भारत की शीर्ष पांच आईटी सेवा कंपनियों में सामूहिक रूप से 250,000 से अधिक ऐसे कर्मचारी हैं जिनके पास उच्च स्तर की आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) कौशल है। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब जेनेरेटिव एआई (जेन एआई) बेहद अस्थिर वृहद अर्थव्यवस्था वाले माहौल में उत्पादकता बढ़ाने और क्षमता में सुधार करने के लिए लगभग हर समझौते वाली वार्ता का हिस्सा बन रहे हैं।
इन कंपनियों ने अपने अधिकांश कर्मचारियों को पहले से ही बुनियादी एआई क्षमताओं में प्रशिक्षित किया है और अब उनका जोर अत्याधुनिक कौशल पर है जिसे तेजी से बदल रहे तकनीकी माहौल में ग्राहकों को विशेष तरह के परिणाम देने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
टाटा कंसंल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के पास करीब 1,14,000 ऐसे लोग हैं जिनके पास उच्च स्तर का एआई कौशल है और कंपनी का मानना है कि इसके कारण इन्हें एक ‘कौशल पिरामिड’ तैयार करने में मदद मिलेगी।
वित्त वर्ष 2026 के पहली तिमाही के नतीजे के बाद टीसीएस के सीएचआरओ मिलिंद लक्कड़ ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘हम कौशल पिरामिड का निर्माण जारी रखेंगे। लेकिन हर स्तर की अपनी विशेषज्ञता या आयाम होगा। मिसाल के तौर पर एजेंटिक एआई या विशिष्ट क्षेत्र जैसे कि विनिर्माण और लाइफ साइंसेज। ऐसे कौशल तैयार किए जाएंगे जो उद्योग के लिए प्रासंगिक होने के साथ-साथ विशिष्ट तकनीक के अनुरूप भी होंगे।’
एचसीएल टेक के लगभग 42,000 कर्मचारियों को अत्याधुनिक जेन एआई का इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षण मिला हैं। इनमें से 12,000 ऐसे लोग हैं जो जेन एआई परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं और एचसीएल के मुख्य मानव संसाधन अधिकारी राम सुंदरराजन ने पिछले हफ्ते कहा, ‘पिछली दो तिमाहियों में इस रफ्तार में काफी तेजी आई है।’
विप्रो ने कहा कि 87,000 से अधिक लोगों के पास अत्याधुनिक एआई कौशल है। इन्फोसिस और टेक महिंद्रा के पास क्रमशः लगभग 290,000 और 77,000 कर्मचारी हैं जिन्हें बुनियादी चीजों में प्रशिक्षण मिला है। टेक महिंद्रा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मोहित जोशी ने कहा कि इनमें अच्छी तादाद उन लोगों की है जिन्हें अत्याधुनिक प्रशिक्षण के साथ प्रमाणपत्र भी मिला है। इन्फोसिस ने अपने कर्मचारियों को तीन हिस्से में बांटा है जिनमें एआई की जानकारी रखने वाले (एआई-अवेयर), एआई को तैयार करने वाले (एआई-बिल्डर्स) और एआई के बेहद विशेषज्ञ लोग (एआई-मास्टर्स) शामिल हैं। अंतिम दो श्रेणियां क्लाउड पर उपलब्ध मॉडल का इस्तेमाल करने और मॉडल का बुनियादी ढांचा तैयार करने और इन्हें और बेहतर बनाने में शामिल हैं। हालांकि कंपनी ने इन तीन वर्गों से जुड़े कर्मचारियों की सटीक संख्या नहीं बताई।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह सही दिशा में उठाया गया एक कदम है लेकिन उनका मानना है कि अभी एक लंबा रास्ता तय करना है जब तक कि वे अपने ग्राहकों के लिए निचले स्तर से एआई से जुड़े बड़े बदलाव को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं।
एचएफएस रिसर्च के सीईओ फिल फर्स्ट ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘जेन एआई के कंप्यूटर प्रोग्रामिंग क्षेत्रों जैसे कि टेस्टिंग या ऐप तैयार करने के लिहाज से मुझे बहुत प्रगति होती दिख रही है। परंपरागत तौर पर सेवाओं देने वालों की बड़ी चुनौती यह है कि वे बहुत ज्यादा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) केंद्रित हैं और जेन एआई और एजेंटिंक समाधान के लिए अधिकतर मांग कारोबार की तरफ से आ रही है। भारतीय आईटी कंपनियों को केवल आईटी प्रक्रियाओं से परे कारोबार से जुड़े क्षेत्रों में कौशल बढ़ाने की जरूरत है, अगर वे उभरते हुए एआई केंद्रित करार में बड़ी हिस्सेदारी पाना चाहते हैं।’
उद्योग के कुछ अंदरूनी सूत्रों को इस बात पर संदेह है कि कंपनियों को अभी तक राजस्व और मुनाफे में कोई सार्थक लाभ दिख रहा है खासतौर पर तब जब आईटी उद्योग पारंपरिक कमाई करने वाले मॉडल के बजाय परिणाम आधारित मॉडल की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।
आईटी सेवा कंपनी के एक पूर्व शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘मैं इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हूं कि इन कंपनियों के लिए एडवांस या उच्च कौशल का क्या अर्थ है जब तक कि आप यह नहीं बताते हैं कि इन लोगों को किस तरह का प्रशिक्षण दिया गया है और यह कोई एआई वर्कशॉप है या फिर कोई सेल्फ लर्निंग कोर्स है। इससे बेंचमार्क मुश्किल हो जाता है।’विशेषज्ञ कर्मचारियों की कंपनी फेनो के सह-संस्थापक कमल कारंत का कहना है कि हर तिमाही में एक आईटी सेवा कंपनी से बाहर निकलने वाले 12-15 प्रतिशत प्रतिभाशाली लोगों की जगह लेने वाले लोग और एआई प्रशिक्षण पाने वाले लोगों की संख्या कुछ सवाल खड़े करती है।
कारंत ने कहा, ‘क्या वे जिन एआई सेवाओं के अनुबंध के लिए करार कर रहे हैं वे परिणाम आधारित नहीं हैं? अगर वे नतीजे देने वाले हैं तब उन्हें अपने पूर्णकालिक कर्मचारियों में और लोगों को जोड़ने की आवश्यकता नहीं है जो छोड़ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर अगर उनके पास एआई कौशल वाली प्रतिभा है तो यह उनकी दक्षता में क्यों नहीं दिख रहा है और उन्हें कर्मचारियों को हटाने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है और कर्मचारियों की लागत अब भी क्यों बढ़ रही है?’
उदाहरण के लिए टीसीएस की कर्मचारी लागत 30 जून को खत्म हुई पहली तिमाही में राजस्व के प्रतिशत के तौर पर बढ़कर 47.6 प्रतिशत हो गई जो एक वर्ष पहले 46 फीसदी थी।