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भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया को चीन-अमेरिका संतुलन के लिए गठबंधन करना चाहिए: काजुतो सुजूकी

सुजूकी ने नई दिल्ली में कौटिल्य सम्मेलन 2025 के दौरान बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि जहां एक ओर अमेरिकी डॉलर और उसके बाजार आकार के लिहाज से अमेरिका अपरिहार्य है

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आशीष आर्यन   
Last Updated- October 05, 2025 | 10:30 PM IST

टोक्यो स्थित विदेश नीति अनुसंधान संगठन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोइकनॉमिक्स के निदेशक काजुतो सुजूकी ने कहा कि भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, कनाडा और अन्य देशों, जिनके पास महत्त्वपूर्ण बाजार आकार है, को अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय संघ (ईयू) जैसी अपरिहार्य अर्थव्यवस्थाओं की ताकत को संतुलित करने के लिए अपनी शक्तियों को मिलाना चाहिए।

सुजूकी ने नई दिल्ली में कौटिल्य सम्मेलन 2025 के दौरान बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि जहां एक ओर अमेरिकी डॉलर और उसके बाजार आकार के लिहाज से अमेरिका अपरिहार्य है, वहीं दूसरी ओर चीन अपनी तकनीकी और विनिर्माण क्षमता का रणनीतिक लाभ उठा रहा है। इसी तरह, यूरोपीय संघ एक बड़ा उपभोग बाजार है, और रूस अपने प्राकृतिक संसाधनों, खासकर तेल और गैस के लिहाज से कुछ हद तक अपरिहार्य है।

उन्होंने कहा कि अमेरिका, चीन, रूस और यूरोपीय संघ जैसे देश और आर्थिक समूह धीरे-धीरे विदेश नीति पर अपना रुख भू-राजनीतिक से भू-आर्थिक दृष्टिकोण की ओर बदल रहे हैं। इसके लिए वे अपने बाजारों की रणनीतिक स्वायत्तता और अपरिहार्यता का लाभ उठाकर दूसरों पर दबाव डाल रहे हैं और अपने सहयोगियों तथा गैर-सहयोगी देशों के व्यवहार में बदलाव ला रहे हैं।

अमेरिकी व्यापार नीतियों में अस्थिरता के संकेत के कारण कई देशों ने चीन, यूरोपीय संघ और रूस जैसे अन्य बड़े बाजारों के साथ अपने संबंधों की पुनः समीक्षा करने का विकल्प चुना है।

उन्होंने कहा, ‘जापान, भारत और दक्षिण कोरिया जैसे देश अमेरिका को उस स्थिरता की ओर वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं जिसकी वे आदी हैं, भले ही उन्हें 15 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क देना पड़े। उन्हें यह सोचना शुरू करना होगा कि वैश्वीकरण के पुराने अच्छे दिनों की ओर लौटना संभव नहीं है और भू-आर्थिक शक्तियां पुनः संतुलित हो गई हैं।’

 सुजूकी ने आगाह किया कि चीन पर बहुत ज्यादा निर्भरता उचित नहीं है, भले ही हाल ही में उसने उन देशों के प्रति गर्मजोशी दिखाई हो जो अपने बाजारों में विविधता लाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि चीन अपनी विदेश नीति और बाजारों, दोनों के मामले में अपेक्षाकृत ज्यादा खुला है, क्योंकि अब उसे इस बात का भरोसा है कि उसके उत्पाद वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।

सुजूकी ने कहा, ‘ चीन एक आकर्षक विकल्प है, लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया में अनिश्चितता और पारदर्शिता की कमी के कारण अभी भी कई जोखिम हैं। इसलिए, अगर आप उन पर बहुत अधिक निर्भर हैं, तो अगला कदम जो वे उठा सकते हैं, वह है टैरिफ बढ़ाना या निर्यात नियंत्रण लागू करना।’

उन्होंने कहा कि चीन के साथ लेन-देन करते समय सावधानी बरतने का एक अन्य कारण यह है कि चीन का दुनिया भर की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार अधिशेष बना हुआ है, जिससे कम कीमतों पर माल की डंपिंग का खतरा पैदा हो रहा है और घरेलू उद्योग अलाभकारी हो रहा है।

सुजूकी ने कहा कि भारत, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सिंगापुर और जापान जैसे ‘मध्यम-शक्ति’ देशों के गठबंधन का अर्थ यह होगा कि ये अर्थव्यवस्थाएं यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ काम करेंगी कि वे आपस में आत्मनिर्भर हैं और उनके पास एक विश्वसनीय नेटवर्क है।

दूसरी ओर, इन मध्यम-शक्ति देशों को भी कूटनीतिक और सामरिक समर्थन के संदर्भ में, विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण समय में, अमेरिका के साथ अपने संबंधों का पुनर्मूल्यांकन करना होगा। उन्होंने कहा कि यह प्रतिबद्धता उस समय की भू-आर्थिक स्थिति पर निर्भर करेगी।

सुजूकी ने कहा कि यद्यपि जापान, भारत, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों के बीच सैन्य सहयोग मजबूत बना हुआ है, फिर भी दक्षिण एशिया या दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिका की हालिया प्रतिबद्धता भविष्य में निरंतर प्रतिबद्धता की गारंटी नहीं देती है।

First Published : October 5, 2025 | 10:23 PM IST