई सुधार किए गए हैं जिनमें अनापत्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता को खत्म करना भी शामिल है। हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास जमीन, तकनीक और पूर्व अनुबंधों तक पहुंच जैसे लाभ बरकरार हैं फिर भी अब वे निजी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के लिए सरकार का नजरिया कैसा है?
यह भारत के रक्षा अनुसंधान का केंद्र है। डीआरडीओ ने अच्छा काम किया है लेकिन परियोजनाओं को पूरा करने में लगने वाले समय में सुधार की जरूरत है। सरकार डीआरडीओ में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने पर विचार कर रही है ताकि तकनीकी मंच की उपलब्धता जल्द हो सके और निजी क्षेत्र की पहुंच प्रयोगशालाओं और जांच के बुनियादी ढांचे तक हो। क्षमता बढ़ाने के लिए लक्ष्य यह है कि निजी और सरकारी क्षेत्र मिलकर काम करें।
क्या खरीद प्रक्रिया में सुधार से व्यवस्था बेहतर हुई है?
रक्षा खरीद प्रक्रिया 2020 को इस साल के अंत तक संशोधित किया जाएगा। रक्षा खरीद नियमावली 2025 में भी सुधार किए गए हैं ताकि खरीद प्रक्रिया आसान बनाई जा सके। परीक्षण और अनुबंध की मंजूरी के समय को कम किया गया है और जवाबदेही पर जोर दिया गया है।
रक्षा स्टार्टअप तंत्र कैसे तैयार किया जा रहा है?
रक्षा ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां स्टार्टअप को मदद देने के लिए एक व्यवस्थित योजना है। सरकार देश में तैयार किए गए समाधानों के लिए 5 साल तक का ऑर्डर देने की योजना बना रही है ताकि उन्हें अपने उत्पादों को बेहतर बनाने का समय मिल सके। आई-डेक्स अदिति योजना के तहत स्टार्टअप को प्रोटोटाइप बनाने के लिए 25 करोड़ रुपये का फंड मिलता है, जिसे जल्द ही बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये किया जाएगा।
देश में रक्षा प्रौद्योगिकियों के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों की जरूरत कैसे पूरी की जा रही है?
सरकार ने एनसीएमएम 2025 की शुरुआत की है जिसके लिए महत्वपूर्ण खनिजों की नीलामी का पहला चरण पूरा हो चुका है और दूसरा चरण जारी है। रक्षा उत्पादन विभाग भी दुर्लभ खनिजों और धातुओं का राष्ट्रीय भंडार तैयार करने पर विचार कर रहा है। लंबे समय में, भारत को अपने मौजूदा भंडार का रणनीतिक उपयोग बेहतर तरीके से करने का लक्ष्य रखना चाहिए।
रक्षा विनिर्माण के लिए लाइसेंसिंग प्रणाली में क्या सुधार किए गए हैं?
घातक उपकरण और विस्फोटक जैसे सामानों के लिए पूरी तरह से लाइसेंस मुक्त करना संभव नहीं है। हालांकि, लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। अब राज्य और केंद्रीय एजेंसियों द्वारा सुरक्षा मंजूरी 3 महीने के भीतर देने का वादा किया गया है। लाइसेंस की वैधता भी 3 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई है।