जून अंत से मध्य जुलाई तक सुस्त रहने के बाद पिछले कुछ दिनों से दौरान दक्षिण-पश्चिम मॉनसून फिर सक्रिय हो गया है। जून अंत से मध्य जुलाई के दौरान बारिश कमजोर पडऩे से खरीफ फसलों की बुआई में कमी की आशंका जताई जाने लगी थी और महंगाई की लपटें और बढऩे का अंदेशा सताने लगा था।
जून के पहले पखवाड़े में देश में सामान्य से 10 प्रतिशत अधिक बारिश हुई थी। देश में कृषि कार्य पूरी तरह बारिश पर निर्भर है और देश के आर्थिक मिजाज पर भी यह असर डालती है। 19 जून के बाद बारिश लगभग थम गई थी, जिससे उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हो गया था। आंकड़ों के अनुसार 1 से 18 जुलाई के बीच दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सामान्य से 26 प्रतिशत कम रहा था। हालांकि अब बारिश एक बार फिर तेज हो गई है और पूरा देश दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की जद में आ गया है। इससे कई हिस्सों में बारिश की कमी की भरपाई करने में भी मदद मिली है। 23 जुलाई तक बारिश सामान्य से 2 प्रतिशत कम रही थी। 23 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में तक देश के 694 जिलों में 35 प्रतिशत में बारिश कम हुई थी। इससे पिछले सप्ताह में 42 प्रतिशत जिलों में कम बारिश दर्ज की गई थी।
पिछले सप्ताह जारी क्रिसिल रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 23 जून और 12 जुलाई के बीच उत्तर-पश्चिम भारत में 55 प्रतिशत कम बारिश हुई थी। राजस्थान में 23 जून से 12 जुलाई के बीच बारिश 58 प्रतिशत कम रही, जबकि मध्य भारत में इस अवधि के दौरान 39 प्रतिशत कम बारिश हुई थी। गुजरात में 67 प्रतिशत कम बारिश रही। बारिश का वितरण असमान रहने और बीच में लंबी अवधि तक इसके थम जाने से देश में खरीफ फसलों की बुआई पर भी असर हुआ। इससे फसल उत्पादन में भी कमी आने की आशंका जताई जाने लगी थी। ज्यादातर विशेषज्ञों और विश्लेषकों का मानना है कि अगले कुछ हफ्तों तक दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की प्रगति पर सभी की नजरें होंगी और इसी से खरीफ फसलों की बुआई और उत्पादन का मोटा अनुमान लगाया जा सकेगा।
बुआई में तेजी
जुलाई में ज्यादातर समय बारिश नदारद रहने के बाद 23 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में खरीफ फसलों की बुआई में तेजी दर्ज की गई। आंकड़ों के अनुसार अब तक 7.21 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों की बुआई हुई है। यह आंकड़ा पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 8.90 प्रतिशत कम है।
देश में 16 जुलाई तक पिछले वर्ष के मुकाबले खरीफ फसलों की बुआई 11.5 प्रतिशत तक कम रही थी। 9 जुलाई तक बुआई में 10.45 प्रतिशत कमी रही थी, यानी बुआई में कमी का सिलसिला जारी रहा। 16 जुलाई तक खरीफ फसलों की बुआई सामान्य रकबे (पिछले पांच वर्षों के औसत रकबे से) से 4 प्रतिशत कम रही। बड़ी फसलों की बात करें तो 23 जुलाई तक उड़द दाल का रकबा पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 23 प्रतिशत कम हो गया, जबकि मूंग और बाजरा का रकबा क्रमश: 18 प्रतिशत और 29.16 प्रतिशत कम हो गया है। मूंगफली का रकबा भी पिछले साल की तुलना में 23 जुलाई तक 13.16 प्रतिशत कम रहा था, जबकि सोयाबीन का रकबा 8.74 प्रतिशत कम रहा। 23 जुलाई तक पूरे देश में पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 7.71 प्रतिशत कम कम क्षेत्र में कपास की बुआई हो पाई। पिछले वर्ष के मुकाबले रकबा अब भी कम है।
कीमतों पर असर
दलहन एवं तिलहन की बुआई पर सभी की नजरें होंगी। अगर इनका रकबा कम रहा तो इनकी खुदरा कीमतें और बढ़ सकती हैं। इसका असर न केवल आम लोगों के बजट पर पड़ेगा बल्कि सरकार का महंगाई का गणित भी बिगड़ जाएगा। अगस्त के शुरू से त्योहारों के दौरान खाद्य तेल और दलहन की खपत बढ़ जाती है। इस लिहाज से भी ये फसलें अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। चावल के मामले में चिंता की बात नहीं है क्योंकि देश में इसका पर्याप्त भंडार है। घरेलू बाजार में खाद्य तेल के दाम पिछले एक वर्ष के दौरान तेजी से बढ़े हैं और इनमें कुछ जैसे सोयाबीन तेल की कीमत खासी बढ़ी है। 22 जुलाई 2020 को सोयाबीन की कीमत प्रति लीटर 118 रुपये थी लेकिन इस महीने दिल्ली के बाजार में यह बढ़कर 160 रुपये प्रति लीटर हो गई है। पिछले कुछ महीनों में दूसरे खाद्य तेलों की कीमतों में भी तेज वृद्धि हुई है। वैश्विक बाजारों में इनकी कीमतें बढऩा इसका प्रमुख कारण है। भारत सालाना खाद्य तेल की खपत का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्से का आयात करता है।
आंकड़ों के अनुसार अप्रैल और मई के दौरान दलहन के दाम भी तेजी से बढ़े हैं। हालांकि कुछ उपाय किए जाने के बाद दाम कम हुए हैं लेकिन अब भी अरहर, उड़द और मसूर के भाव पिछले वर्ष के मुकाबले 6 से 15 प्रतिशत तक अधिक हैं। कारोबारियों और बाजार पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि बढ़ती मांग और कम उत्पादन के कारण दलहन और खाद्य तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक बने रहेंगे इसलिए दिसंबर तक इनके दाम ऊंचे स्तर पर रह सकते हैं। दिसंबर के बाद देसी बाजार में खरीफ की फसलें उतर जाएंगी जब कहीं जाकर राहत मिल सकती है। इसमें कोई शक नहीं कि मॉनसून फिर सक्रिय होने से कृषि कार्यों में तेजी आएगी लेकिन आने वाले समय में बारिश लंबे समय तक नहीं हुई तो खरीफ फसलों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।