अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया विमान हादसे का मलवा | फोटो- पीटीआई
Air India crash: अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया विमान हादसे की जांच में अहम प्रगति हुई है। शुक्रवार को जांच अधिकारियों ने लंदन जा रही बोइंग 787 ड्रीमलाइनर फ्लाइट AI171 के दो फ्लाइट रिकॉर्डरों में से एक को बरामद कर लिया है। यह विमान गुरुवार को सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद मेघाणी नगर क्षेत्र के घनी आबादी वाले इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बरामद किया गया रिकॉर्डर विमान के पिछले हिस्से में लगा हुआ था। इसे सुरक्षित कर लिया गया है और अब इसे नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) को विश्लेषण के लिए सौंपा जाएगा।
चौड़ी बॉडी वाला यह विमान कुल 242 लोगों को लेकर उड़ान पर था—इनमें 169 भारतीय, 53 ब्रिटिश नागरिक, सात पुर्तगाली और एक कनाडाई नागरिक शामिल थे। स्थानीय समयानुसार दोपहर 1:39 बजे विमान ने संकट का संकेत (distress signal) जारी किया और लगभग 625 फीट की ऊंचाई तक ही पहुंच पाया, जिसके बाद रडार से गायब हो गया। विमान ने “MAYDAY, MAYDAY…” कहते हुए एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क किया था। इसके कुछ ही क्षणों बाद विमान आग का गोला बनकर हवाई अड्डे की सीमा से बाहर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
हादसे के वक्त विमान में सवार 242 लोगों में से केवल एक यात्री—40 वर्षीय विश्वास कुमार रमेश, जो सीट 11A पर बैठे थे—चमत्कारिक रूप से इस दुर्घटना में बच पाए।
जिसे आमतौर पर “ब्लैक बॉक्स” कहा जाता है, वह असल में एक विमान फ्लाइट रिकॉर्डर (aircraft flight recorder) होता है जिसे आमतौर पर गहरे नारंगी या पीले रंग में रंगा जाता है ताकि दुर्घटना स्थल से इसे आसानी से ढूंढा जा सके। 1950 के दशक की शुरुआत में विकसित किया गया यह यंत्र उड़ान के दौरान महत्वपूर्ण डेटा को रिकॉर्ड करता है और इसे अत्यधिक गर्मी, दबाव और भीषण टक्कर जैसी स्थितियों को सहन करने के लिए तैयार किया जाता है।
आधुनिक ब्लैक बॉक्स का श्रेय ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डेविड वॉरेन (David Warren) को दिया जाता है, जिनका निधन 2010 में हुआ था। उन्होंने ऐसा यंत्र विकसित किया जिससे किसी विमान दुर्घटना के कारणों की जांच में मदद मिलती है।
डेविड वॉरेन की खोज से पहले, फ्रांसीसी इंजीनियर फ्रांस्वा यूसेनो (François Hussenot) ने ऑप्टिकल डेटा रिकॉर्डर पर प्रयोग किया था, जो उड़ान से जुड़ी जानकारियों को फोटोग्राफिक फिल्म पर रिकॉर्ड करता था। यह फिल्म एक ऐसे कंटेनर में रखी जाती थी जिसमें रोशनी नहीं पहुंच सकती थी। चूंकि उस डिब्बे के अंदर कोई रोशनी नहीं जा सकती थी, इसलिए इसे “ब्लैक बॉक्स” कहा जाने लगा। यह नाम आज भी प्रचलन में है, भले ही आधुनिक ब्लैक बॉक्स गहरे नारंगी या पीले रंग में रंगे होते हैं।
