केंद्र सरकार ने केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (सीपीएसई) और सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों को न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (एमपीएस) मानकों का पालन करने के लिए अगस्त 2026 तक का वक्त दे दिया है।
वित्त मंत्रालय के ज्ञापन के अनुसार सरकार ने जनहित को देखते हुए यह छूट दी है और सीपीएसई, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अपनी सार्वजनिक हिस्सेदारी बढ़ाकर कम से कम 25 फीसदी तक करने के लिए 1 अगस्त 2026 तक का वक्त दे दिया है।
अधिसूचना में कहा गया है कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड से अनुरोध है कि वह आगे के जरूरी कदम उठाए और यह संबंधित स्टॉक एक्सचेंजों के संज्ञान में लाए। सार्वजनिक क्षेत्र के 5 ऋणदाताओं बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब ऐंड सिंध बैंक ने सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी से कम करने की योजना बनाई है, जिससे सेबी के एमपीएस मानकों का अनुपालन किया जा सके।
31 मार्च 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंकों में से 7 बैंक एमपीएस मानक का अनुपालन करते हैं। अनुपालन करने वाले बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नैशनल बैंक, केनरा बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं।
दिल्ली के पंजाब ऐंड सिंध बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 98.25 फीसदी है। उसके बाद चेन्नई के इंडियन ओवरसीज बैंक में 96.38 फीसदी, यूको बैंक में 95.39 फीसदी, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 93.08 फीसदी और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 86.46 फीसदी हिस्सेदारी है।
सेबी के मुताबिक सभी सूचीबद्ध कंपनियों के लिए न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता 25 फीसदी रखना अनिवार्य है। सरकारी बैंकों को विशेष छूट देते हुए अगस्त 2024 तक का वक्त दिया गया था, जिससे वे 25 फीसदी एमपीएस की जरूरत पूरी कर सकें। सरकारी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को 10 फीसदी सार्वजनिक शेयरधारिता के लिए और 3 साल वक्त दिया गया है।