देश में टायर बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार चेन्नई की एमआरएफ का शेयर देश के सबसे महंगे शेयरों में से है। कंपनी के वाइस चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अरुण माम्मेन ने शाइन जेकब के साथ विशेष बातचीत में जीएसटी सुधारों और टायर की मांग पर उनके असर, प्राकृतिक रबर उद्योग के प्रदर्शन तथा ईवी क्रांति के साथ टायर विनिर्माताओं के बदलावों के बारे में चर्चा की। संपादित अंश …
आपने ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) के नए चेयरमैन का पद संभाला है। उद्योग के नजरिये से आप प्राकृतिक रबर की मांग और एटमा की खेती की महत्त्वाकांक्षी परियोजना को किस तरह देखते हैं?
कुल मिलाकर जीएसटी कम होने के बाद टायर उद्योग में मांग बहुत अच्छी है। हम टायरों की मांग में अच्छी बढ़ोतरी देख रहे हैं। इससे प्राकृतिक रबर की मांग में भी खासी बढ़ोतरी हुई है।
चार टायर कंपनियों (अपोलो, सिएट, जेके टायर और एमआरएफ) ने भारतीय रबर बोर्ड के साथ मिलकर पूर्वोत्तर में रबर की खेती में निवेश किया है। यह प्रोजेक्ट इनरोड (इंडियन नेचुरल रबर ऑपरेशंस फॉर असिस्टेड डेवलपमेंट) का हिस्सा है। इस परियोजना के तहत वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के सक्रिय मार्गदर्शन में पूर्वोत्तर पूर्व में लगभग 2 लाख हेक्टेयर में रबर की खेती की जा रही है।
अब तक 1.7 लाख हेक्टेयर में खेती की जा चुकी है। अगले वर्ष के मध्य तक 30,000 हेक्टेयर में और पूरी हो जाएगी। इस प्रकार 2 लाख हेक्टेयर और बाजार में आ जाएगा। रोपाई तो हो जाएगी, लेकिन टैपिंग (वृक्षों से रबर एकत्रित करना) में अभी पांच से सात साल लग सकते हैं।
टायरों को अलग-अलग मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के तहत रियायती या शून्य शुल्क दर पर आयात किया जा सकता है, लेकिन कच्चे माल – प्राकृतिक रबर पर 25 प्रतिशत का मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) लगता है। क्या यह उलट शुल्क संरचना प्राकृतिक रबर के मामले में आपके लिए बड़ी चुनौती है? साथ ही, आप जीएसटी सुधारों के असर को कैसे देख रहे हैं?
हां, उलट शुल्क संरचना तो है। इस पर ध्यान दिया गया है। सरकार ने जीएसटी दरों को कम करके बहुत अच्छा काम किया है। इसकी वजह से टायर की कीमतों में कमी आई है। खास तौर पर ट्रैक्टर जैसे वाहनों पर जीएसटी अब 18 से घटकर 5 प्रतिशत रह गया है, जिससे ट्रैक्टरों और टायरों सहित पूरे कृषि क्षेत्र को खासा बढ़ावा मिला है।
वास्तव में हर वाहन श्रेणी में जीएसटी की दरों में कमी आई है, जो नए वाहनों की बिक्री में स्पष्ट रूप से दिख रही है। यह बात हर श्रेणी में टायरों की मांग में भी दिखाई दी है और वाहनों की बिक्री से यह स्पष्ट है। हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा कि यह कैसे आगे बढ़ती है और मांग कब तक बनी रहती है।
एमआरएफ ईवी उद्योग की भी सबसे बड़ी आपूर्तिकर्ता है। चूंकि भारत में ईवी क्रांति दिख रही है, तो ऐसे में टायर उद्योग में क्या बदलाव देखने को मिल रहे हैं?
जब आप ईवी की तुलना में तेल-गैस इंजन वाली गाड़ियों को देखते हैं तो नेटवर्क, वितरण और स्वीकृति के लिहाज से तेल-गैस इंजन वाली श्रेणी इन दोनों में से काफी बड़ी है।
टायर उद्योग के नजरिये से हमें यह देखना होगा कि टायर इलेक्ट्रिक गाड़ियों के हिसाब से ढल जाएं। इसलिए कि किसी ईवी का वजन किसी तेल-गैस इंजन वाली गाड़ी से ज्यादा होता है। दूसरी बात यह कि ईवी का टॉर्क तेल-गैस इंजन वाली गाड़ी से काफी ज्यादा होता है। किसी ईवी के टायर में बहुत ज्यादा रगड़ और टूट-फूट होती है। शायद गाड़ी की ताकत के आधार पर टायर की टूट-फूट किसी तेल-गैस इंजन वाली गाड़ी के मुकाबले 15 प्रतिशत ज्यादा हो सकती है। हमें ऐसी तकनीक पर ध्यान देना होगा जो टायर को ज्यादा टिकाऊ बनाने में मदद करे और साथ ही गाड़ी के प्रदर्शन को भी बेहतर बनाए।
ईवी में शोर लगभग शून्य होता है। आखिरकार टायर और सड़क के बीच संपर्क से जो भी आवाज होती है, वह सुनाई देती है। इसलिए टायर का डिजाइन और तकनीक ऐसी होनी चाहिए कि वह आवाज कम करे।
पिछली तिमाही में कच्चे माल की कीमतें आपके लिए चिंता का सबब थीं। इस तिमाही में क्या हो रहा है?
आज हालांकि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें स्थिर हैं, जो लगभग 60 डॉलर प्रति बैरल के आसपास हैं, लेकिन रुपये के मूल्य में गिरावट को देखना है। जैसा कि आप जानते हैं, रुपया गिर गया है (जुलाई 2025 में यह 85 रुपये था, दिसंबर 2025 में यह 91 रुपये तक पहुंच गया)। टायर उद्योग के मामले में 65 प्रतिशत से ज्यादा कच्चा माल कच्चे तेल से बने उत्पादों से मिलता है, जिनमें से ज्यादातर का आयात किया जाता है।