विशेषज्ञों ने कहा है कि आयकर विभाग की तरफ से तैयार नियमों का मसौदा सरकार और केयर्न व वोडाफोन के लिए पिछली तारीख से कराधान विवाद के निपटान के लिए बेहतर है। हालांकि भारत में निवेश संधि अवार्ड अस्पष्ट रहा है, लिहाजा ये कंपनियां वैकल्पिक रास्ता तलाशने को प्रोत्साहित हुईं, जैसे इंटरनैशनल आर्बिट्रल पैनल या अन्य इलाके की अदालत ताकि देश की परिसंपत्ति जब्त कर सके। नांगिया एंडरसन एलएलपी के मैनेजिंग पार्टनर राकेश नांगिया ने कहा, सरकार ने पुराने विवाद पर बेहतर समाधान की पेशकश की है। यह किसी करदाता के कानूनी विवाद की समाप्ति के लिए सरकार की तरफ से संतुलित समाधान है।
आयकर विभाग ने शनिवार को बहुप्रतीक्षित नियमों का मसौदा जारी किया, जो कराधान पर पुरानी तिथि से कर निर्धारण की वापसी है, ताकि सरकार के खिलाफ सभी कानूनी मामले वापस ले लिए जाएं। यानी बदले में कंपनियों को मुकदमा वापस लेना होगा।
बीएमआर लीगल के मैनेजिंग पार्टनर मुकेश भुटानी ने कहा, यह मसौदा 2021 के संशोधन विधेयक के मुताबिक है, जो पिछली तिथि से कराधान के कारण अप्रत्यक्ष हस्तांतरण वाले प्रावधानों के तहत 17 मामलों के निपटान की पेशकश करता है। उन्होंंने कहा, एक सामान्य प्रक्रिया सामने रखी गई है, जिसके जरिये पात्रता की शर्तों व सभी मामले वापस लेने वाले शपथपत्र पर संतुष्ट होने के आधार पर आयुक्त 15 दिनों की तय समयसीमा में मंजूरी देंगे।
सरकार ने कराधान अधिनियम (संशोधन) 2021 इस महीने संसद में पारित किया, जो भारतीय परिसंपत्तियों के अप्रत्यक्ष विदेश हस्तांतरण से संबंधित पुरानी तिथि से कराधान वाले मामलों के निपटान की पेशकश करता है। यह संशोधन 2012 के कानून में हुआ है।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की तरफ से जारी नियमों के मसौदे में कंपनियों की तरफ से कई तरह के खुलासे व कानूनी कार्यवाही नहीं करने की बात है। इनमें अपील फोरम में कार्यवाही, आर्बिट्रेशन की कार्यवाही, मध्यस्थता और किसी फैसले के तहत परिसंपत्ति जब्त करने का काम नहीं करना है। मसौदे में हालांकि इस तरह की अंडरटेकिंग शेयरधारकों व अन्य संबंधित पक्षकारों को देने की बात है, जो मामला वापस लेने से संबंधित होगा। यह कहना है शार्दुल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर अमित सिंघानिया का।
नांगिया ने कहा कि ऐसी कंपनियों के लिए मुख्य मुद्दा यह है कि भारत में निवेश संधि निर्णयों के प्रवर्तन की व्यवस्था अस्पष्टï बनी हुई है। उन्होंने कहा, ‘भारत में अदालतें गैर-प्रवर्तनीयता के पक्ष में दिख रही हैं, जिससे निवेशकों को अन्य क्षेत्रों में प्रवर्तन तलाशने जैसे वैकल्पिक रास्तों को अपनाने या भारतीय परिसंपत्तियों को देश से बाहर रखने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है।’
उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से इस पर कायम रहा है कि कराधान एक संप्रभु अधिकार है, जिसे इस तथ्य से ताकत मिलती है कि भारत ने कई निवेश मध्यस्थताओं की विफलता के बाद अपनी द्विपक्षीय निवेश संधियों को रद्द किया। उन्होंने कहा कि भारत ने नए मॉडल बीआईटी को स्थानांतरित करने की कोशिश की, जिसमें कराधान जैसे मुद्दों को अलग रखा गया।