ब्लैक बॉक्स में कई महत्वपूर्ण घटक होते हैं, जिनमें विमान-विशिष्ट इंटरफेस (रिकॉर्डिंग और प्लेबैक के लिए), एक अंडरवाटर लोकेटर बीकन, एक क्रैश-सर्वाइवेबल मेमोरी मॉड्यूल (जो 3,400 गुना गुरुत्वाकर्षण बल तक सहन कर सकता है), और डेटा स्टोरेज चिप्स वाली इलेक्ट्रॉनिक सर्किट्री शामिल होती है।
आधुनिक ब्लैक बॉक्स सिस्टम आम तौर पर दो अलग-अलग रिकॉर्डर को मिलाकर बनाए जाते हैं:
कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR) – यह पायलटों की बातचीत, रेडियो संचार और कॉकपिट के माहौल से जुड़ी ध्वनियों को रिकॉर्ड करता है।
फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) – यह ऊंचाई, हवा की गति, दिशा, इंजन का प्रदर्शन, ऑटोपायलट की स्थिति, पिच और रोल सहित 80 से अधिक मानकों को रिकॉर्ड करता है।
हर रिकॉर्डर को स्टील या टाइटेनियम जैसी मजबूत धातु की खोल में बंद किया जाता है। यह खोल आग, गहरे समुद्र के दबाव और शून्य से नीचे के तापमान को झेलने के लिए इंसुलेट किया जाता है। ब्लैक बॉक्स आमतौर पर विमान की पूंछ के पास लगाया जाता है, क्योंकि दुर्घटना की स्थिति में यह हिस्सा आमतौर पर कम क्षतिग्रस्त होता है।
कॉकपिट की आवाजों और उड़ान डेटा को मिलाकर जांचकर्ता यह पता लगा सकते हैं कि हादसे की जड़ क्या थी—मशीन में खराबी, मौसम की स्थिति, मानवीय भूल या इनका कोई संयोजन।
ब्लैक बॉक्स को डिकोड करने में आमतौर पर 10 से 15 दिन लगते हैं। इसके बाद मिले निष्कर्षों की तुलना रडार डेटा, रखरखाव से जुड़े रिकॉर्ड और चश्मदीदों के बयानों से की जाती है।
12 जून को हुए विमान हादसे के मामले में ब्लैक बॉक्स से यह जानने में मदद मिल सकती है कि क्रू ने संकट का संदेश क्यों भेजा और कुछ ही पलों बाद संपर्क कैसे टूट गया।
फ्लाइट रिकॉर्डर का विचार 1953 में उस समय सामने आया जब ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डेविड वॉरेन ने एक टास्क फोर्स के साथ काम करना शुरू किया। यह टीम दुनिया के पहले व्यावसायिक जेट विमान डे हैविलैंड कॉमेट (de Havilland Comet) में हुई भीषण हवाई दुर्घटनाओं की जांच कर रही थी। हालांकि शुरुआत में पायलटों ने निगरानी के डर से इसका विरोध किया, लेकिन वॉरेन ने 1956 में ARL फ्लाइट मेमोरी यूनिट विकसित कर ली, जो चार घंटे तक की आवाज और यंत्रों से जुड़ा डेटा रिकॉर्ड करने में सक्षम थी।
1963 में दो घातक विमान दुर्घटनाओं के बाद, ऑस्ट्रेलिया फ्लाइट रिकॉर्डर को व्यावसायिक विमानों में अनिवार्य करने वाला पहला देश बना। आज यह नियम पूरी दुनिया में मानक बन चुका है।
कई बड़ी विमान दुर्घटनाओं की जांच में ब्लैक बॉक्स डेटा ने निर्णायक भूमिका निभाई है। 2020 में कोझिकोड में हुए एयर इंडिया एक्सप्रेस फ्लाइट 1344 के हादसे की जांच में पता चला कि दुर्घटना का कारण पायलट की चूक थी।
वहीं, 2015 की जर्मनविंग्स त्रासदी में जब एक सह-पायलट ने जानबूझकर एयरबस A320 को फ्रांस के आल्प्स पर्वत में टकरा दिया था, तब कॉकपिट की ऑडियो रिकॉर्डिंग और उड़ान डेटा ने इस हादसे की असली वजह की पुष्टि की।