अक्टूबर से लेकर मार्च तक दूध का उत्पादन ज्यादा होता है लेकिन इस साल यह मौसम दूध के कारोबार की मूल्य श्रृंखला के लिए कई मायनों में असामान्य है। आपूर्ति कम होने से दूध के दाम बढ़ चुके हैं। साथ ही चारे के दाम बढ़ने के कारण दूध की उत्पादन की लागत बढ़ रही है। पशुओं के चारे के लिए दो मुख्य स्रोत गेहूं और मक्का हैं। पशुओं के चारे में कमी का कारण गेहूं का उत्पादन गिरना और मक्के की मांग तेजी से बढ़ना है। रबी मौसम में असामान्य रूप से गर्मी बढ़ने के कारण गेहूं का उत्पादन गिर गया।
उधर एथनॉल और स्टार्च निर्माताओं के बीच मक्के की मांग तेजी से बढ़ गई। इसके अलावा मोटे अनाज की बाजार में मांग तेजी से बढ़नी शुरू हो गई। उद्योग के जानकारों के मुताबिक चारा महंगा होने के कारण किसानों ने मवेशियों को कम चारा खिलाया। कोविड-19 महामारी ने कृत्रिम गर्भाधान की गति को पहले ही कम कर दिया था। इससे प्रति जानवर दूध का उत्पादन गिर गया जबकि यह दूध के अधिक उत्पादन का मौसम है।
उद्योग में सुगबुगाहट बढ़ गई कि आने वाले महीनों में दूध की कमी हो सकती है। यह चर्चाएं उस दौर में शुरू हुई हैं जब कंपनियां दूध का उचित भंडार बनाने का प्रयास कर रही हैं। लिहाजा जो कंपनियां दूध का भंडारण कर रही हैं, वे बीते सालों की तुलना में ज्यादा मूल्यों पर दूध खरीद रही हैं। दुग्ध उत्पादों के बाजार (खासतौर पर मक्खन और वसा) में महाराष्ट्र महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र जैसे बाजार में बीते साल के 33 रुपये प्रति किलो से 20 से 24 फीसदी से अधिक की दर पर गाय का दूध बिक रहा है। दक्षिण भारत में दूध के दाम करीब 34 रुपये किलोग्राम हैं जो बीते साल की तुलना में कहीं ज्यादा है।
दूध का उत्पादन ज्यादा होने के मौसम में आपूर्ति आमतौर पर कम से कम 30 फीसदी बढ़ जाती है। सामान्य परिस्थितियों में भारत रोजाना करीब 55 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन करता है। दूध ज्यादा होने के मौसम में उत्पादन करीब 30 फीसदी बढ़ जाता है (यह मौसम मॉनसून से शुरू होता है और गर्मी की शुरुआत से पहले खत्म होता है)। दूध ज्यादा होने के मौसम में आपूर्ति बढ़ने से न केवल दामों में गिरावट आती है बल्कि कंपनियों को पर्याप्त मात्रा में दूध की आपूर्ति भी होती है। कंपनियां दूध को स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) में भी बदल लेती हैं।
एसएमपी का इस्तेमाल दूध का उत्पादन कम होने के मौसम (अप्रैल से सितंबर) और मक्खन जैसे दुग्ध उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है। कारोबार और उद्योग के जानकारों के मुताबिक भारत सालाना तीन लाख टन एसएमपी और एक लाख टन मक्खन का उत्पादन करता है जिसमें 60-70 फीसदी उत्पादन दूध के बहुतायत के मौसम में किया जाता है। उद्योग सूत्रों के अनुसार अभी भारत के पास 30 हजार -40 हजार टन एसएमपी का भंडार है। इस भंडार को मार्च तक करीब 2.5 लाख टन होने की जरूरत है ताकि दूध का उत्पादन कम होने के महीनों में पर्याप्त आपूर्ति की जा सके।
