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एमटीएन पर कब्जे के लिए अनिल अंबानी ने बदली चाल

Last Updated- December 07, 2022 | 10:02 AM IST

एमटीएन के अधिग्रहण के रास्ते में बड़े भाई मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) की दखलअंदाजी से आजिज आकर अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) ने दक्षिण अफ्रीकी कंपनी को खरीदने के लिए चाल बदलने का फैसला किया है।


नई योजना के तहत अब अनिल अंबानी समूह के प्रमोटर एमटीएन में 51 फीसद हिस्सेदारी लेंगे और उसके बदले एमटीएन के प्रमोटरों को नकदी और आरकॉम के शेयर दे दिए जाएंगे। इस तरह एमटीएन पर अनिल अंबानी समूह का नियंत्रण हो जाएगा और नतीजतन आरकॉम भी उसी के कब्जे में रहेगी।

नाकाम होगी आरआईएल

यह सारी कवायद आरआईएल की चाल को नाकाम करने के लिए की जा रही है, ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे। दरअसल धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद दोनों भाइयों के बीच छिड़े विवाद का अंत करने के लिए कारोबार का जो बंटवारा किया गया था, उसके तहत अनिल अंबानी समूह की किसी भी कंपनी के शेयर खरीदने का पहला अधिकार मुकेश की आरआईएल के पास है।

लेकिन नए सौदे में आरकॉम के शेयर बेचे नहीं जा रहे हैं, बल्कि एमटीएन के शेयर के बदले दिए जा रहे हैं यानी शेयर स्वैप किए जा रहे हैं। ऐसे में आरआईएल कानूनन कुछ भी नहीं कर सकती। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका के भी कई कानून ऐसी हालत में बेअसर हो जाएंगे।

पर सौदे में देरी

हालांकि नई चाल की वजह से अब यह सौदा थोड़ा लटक सकता है। करार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक एमटीएन को इस मामले में अब ज्यादा गौर करना होगा और इसी वजह से करार के लिए तय की गई मियाद 8 जुलाई को अब 3-4 हफ्ते और बढ़ाना पड़ सकता है। इस मियाद के दौरान एमटीएन किसी और कंपनी से बातचीत नहीं कर सकती।

एमटीएन के शेयरधारकों में लेबनान के भूतपूर्व प्रधानमंत्री नजीब मिकाती का परिवार भी शामिल है। इस करार का सीधा मकसद आरकॉम में एमटीएन की हिस्सेदारी को बढ़ाना है, ताकि आरआईएल के पास कोई हथियार ही नहीं रहे। सूत्रों का कहना है, ‘आरआईएल की शेयर खरीद के पहले अधिकार वाली शर्त तब लागू होती है, जब आप शेयर बेचकर कंपनी पर से अपना नियंत्रण छोड़ना चाह रहे हों। इस मामले में अनिल अंबानी आरकॉम को किसी और कंपनी के जरिये संचालित करने की योजना बना रहे हैं।’

एक तीर से शिकार कई

कंपनी में हिस्सेदारी खरीदने के लिए आरकॉम की नीति जोहानिसबर्ग स्टॉक एक्सचेंज की शर्तों को भी पूरा करती है। इन शर्तों में सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि अगर कोई विदेशी कंपनी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनी में 35 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी  खरीदना चाहती है तो उसे पहले ओपन ऑफर देना होगा।

दक्षिण अफ्रीकी कानून इस शर्त को नहीं मानने का विकल्प भी देता है। इसके तहत अगर उस कंपनी के 51 फीसदी शेयरधारक ओपन ऑफर की शर्त को जरूरी नहीं समझते हैं तो इसे नहीं माना जाता है। आरकॉम में एडीएजी और सहयोगियों की 66 फीसदी हिस्सेदारी है। लेकिन सभी अपनी हिस्सेदारी कम करने के लिए तैयार हैं।

हालांकि दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों में सीधे विदेशी निवेश के लिए भारतीय कानून के मुताबिक एमटीएन आरकॉम में 74 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं खरीद सकती है। अगर आरकॉम और एमटीएन का विलय हो जाता है तो दोनों कंपनियों के 25 देशों में 11.5 करोड़ से भी ज्यादा उपभोक्ता हो जाएंगे।’

विलय हुआ तो…
हो जाएगी 25 देशों में पहुंच मिल जाएंगे कुल 11.8 करोड़ ग्राहक

आसान नहीं रही एमटीएन की कॉल

25 मई – भारती एयरटेल ने एमटीएन के अधिग्रहण की योजना को तिलांजलि दी
27 मई – आरकॉम ने विलय के लिए एमटीएन के साथ 45 दिन का समझौता किया, जिस दौरान एमटीएन किसी और कंपनी से बातचीत नहीं कर सकती थी
13 जून – आरआईएल ने एमटीएन को चिट्ठी भेजकर कहा कि आरकॉम में बहुसंख्य हिस्सेदारी खरीदने का पहला अधिकार उसके पास है
16 जून – आरकॉम ने कहा बेकार है यह अधिकार
5 जुलाई – आरकॉम ने अनिल धीरूभाई अंबानी समूह के शेयरों की उठापटक की जांच के लिए सेबी से गुहार लगाई

First Published - July 9, 2008 | 12:43 AM IST

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