Rupee hits all-time low: भारतीय रुपये में कमजोरी का सिलसिला जारी है। सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया आठ पैसे टूटकर 89.53 (अस्थायी) पर बंद हुआ। दिन के कारोबार के दौरान रुपया अपने ऑल टाइम लो पर पहुंच गया था। हालांकि बाद में इसमें मामूली सुधार देखने को मिला। गिरावट का कारण डॉलर की मजबूत बाजार मांग है। विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि रुपये में लगातार कमजोरी मुख्य रूप से बढ़ते व्यापार घाटे, भारत-अमेरिकी ट्रेड डील में देरी और केन्द्रीय बैंक (RBI) के सीमित दखल की वजह से है।
विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 89.45 पर खुला, फिर अपनी पकड़ खो दी और दिन के कारोबार में डॉलर के मुकाबले 89.79 (अस्थायी) के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया, जो पिछले बंद स्तर से 34 पैसे की गिरावट है। इससे पहले 21 नवंबर को डॉलर के मुकाबले रुपया 89.66 पर अपने दिन के कारोबार के निचले स्तर पर गया था, जब यह 98 पैसे गिरा था।
सोमवार को व्यापार के आखिर में, रुपया डॉलर के मुकाबले 89.53 (अस्थायी) पर बंद हुआ, जो पिछले बंद भाव से आठ पैसे की गिरावट है। शुक्रवार को, रुपया डॉलर के मुकाबले नौ पैसे गिरकर 89.45 पर बंद हुआ था।
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एक्सपर्ट्स का मानना है कि रुपये पर आगे भी दबाव बने रहने की आशंका है। केडिया एडवाइजरी ने कहा, “रुपया 89.79 के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। इस गिरावट की वजह लगातार खराब ट्रेड और पोर्टफोलियो फ्लो रहे हैं। इसके अलावा, भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर कोई प्रगति न होने से भी रुपया दबाव में रहा।”
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के सीनियर रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार का मानना है कि आने वाले दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपये पर दबाव बना रह सकता है, क्योंकि डॉलर की मांग और सप्लाई के बीच अंदरूनी असंतुलन बना रह सकता है।
कोटक सिक्योरिटीज के अनिंद्य बनर्जी ने कहा, “आगे 90 का लेवल बेहद अहम माना जाएगा। जैसे ही एक्सचेंज रेट इस स्तर के करीब पहुंचेगी, उम्मीद है कि आरबीआई बाजार में हस्तक्षेप जारी रखेगा। नीचे की तरफ 88.80 से 89 के बीच मजबूत सपोर्ट मौजूद है। जब तक रुपया लगातार 88.80 के नीचे ट्रेड नहीं करता, यह नहीं कहा जा सकता कि कमजोरी का चरम आ चुका है। यदि 90 के ऊपर ब्रेक मिलता है, तो अगला टारगेट 91.5 तक जा सकता है।”
परमार ने कहा कि निकट अवधि में, डॉलर-रुपया हाजिर भाव को 89.95 के स्तर पर रेजिस्टेंस और 89.30 के स्तर पर सपोर्ट मिल सकता है।
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रुपये में लगातार कमजोरी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है। डॉलर के मुकाबले रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचने से आयात महंगा हो जाता है, महंगाई बढ़ने का खतरा बढ़ता है और विदेशी निवेश पर भी नेगेटिव असर पड़ सकता है।
मार्केट एक्सपर्ट अनुज गुप्ता ने बताया, भारतीय रुपये में गिरावट वैश्विक और घरेलू दोनों कारणों से हो रही है। अमेरिका द्वारा भारतीय सामान पर लगाए गए ट्रेड टैरिफ, विदेशी निवेशकों की भारी बिकवाली, मजबूत अमेरिकी डॉलर और लगातार बढ़ता ट्रेड डेफिसिट — इन सभी ने रुपये पर दबाव बनाया है। इसी वजह से रुपया डॉलर के मुकाबले गिरकर 89.79 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया।
अर्थव्यवस्था पर इसका असर…
निर्यात की वैल्यू बढ़ेगी, लेकिन ज्यादा फायदा तभी होगा जब वैश्विक मांग मजबूत हो।
कच्चा तेल, सोना जैसी आयातित वस्तुएं महंगी होंगी।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए हालात चुनौतीपूर्ण बन सकते हैं।
चालू खाते का घाटा (CAD) बढ़ने की संभावना है।
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इस बीच, दुनिया की छह प्रमुख प्रतिस्पर्धी मुद्राओं की तुलना में डॉलर की मजबूती को मापने वाला डॉलर इंडेक्स, 0.17 फीसदी बढ़कर 99.28 पर कारोबार कर रहा था। वैश्विक कच्चा तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा कारोबार में 1.86 फीसदी बढ़कर 63.55 डॉलर प्रति बैरल हो गया।