एक फ्रांसीसी डेरी समूह की सहायक कंपनी लैक्टैलिस इंडिया के प्रबंध निदेशक राहुल कुमार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया,’ पूरे परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो आपूर्ति कम होने से सालाना कुल अनुमान से कम ही दूध का उत्पादन होगा। माना जाता है कि 2021-22 में भारत ने लगभग 22.1 करोड़ टन दूध का उत्पादन किया है। लिहाजा सामान्य वृद्धि की दर से 2022-23 में इसे कम से कम 7 से 8 फीसदी बढ़ना चाहिए।
जमीनी स्तर से मिली जानकारियों और जैसे दूध के ज्यादा उत्पादन होने का मौसम शुरू होने के बाद यह लगता है कि नियमित बढ़ोतरी की दर को प्राप्त करना संभव नहीं है।’ हालांकि सरकारी सूत्रों के मुताबिक आसन्न कमी को लेकर जारी चर्चा सही नहीं है। एक कार्यक्रम के दौरान बातचीत के दौरान मत्स्य, पशु पालन और डेरी के राज्य मंत्री संजीव बालियान ने कहा, ‘कहीं भी दूध की कमी नहीं है। चारे के दाम बढ़ने के कारण दूध के दाम बढ़े हैं।’
स्टर्लिंग एग्रो इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक कुलदीप सलूजा के मुताबिक अभी एसएमपी का दाम करीब 330 रुपये प्रति किलोग्राम है जबकि बीते साल दूध का उत्पादन अधिक होने के मौसम में दाम 300 से 310 रुपये प्रति किलोग्राम थे। लिहाजा एसएमपी की आपूर्ति सुनिश्चित करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। हालांकि उन्होंने समस्या की ओर इंगित करते हुए कहा,’हालांकि मक्खन और वसा जैसे उत्पादों की आने वाले छह से आठ महीनों में आपूर्ति कम हो सकती है।
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त कदम उठाए जाने चाहिए।’ आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में दिसंबर, 2022 में सालाना आधार पर दूध के थोक दामों में 10.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जबकि महीने के आधार पर दू्ध के थोक मूल्य में 0.6 फीसदी की नाममात्र की बढ़ोतरी हुई। कंपनियां बीते महीनों के दौरान कई बार दूध के दामों में बढ़ोतरी कर चुकी हैं लेकिन बढ़े हुए मूल्य को उपभोक्ताओं पर डालने की भी एक सीमा है।
आईसीआईसीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘हमने देखा है कि सालाना आधार पर नवंबर में मक्के और गेहूं के दामों में क्रमश 27.4 फीसदी और 31 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इससे चारे के भी दाम बढ़ना लाजिमी है। इसलिए हमें उम्मीद है कि किसानों को बुनियादी कच्चे माल के दाम बढ़ने से राहत प्रदान करने के लिए दूध के ऊंचे दाम मुहैया कराये जाएं।’ उपभोक्ता दूध का जो मूल्य अदा करता है, उसका करीब 80 फीसदी किसानों को खरीद मूल्य के रूप में अदा कर दिया जाता है।
हालांकि आईसीआईसीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में दूध कंपनियों के लाभ में सालाना आधार पर गिरावट आएगी। इसी तरह रेटिंग एजेंसी इक्रा ने भी अनुमान जताया कि भारत की डेरी कंपनियों का परिचालन लाभ मार्जिन वित्त वर्ष 2023 में संकुचित होगा जबकि उनकी राजस्व वृद्धि में खासा इजाफा होना जारी रहेगा। सरकार ने कुछ दिन पहले संसद में कहा था कि बीते साल की तुलना में नवंबर में चारे के मूल्य में 28 फीसदी का इजाफा हो चुका है। मछली पालन, पशु पालन और डेरी के मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने लिखित जवाब में झांसी स्थित आईसीएआर- भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के चारे में कमी होने के अनुमान का उल्लेख किया।