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भारत में डेटा सेंटर कारोबार में बड़ा बदलाव होने की उम्मीद

भारत में एक मेगावॉट की क्षमता वाले डेटा सेंटर के निर्माण में $60 से 80 लाख की लागत आती है जबकि इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में यही लागत $1 करोड़ और थाईलैंड में $80 लाख है।

Last Updated- October 11, 2024 | 10:02 PM IST
Data Center

भारत में डेटा सेंटर कारोबार में बड़ा बदलाव होने की उम्मीद है। साल 2030 तक इसकी 40 से 50 प्रतिशत क्षमता आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) और ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (GPU) वर्कलोड के लिए समर्पित होगी, जबकि इसी अवधि के दौरान कुल क्षमता तीन गुना बढ़कर 3 गीगावॉट हो जाएगी।

माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन वेब सर्विसेज (AWS) और गूगल जैसी वैश्विक क्लाउड कंपनियां अपने कै​प्टिव (खुद के इस्तेमाल वाले) डेटा सेंटर की मालिक हैं जो अगले पांच साल में एक गीगावॉट से ज्यादा की क्षमता उत्पन्न करेंगे। वे इस क्षेत्र की महारती बनने जा रही हैं। वर्तमान में उनकी कैप्टिव क्षमता कुल लाइव डेटा सेंटर क्षमता का 10 प्रतिशत है, लेकिन वे बड़े कैप्टिव डेटा सेंटर बनाने के लिए देश भर में विभिन्न स्थानों पर जोरदार तरीके से बातचीत और भूमि अधिग्रहण कर रही हैं।

भारत में ग्राहकों को प्रोसेसिंग के लिए एनवीडिया जीपीयू उपलब्ध कराने वाली पहली डेटा सेंटर प्रदाता कंपनी योटा डेटा सर्विसेज के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी सुनील गुप्ता कहते हैं, ‘हमारा अनुमान है कि साल 2030 तक हम 3 गीगावॉट की डेटा सेंटर क्षमता पार कर लेंगे। इसमें से 40 से 50 प्रतिशत एआई/जीपीयू आधारित वर्कलोड होगा। हमें उम्मीद है कि इस कुल क्षमता का 30 प्रतिशत हिस्सा बिग थ्री के पास होगा।’

कुशमैन ऐंड वेकफील्ड में एशिया-प्रशांत (एपीएसी) डेटा सेंटर सलाहकार टीम के प्रमुख विवेक दहिया ने कहा, ‘इस साल की पहली तिमाही में भारत की कुल डेटा क्षमता एक गीगावॉट का स्तर पार कर गई। हमें उम्मीद है कि पांच साल के भीतर यह तीन गीगावॉट तक पहुंच जाएगी। हम भारत के लिए विदेशी एआई डेटा सेंटर हब बनने का बड़ा अवसर भी देख रहे हैं। हालांकि इसमें कुछ समय लगेगा।’

दहिया के अनुसार इसका कारण एआई आधारित डेटा सेंटर बनाने और संचालित करने की कम लागत है। इसकी वजह कई आसियान और एपीएसी स्थानों की तुलना में कम लागत होना है, खास तौर पर इसलिए भी कि एआई को डेटा प्रोसेसिंग के लिए विशाल क्षमता की आवश्यकता होती है। कंसल्टेंसी फर्म ने भारत से मिलने वाले तीन खास फायदों को बारे में बताया है। ये हैं – सस्ती जमीन और निर्माण लागत, सस्ती बिजली (विशेष रूप से अक्षय स्रोतों से) और कर्मचारियों की कम लागत।

उदाहरण के लिए कुशमैन ऐंड वेकफील्ड का अनुमान है कि भारत में एक मेगावॉट की क्षमता वाले डेटा सेंटर के निर्माण में 60 से 80 लाख डॉलर की लागत आती है जबकि इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में यही लागत एक करोड़ डॉलर और थाईलैंड में 80 लाख डॉलर है। बेशक क्षमता तिगुनी करने के लिए निवेश की जरूरत होगी क्योंकि एआई के लिए जीपीयू पर वर्कलोड प्रोसेसिंग करने वाले डेटा सेंटर के लिए कीमत ज्यादा होती है।

वैश्विक क्लाउड कंपनियां अपने प्रयास तेज कर रही हैं। माइक्रोसॉफ्ट भूमि अधिग्रहण के मामले में खास तौर पर आक्रामक रही है जो किसी डेटा सेंटर परिसर की स्थापना में प्रमुख खर्च होता है। खबरों से पता चलता है कि कंपनी ने 2022 में पुणे के हिंजेवाडी में दो भूखंडों के साथ-साथ पुणे के पिंपरी-चिंचवाड़ क्षेत्र में एक भूखंड खरीदा है। उसने हैदराबाद में भी अधिग्रहण किया है। इसी तरह गूगल और एडब्ल्यूएस मुंबई में नई क्षमता का निर्माण कर रही हैं। फिलहाल गूगल नवी मुंबई में 22.5 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के लिए बातचीत कर रही है।

First Published - October 11, 2024 | 9:59 PM IST

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