लौह अयस्क के निर्यात में कमी आने वाली है। एक ओर जहां इस पर 10 फीसदी लेवी लगाने की बात की जा रही है तो दूसरी ओर भाड़े में 40 फीसदी बढोतरी से निर्यात करना फायदे का सौदा नहीं रहने वाला, इसके चलते लौह अयस्क के निर्यात में कमी आना तय है।
निर्यातको के लिए एक और बुरी खबर हो सकती है। इस तरह की बातें पूरे जोर पर हैं कि सरकार खनिजों पर मूल्य के अनुसार 15 फीसदी का और कर लगा सकती है।भारतीय खनिज उद्योग संघ (फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज, फिमी) के सलाहकार एसबीएस चौहान कहते हैं कि अगर इस तरह की लेवी और कर लगाए जाएंगे तो निर्यात से होने वाले मार्जिन में बहुत कमी आ जाएगी।
दूसरी ओर सबको खुश रखने का दावा करने वाले रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के पिटारे से भी निर्यातकों को कोई सौगात नहीं मिल पाई है।इस साल के रेल बजट में भाड़े में 40 फीसदी की बढोतरी कर दी गई है। निर्यातकों की मुश्किलों में कहीं से इजाफा होने की गुंजाइश नहीं लग रही है। खान मंत्रालय ने खनिजों की बिक्री पर 10 फीसदी लेवी लगाने जा रही है। बाजार के जानकारों का मानना है कि इससे घरेलू बाजार में भी फाइंस और लंप्स की आपूर्ति प्रभावित होगी।
देशी स्टील कंपनियां घरेलू निर्माण के लिए लंप्स (जिसमें 63 फीसदी से अधिक लोहे की मात्रा होती है)का ही प्रयोग करती हैं जबकि फाइन्स (जिसमें लोहे की मात्रा 63 फीसदी से कम होती है)का निर्यात किया जाता है। चौहान कहते हैं कि सरकार को घरेलू स्टील कंपनियों को फाइन्स की अधिक खरीद के बारे में निर्देश देना चाहिए। नहीं तो कुछ समय के बाद फाइन्स का भंडारण एक और समस्या बन जाएगा।
सरकारी आंकडों के अनुसार पिछले कुछ समय से लौह अयस्क के निर्यात में काफी कमी आई है। 2006-07 में जहां 9.37 करोड़ टन लौह अयस्क का निर्यात किया गया था तो 2007-08 में निर्यात घटकर 9.3 करोड़ टन रह गया। निर्यात में जो कमी आई है, उसके लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव, जहाज और रेल भाड़े में बढोतरी के साथ-साथ लेवी को भी जिम्मेदार माना जा रहा है।
यदि फिमी के सूत्रों पर विश्वास करें तो पता चलता है कि चालू लेवी के चलते ही साल 2004-05 में केवल पूर्वी क्षेत्र के निर्यातकों के निर्यात से होने वाले मुनाफे में ही 10 से 14 फीसदी की कमी आई है। बेलारी होसपेट क्षेत्र में भी 2004-05 में मुनाफा 32 फीसदी से घटकर 24 फीसदी ही रह गया।
बेलारी होसपेट क्षेत्र में मार्च 2008 में औसत परिवहन लागत बढ़कर 1,919 रुपये प्रति टन हो गई है, जिसमें लगभग दोगुने का इजाफा हुआ है। देश के दूसरे हिस्सों में भी तीन साल पहले जो भाड़ा 1,250 रुपये प्रति टन के स्तर पर था वो अब बढ़कर 2,565 रुपये प्रति टन तक हो गया है।
वैसे इस दौरान लौह अयस्क की कीमतों में भी अप्रत्याशित उछाल आया है। पूर्वी क्षेत्र में 2004-05 में लौह अयस्क की कीमतें जहां 50 डॉलर प्रति टन थीं जो बढ़कर 115 डॉलर प्रति टन तक हो गई हैं ठीक इसी तरह बेलारी होसपेट क्षेत्र में 2004-05 में लौह अयस्क की कीमतें 55 से 56 डॉलर प्रति टन थीं जो बढ़कर 125 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गर्इं। हालांकि ये बात मजेदार है कि निर्यात से होने वाले मुनाफे में कमी आने के बावजूद भी निर्यातक, निर्यात में लगे रहे।
वैसे भारतीय निर्यातक चीन में बढ़ती मांग को पूरी तरह से भुनाने में विफल रहे हैं।एक तरफ जहां ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में मौसम की मार के चलते चीन को किए जाने वाला निर्यात प्रभावित हुआ। ऐसे में भारतीय निर्यातक इस मौके का फायदा उठाने से चूक गए। वैसे यह तथ्य भी काबिलेगौर है कि भारत से होने वाले लौह अयस्क के निर्यात में 90 फीसदी से अधिक चीन को ही होता है।