प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
आम काटकर, चूसकर, गूदा निकालकर खाना या मैंगो शेक बनाकर पीना तो हम सभी ने सुना और आजमाया है मगर अब मदिरा के शौकीनों के लिए दशहरी आम एकदम अलग रूप में आ रहा है। जी हां, अपने जायके और खुशबू के लिए देश-दुनिया में मशहूर मलिहाबादी दशहरी का स्वाद अब शराब के प्याले में भी मिलेगा। इसके लिए उत्तर प्रदेश का पहला वाइन कारखाना राजधानी लखनऊ की फल पट्टी मलिहाबाद में खोला गया है। यहां वाइन बनाने के लिए मलिहाबादी दशहरी का इस्तेमाल किया जाएगा। आम से बनी यह वाइन ‘मोयबी’ ब्रांड के नाम से बिकेगी, जिसे इसी साल अगस्त में पेश किया जाएगा।
वाइन बनाने के लिए मलिहाबाद के जल्लाबाद गांव में एम्ब्रोसिया नेचर लिविंग की वायनरी खोली गई है, जहां आम के गूदे से वाइन बनाई जाएगी। जब आम का सीजन नहीं होगा तब दूसरे फलों से भी वाइन बनाई जाएगी। प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने स्थानीय फलों से बनने वाली वाइन पर पांच साल के आबकारी शुल्क पूरी तरह माफ करने का फैसला किया है। प्रदेश के आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल का कहना है कि इस फैसले से किसानों की आय भी बढ़ेगी, स्थानीय उद्यमियों का कारोबार बढ़ेगा और युवाओं को रोजगार के नए मौके मिलेंगे। आबकारी विभाग ने कंपनी को हर साल 6 लाख लीटर वाइन बनाने का लाइसेंस दिया है। एम्ब्रोसिया आगे चलकर शहतूत, केला, नाशपाती और शहद से भी वाइन बनाएगी।
एम्ब्रोसिया नेचर आम के बगीचों से वे फल भी खरीद लेगी, जिन्हें लेने से फल आढ़ती इनकार कर देते हैं या औने-पौने भाव पर लेते हैं। कंपनी का कहना है कि दशहरी का सीजन खास तौर पर काफी कम दिन का होता है और आम को लंबे अरसे तक रखा भी नहीं जा सकता। दशहरी आम जल्द ही गलने लगता है या इसका गूदा ढीला हो जाता है। ऐसे गले हुए या पिलपिले आम की अच्छी कीमत नहीं मिलती। एम्ब्रोसिया ऐसे आम को सीजन के समय खरीदकर उनका गूदा स्टोर कर लेगी। बाद में उस गूदे का इस्तेमाल वाइन बनाने में किया जाएगा।
इस बार के सीजन में दशहरी उत्पादकों को आम की क्वालिटी खराब होने के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा है। तेज गर्मी पड़ने और बागों में नमी कम होने के कारण आम वक्त से पहले पेड़ों से झड़ गया और अंदर से गूदा ढीला हो गया।
मलिहाबाद इलाके में आम के बड़े आढ़ती आर के मिश्रा का कहना है कि पिछले कुछ सालों से जूस, अमावट और कैंडी बनाने के लिए कंपनी उनके पास दशहरी खरीदने आती ही है। मगर उनका कहना है कि आम से बनने वाले ऐसे उत्पादों का कोई भी कारखाना पूरी फल पट्टी में नहीं है, जिसकी कमी अब एम्ब्रोसिया ने पूरी कर दी है। उन्होंने बताया कि काफी पहले मलिहाबाद में आम पापड़, जूस और दूसरे उत्पाद बनाने का कारखाना था, जो अब बंद हो गया। हाल-फिलहाल कुटीर उद्योग के तौर पर कुछ लोगों ने आम पापड़ और अमावट बनाने का काम शुरू किया है मगर बड़ी कंपनियां यहां से कच्चा माल खरीदकर उत्पादन बाहर ही कर रही हैं।
क्षेत्र में अचार बनाने के भी इक्का-दुक्का कारखाने ही हैं। मिश्रा का कहना है कि मलिहाबाद-काकोरी में हर साल औसतन 1.2 से 1.5 लाख टन आम पैदा होता है। इसमें से 25-30 फीसदी आम पिलपिले और कमजोर गूदे की वजह से औने-पौने दाम पर ही बिकता है। फल-पट्टी में करीब 30,000 हेक्टेयर में आम के बगीचे हैं, जिनमें 80 फीसदी अकेले दशहरी आम के ही हैं।