मंडी में खरीद-बिक्री के लिए मोबाइल ऐप

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 1:57 AM IST

सरकार कृषि व्यापार से जुड़े नए अध्यादेश के तहत मंडी के बाहर होने वाली खरीद-फरोख्त का रिकॉर्ड रखने के लिए मोबाइल ऐप तैयार कर सकती है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार भविष्य में ऐसी जरूरतों को देखते हुए यह कदम उठा सकती है। लोकसभा में सोमवार को पेश किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक में ऐसा प्रावधान है जिसमें कहा गया है कि केंद्र किसी व्यापारी के लिए इलेक्ट्रॉनिक पंजीकरण, व्यापार लेनदेन के तौर-तरीकों और व्यापार क्षेत्र में अनुसूचित किसानों की फ सल के भुगतान के तरीके के लिए एक प्रणाली निर्धारित कर सकता है अगर उसे ऐसा करना जनहित में जरूरी लगेगा।
अधिकारियों ने कहा कि अध्यादेश के इसी प्रावधान का इस्तेमाल करते हुए केंद्र अगर किसी समय यह महसूस करता है कि मंडियों के बाहर अवांछनीय व्यापारिक गतिविधियां चल रही हैं और बेची गई मात्रा के साथ-साथ कीमत को रिकॉर्ड करने की जरूरत है तब ऐसा किया जा सकता है। नियमित मंडियों से बाहर के क्षेत्र को व्यापार क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया जाता है। नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा,  ‘भारत में एक साल में कम से कम 200 दिनों तक रोजाना आधार पर लाखों घरों द्वारा दूध बेचा जाता है। वहीं दूसरी तरफ  फ सल एक साल में छह बार या अधिकतम 10 बार बेची जाती है। आप ही बताइए, इसका कौन रिकॉर्ड रखता है कि रोजाना किसको कितना दूध बेचा जाता है। शुरुआत में हम ऐसी सभी खरीद-फ रोख्त को बिल्कुल स्वतंत्र रखना चाहते थे लेकिन अध्यादेश में ऐसे तरीकों को लागू करने का प्रावधान है जिनके माध्यम से लेनदेन दर्ज हो सके और व्यापार पंजीकृत किया जा सके।’
वह इस तरह की आलोचना का जवाब दे रहे थे कि नए अध्यादेशों से मंडियों के बाहर व्यापार अनियमित हो सकता है और सरकार के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं होगा कि कितना बेचा और खरीदा गया जिससे महंगाई और जमाखोरी बढ़ेगी।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दो कृषि विधेयकों को विपक्ष के कड़े विरोध के बावजूद पेश किया जबकि उपभोक्ता मामलों के राज्यमंत्री रावसाहब दानवे ने तीसरा विधेयक पेश किया। तोमर ने कहा कि लगभग 86 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम की कृषि भूमि है और वे अक्सर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का लाभ नहीं उठा पाते हैं। उन्होंने सदन को आश्वस्त किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बना रहेगा। इस बीत संसद के बाहर किसान संगठनों ने तीनों अध्यादेशों को हटाने की मांग के साथ प्रदर्शन जारी रखा।
कांग्रेस और अन्य दल विधेयक का विरोध करते रहे हैं। उनका तर्क है कि यह एमएसपी प्रणाली द्वारा किसानों दी गई सुरक्षा कवच कमजोर होगी और बड़ी कंपनियों द्वारा किसानों के शोषण की स्थिति बनेगी। वहीं तोमर ने कहा कि यह विधेयक किसानों की मदद करेगा क्योंकि वे अपने खेत में ज्यादा निवेश करने में असमर्थ हैं और दूसरे लोग उसमें निवेश नहीं कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि विपक्षी सदस्यों को केंद्र पर भरोसा करना चाहिए। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार उन राज्यों में परामर्श के बिना ही विधेयक लेकर आई है जिनके राज्य में कृषि और मंडियों का विषय आता है। मंत्री ने विपक्षी सदस्यों से कहा कि वे ‘विरोध के लिए विरोध’ करने से पहले विधेयक की सामग्री एवं अन्तर्वस्तु का गहराई से अध्ययन करें। उन्होंने कहा कि किसानों को इन कानूनों से काफी फायदा होगा क्योंकि वे अपने उत्पादों को बेचने के लिए निजी कारोबारियों से समझौता कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि ये समझौते उपज के बारे में होंगे न कि खेत की जमीन के बारे में। उन्होंने इस आशंका को निर्मूल बताया कि इससे किसानों को अपनी जमीन का मालिकाना हक खोना पड़ सकता है।
विधेयकों का विरोध करते हुए कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि संवैधानिक प्रावधान बहुत स्पष्ट हैं कि कृषि राज्य सूची का विषय है। चौधरी ने कहा, ‘ऐसा कानून केवल राज्य सरकारों द्वारा लाया जा सकता है। इस विधेयक के माध्यम से, केंद्र सरकार, विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा बनाई गई कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) कानून को रद्द कर देगी।

First Published : September 14, 2020 | 11:47 PM IST