प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
अमेरिका की एरोस्पेस कंपनी बोइंग एक ऐसी संस्कृति का निर्माण कर रही है जहां कर्मचारी किसी समस्या को देखने के बाद अपनी बात रखने में सहज महसूस करें ताकि वह मुद्दा बढ़ने से पहले ही हल किया जा सके। यह बात बोइंग के भारत और दक्षिण एशिया के अध्यक्ष सलिल गुप्ते ने कही। गुप्ते ने इंडियन फाउंडेशन फॉर क्वालिटी मैनेजमेंट (आईएफक्यूएम) द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में यह बात कही।
हाल के वर्षों में, बोइंग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिनमें गुणवत्ता नियंत्रण में चूक, सुरक्षा की घटनाएं, नियामकीय जांच, श्रम समस्याएं और आपूर्ति-श्रृंखला की दिक्कतें शामिल हैं। इन सब से विमानों के उत्पादन की रफ्तार धीमी हो गई है। भारतीय विमानन कंपनियों जैसे एयर इंडिया और अकासा एयर की उड़ानों में देरी और अनिश्चितता के चलते डिलीवरी में देरी की स्थिति बनी है। इसके कारण भारत में हवाई यात्रा की मांग तेजी से बढ़ने के बावजूद इनके बेड़े के विस्तार और नेटवर्क वृद्धि की योजनाओं में दिक्कतें आ रही हैं।
जब गुप्ते से पूछा गया कि बोइंग ने हाल के वर्षों में अपनी गलतियों से क्या सीखा है और यह कैसे वापसी करने की योजना बना रहा है तब इस पर गुप्ते ने जवाब दिया, ‘आपके सवाल का जवाब बेहद सीधा है। इसकी शुरुआत कार्यसंस्कृति से होती है। विमानन कारोबार में कोई भी यह नहीं सोचता है कि आज मैं कोई ऐसी चीज बनाऊंगा जो असुरक्षित हो। कोई भी समझदार व्यक्ति ऐसा नहीं करता। हमारे सभी प्रियजन हर दिन इन हवाई जहाजों में सफर करते हैं।’
गुप्ते ने वैश्विक विमानन आपूर्ति-श्रृंखला में भारत की भूमिका के बारे में बात करते हुए कहा कि भारत के विमानन क्षेत्र के कलपुर्जे के आपूर्तिकर्ताओं के लिए अगला लक्ष्य ‘बिल्ड-टू-स्पेसिफिकेशन’ है। इसका मतलब है कि आपूर्तिकर्ता बोइंग द्वारा दिए गए ब्लूप्रिंट का पालन करने के बजाय अपनी खुद की बौद्धिक संपदा और डिजाइन तैयार करें।
उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में, भारत ने बोइंग के लिए मूल्य श्रृंखला में लगातार प्रगति की है और मशीनीकृत पुर्जों से लेकर जटिल असेंबलियों और कार्बन कंपोजिट के काम के लिए टाटा, मदरसन, गोदरेज और महिंद्रा जैसे भागीदारों की मदद ली है।