दुनिया भर के बाजारों में छायी मंदी से पैदा हुई अनिश्चितता और मांग में हुई कमी से पूरी दुनिया के कारोबारी भले ही रो रहे हों लेकिन सूरत के कपड़ा कारोबारियों पर इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है।
सूरत में बनने वाले हर किस्म के कपड़े विशेषकर साड़ियों की मांग में इस वर्ष भी ज्यादा कमी नहीं हुई है। जानकारों के मुताबिक, देश के सबसे बडे क़पड़ा बाजार की मांग बरकरार रहने की मुख्य वजह ग्राहकों का भरोसा, सस्ता और टिकाऊ उत्पादन है।
पिछले साल की अपेक्षा इस वर्ष सूरत की साड़ियां 10 फीसदी से 15 फीसदी महंगी हो गई है। इसका कारण कच्चे माल की कीमतों में करीब 10 फीसदी की वृध्दि के साथ मजदूरी में भी लगभग 12 फीसदी की हुई बढ़ोतरी है।
इस महंगाई के बावजूद पायल साड़ी प्राइवेट लिमिटेड के संजय भाई कहते हैं कि सूरत के कपड़ा कारोबार पर इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। पिछले साल की तरह इस साल भी देश के दूसरे हिस्सों से कपड़ा कारोबारी सूरत से माल ले जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि देश में सबसे ज्यादा साड़ियों का कारोबार सूरत में ही होता है। इसकी मुख्य वजह दूसरे शहरों में बनने वाली साड़ियों की अपेक्षा यहां की साड़ियों का सस्ता होना है जिसके कारण दूसरे शहरों के कपड़ा व्यापारी भी सूरत से माल लेकर जाते है।
कारोबारियों ने बताया कि यहां पर सभी तरह के कपड़े बनाए जाते हैं लेकिन यहां ज्यादातर पॉलिएस्टर से बनी हुई साडियां बनती है। पॉलिएस्टर से बनने वाली साड़ियों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें किया जाने वाला कलर टिकाऊ और रंग चटक रहता है, वह जल्दी फीका नहीं पड़ता है।
कपड़ा व्यापारी प्रमोद के अनुसार सबसे ज्यादा पॉलिएस्टर साड़ियों की ही मांग रहती है। यहां 75 रुपये से लेकर 50 हजार रुपये तक की साड़ियां मिलती है। लेकिन देश 150 रुपये से लेकर 400 रुपये की साड़ियों की मांग में सबसे ज्यादा रहती है।
प्रमोद बताते हैं कि 400 रुपये से ऊपर की साड़ियां एक क्लास के लोग या फिर शादी विवाह के लिए खरीदी जाती हैं। जबकि 400 रुपये के नीचे की साड़ियों की मांग साल भर रहती है। रोजमर्रा के इस्तेमाल और लेन-देन के लिए इसी रेंज की साड़ियां लोग पसंद करते हैं।हाल ही में बिहार में आयी बाढ़ के दौरान यहां से करीब एक लाख साड़ियां भेजी गई जो सभी 100 रुपये के रेंज की थी।
सूरत में बनने वाली साड़ियां महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब, दिल्ली सहित देश के लगभग सभी राज्यों में जाती है। देश के बाहर अमेरिका, यूरोप और दक्षिण अफ्रीका के देशों में यहां की बनी साड़ियों की भारी मांग रहती है। वैश्विक मंदी और रुपये में आयी कमजोरी का असर यहां भी दिखा है लेकिन कपड़ा कारोबारियों का कहना है कि यह थोड़ा असर ही डालेगी।
इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि सूरत की साड़ियों का बाजार विस्तृत दायरे में है जिससे रुपये के कमजोर होने का नुकसान कम फायदा ज्यादा है। दूसरी बात यह कि कपड़ा लोगों की मूलभूत जरुरत है। महंगाई चाहे जितनी ज्यादा हो जाए इस जरूरत की पूर्ति करनी ही होती है।
तकरीबन 10 फीसदी की दर से बढ़ने वाला सूरत का टेक्सटाइल इंडस्ट्री पर असर पड़ा भी तो विकास की दर इस बार 10 की जगह 5 से 8 फीसदी तक जा सकती है। यानी कारोबारियों को नुकसान नहीं होने जा रहा। हां फायदे में कमी हो सकती है।
एशिया के सबसे बड़े इस साड़ी बाजार में देश का 90 फीसदी पॉलिएस्टर इस्तेमाल किया जाता है। कटट गम, मगडल्ला और उदना नामक तीन बड़े इलाकों में फैले सूरत के इस बाजार में लगभग 40,000 कपड़े की दुकाने हैं, जिनमें प्रतिदिन 100 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का कारोबार होता है।
यहां 400 से ज्यादा डाइंग एवं प्रोसेसिंग हाउसों में रात-दिन कपड़ा तैयार किया जाता है। इनमें हर दिन करीब 3 करोड़ मीटर कच्चा फैब्रिक और 2.5 करोड़ तैयार फैब्रिक का उत्पादन किया जाता है।