विश्व के तीसरे सबसे बड़े कपास उत्पादक भारत में अगले साल कपास के उत्पादन में रेकॉर्ड वृद्धि हो सकती है।
सरकारी अधिकारियों के अनुसार, किसानों द्वारा जीन संवर्द्धित बीजों के इस्तेमाल पर खासा जोर देने से उत्पादन में यह बढ़ोतरी हो सकती है।
कपड़ा उद्योग के आयुक्त जगदीप नारायण सिंह के अनुसार इस साल कपास का उत्पादन 3.15 करोड़ बेल्स (1 बेल्स = 170 किलोग्राम) होने का अनुमान है जबकि संभावना जतायी जा रही है कि अगले साल उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। इसके चलते अगले वर्ष कपास का अनुमानित उत्पादन 3.25 करोड़ बेल्स रहने की बात सरकार ने कही है।
रेकॉर्ड उत्पादन होने से दुनिया में रेशे के सबसे बड़े उपभोक्ता चीन को किए जाने वाले कपास के निर्यात में तेजी आने की संभावना जतायी जा रही है। यही नहीं, इस वजह से अमेरिका और उजबेकिस्तान के साथ भारत की प्रतिद्वंद्विता भी बढ़ने की बात कही जा रही है।
उत्पादन में बढ़त का असर इसकी कीमत पर पड़ने की पूरी संभावना जतायी जा रही है। अभी पिछले ही साल अमेरिका में कई कपास उत्पादकों ने कपास की खेती छोड़ गेहूं और सोयाबीन की ओर णरुख कर लिया। इसका असर यह हुआ कि कपास की कीमत में 46 फीसदी की जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। सिंह ने बताया कि जीन संवर्द्धित बीजों के इस्तेमाल होने से कपास के उत्पादन में रेकॉर्ड वृद्धि होना तय है।
उनके मुताबिक, देश के कपास उत्पादन में वृद्धि होना लगातार जारी है। बेहतर सिंचाई सुविधा के उपलब्ध होने से महाराष्ट्र में कपास के उत्पादन में रेकार्ड वृद्धि हो सकती है। मालूम हो कि देश के पश्चिमी-केंद्रीय तटीय इलाके में स्थित महाराष्ट्र क्षेत्र कपास के उत्पादन के लिहाज से देश का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। सिंह ने बताया कि मोनेसेंटो के बोलगार्ड सहित सभी जीन संवर्द्धित कपास की किस्मों के उत्पादन क्षेत्र में अगले साल 10 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है।
2002 में जीएम बीजों की अनुमति मिलने के बाद से अब तक कपास की औसत उत्पादकता दोगुनी होकर 560 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गयी है। इस साल कुल कपास उत्पादक क्षेत्र के लगभग दो-तिहाई यानि कुल 64 लाख हेक्टेयर में जीएम कपास को लगाया गया है, जो पिछले साल की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा है।
भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के महानिदेशक डी. के. नायर के मुताबिक, अधिक उत्पादन और रेशे की गुणवत्ता बेहतर होने से देश का कपास निर्यात अगले सीजन में काफी बढ़ सकता है। अमेरिका से आपूर्ति में कमी होने के चलते चीन कच्चे माल के लिए दक्षिणी एशियाई देशों की ओर रुख कर सकते हैं। चीन की मांग में तेजी आने और अमेरिका के उत्पादन में कमी होने से भारत से कपास के होने वाले निर्यात में तेजी आएगी।