यह विडंबना ही है कि निजी दूरसंचार कंपनियों को 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के अंत से ठीक पहले सरकार ने संकट से जूझ रही सरकारी दूरसंचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) को 1.64 लाख करोड़ रुपये की सहायता प्रदान करने की घोषणा की है। नयी जान फूंकने की यह कोशिश हमें बताती है कि सरकारी स्वामित्व वाली यह दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनी तकनीकी मामले में कितना पीछे छूट चुकी है। बीएसएनएल को दिए गए पैकेज में 4जी सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक आवंटन, स्वदेशी तौर पर विकसित 4जी स्टैक (डेटा भंडार), ग्रामीण इलाकों में तार वाले परिचालन के लिए वायबिलिटी गैप फंडिंग के रूप में पूंजीगत सहायता तथा सॉवरिन गारंटी वाले बॉन्ड की मदद से फंड जुटाना शामिल है। इसके अतिरिक्त समायोजित सकल राजस्व यानी एजीआर के नुकसान को इक्विटी में बदलकर तथा प्राथमिकता वाले शेयर जारी करके सरकार की हिस्सेदारी में इजाफा करना भी इसका हिस्सा है। भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड का बीएसएनएल में विलय करने को भी मंजूरी दी गई है। उक्त कंपनी ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण संचार उपलब्ध कराने में नाकाम रही।
यह बीएसएनएल के लिए तीन वर्षों में दूसरा राहत पैकेज है। इससे पहले 2019 में बीएसएनएल में 69,000 करोड़ रुपये लगाए गए थे। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि क्या सरकार अपना पैसा बरबाद कर रही है। ध्यान रहे सरकार को निजी दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से धन हासिल होना है। पैसे की बरबादी का प्रश्न इसलिए उठता है कि प्रतिस्पर्धी माहौल में तेजी से बदलाव आया है।
सैद्धांतिक तौर पर देखा जाए तो चूंकि सरकार ने निजी स्वामित्व वाली वोडाफोन इंडिया और भारती एयरटेल जैसी कंपनियों को एजीआर बकाये के मामले में राहत प्रदान की इसलिए उसका अपनी ही कंपनी की सहायता करना तो सर्वथा उचित प्रतीत होता है। ध्यान रहे सरकार की मदद से ही वोडाफोन आइडिया बच पाई। दोनों निजी कंपनियों की समस्याओं के मूल में दिक्कतदेह नियामकीय नीतियां थीं जबकि बीएसएनएल की समस्याएं ढांचागत हैं। संचार मंत्री ने कहा है कि सुधार की इस बुनियादी योजना से बीएसएनएल की स्थिति में बदलाव आएगा और कंपनी मुनाफा कमाएगी। यह आशा शायद इस तथ्य पर आधारित है कि बीएसएनएल का नुकसान 2019-20 के 15,500 करोड़ रुपये से घटकर 2020-21 में 7,441 करोड़ रुपये रह गया और परिचालन के स्तर पर वह मुनाफे में आ गई।
यह कोई छोटी कामयाबी नहीं है और यह कंपनी के मूल कारोबार में बुनियादी विस्तार की वजह से नहीं बल्कि कर्मचारियों के स्तर पर सुधार की वजह से हुआ है। अधिकांश लाभ इसलिए हासिल हुए कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना की वजह से उसके भारी भरकम बिल को आधा करने में कामयाबी मिली और उच्च लागत वाले ऋण में भी थोड़ी कमी आई। 2019-20 और 2020-21 के बीच बीएसएनएल का राजस्व कमोबेश ठहरा रहा और उसके सबस्क्राइबरों की तादाद में शायद ही कोई इजाफा हुआ। यह स्थिति तब है जब प्राथमिकता के आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटन के जरिये कंपनी को निजी सेवा प्रदाताओं पर तरजीह दी गई। वायरलेस और ब्रॉडबैंड में उसकी हिस्सेदारी बमुश्किल क्रमश: 9.7 और 2.9 फीसदी है। सन 2021 में 900 और 1800 मेगाहर्ट्ज बैंड में उसने इस्तेमाल से बचा हुआ 2जी स्पेक्ट्रम भी वापस कर दिया। जबकि यह वह क्षेत्र हैं जहां अधिकांश सेवा दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के पास बहुत अधिक ग्राहक हैं। इससे यही पता चलता है कि कंपनी प्रतिस्पर्धा में नाकाम रही। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अगर बीएसएनएल का ध्यान ग्रामीण भारत पर केंद्रित है तो वह आगे चलकर मुनाफा कैसे कमाएगी। सरकार का ग्रामीण संचार में सुधार करने का लक्ष्य सराहनीय है लेकिन इस लक्ष्य को वायबिलिटी गैप फंडिंग की मदद से हासिल करने का प्रयास यही बताता है कि यह कवायद बुनियादी तौर पर अव्यवहार्य है। किसी वाणिज्यिक निकाय की मदद से सामाजिक आर्थिक उद्देश्य हासिल करने की कोशिश अतीत में कभी कारगर नहीं रही और ऐसा लगता नहीं कि बीएसएनएल इस मामले में कोई अपवाद साबित होगी।