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श्रीलंका, जॉर्डन और सेनेगल में संयंत्र लगाने की तैयारी में इफको

इफको के प्रबंध निदेशक केजे पटेल ने कहा कि इन संयंत्रों से उत्पादित 100 प्रतिशत तैयार माल की खरीदारी भारत करेगा।

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संजीब मुखर्जी   
Last Updated- December 11, 2025 | 8:55 AM IST

मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में महत्त्वपूर्ण कच्चा माल हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है, जिसे देखते हुए देश के सबसे बड़े उर्वरक उत्पादक इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) श्रीलंका, जार्डन और सेनेगल जैसे देशों में संयुक्त उद्यम के माध्यम से संयंत्र लगाने पर विचार कर रहा है। इफको के प्रबंध निदेशक केजे पटेल ने कहा कि इन संयंत्रों से उत्पादित 100 प्रतिशत तैयार माल की खरीदारी भारत करेगा।

एमडी का पदभार संभालने के बाद कुछ चुनिंदा पत्रकारों के साथ पहली बातचीत के दौरान पटेल ने कहा कि श्रीलंका में बेहतरीन गुणवत्ता का रॉक फॉस्फेट है। इसे देखते हुए कंपनी श्रीलंका में संयुक्त उपक्रम स्थापित कर डाई अमोनियम फॉस्फेट या फॉस्फोरिक एसिड उत्पादन पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि कंपनी जॉर्डन में फॉस्फोरिक एसिड बनाने की क्षमता 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख टन करने पर विचार कर रही है।
वहीं कंपनी सेनेगल में फॉस्फोरिक एसिड या डीएपी उत्पादन और उसे भारत निर्यात करने के लिए रॉक फॉस्फेट स्रोतों का पता लगाने पर विचार कर रही है।

अच्छी गुणवत्ता वाला कच्चा माल प्राप्त करना चुनौती

पटेल ने संवाददाताओं से कहा, ‘अच्छी गुणवत्ता वाला कच्चा माल प्राप्त करना चुनौती बनता जा रहा है। इसके लिए या तो अधिक भुगतान करना होगा या अधिक वित्तीय बोझ उठाना होगा। एक बेहतर विकल्प उन देशों में विनिर्माण संयंत्र स्थापित करना है, जहां ये संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।’
उन्होंने कहा कि हाल ही में 3 प्रमुख भारतीय उर्वरक कंपनियों ने रूस के यूरलकेम ग्रुप के साथ रूस में 18 से 20 लाख टन क्षमता का यूरिया संयंत्र स्थापित कनरे के लिए समझौता किया है, जो अन्य देशों के साथ समझौते का एक मॉडल हो सकता है।
रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड भारत में नहीं पाया जाता है और पूरी तरह से इसका आयात करना पड़ता है, जिसका इस्तेमाल डीएपी बनाने के लिए किया जाता है।

भारत में फसलों के पोषक के रूप में सबसे ज्यादा यूरिया का खपत होता है, जिसके बाद डीएपी का स्थान है। डीएपी की भारत में सालना खपत 100 से 110 लाख टन है, जिसमें से लगभग आधा आयात करना पड़ता है।

रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड का आयात हुआ महंगा

आंकड़ों से पता चलता है कि भू राजनीतिक वजहों से रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड के आयात का मूल्य पिछले एक साल में लगातार बढ़ा है, इसकी वजह से भारत में डीएपी के विनिर्माण की उत्पादन लागत बढ़ी है। जिन देशों से इन संसाधननों का आयात होता है, वे विदेश में इसके शिपमेंट पर अंकुश लगा रहे हैं। इसकी वजह से भारत पर असर पड़ रहा है।

वित्त वर्ष 2025 में खरीद लागत और भाड़ा (सीएफआर) मिलाकर फॉस्फोरिक एसिड की कीमत लगभग 948 से 1060 डॉलर प्रति टन थी, जो खरीफ 2025 में बढ़कर लगभग 1,153 से 1,258 डॉलर प्रति टन हो गई है। वहीं वित्त वर्ष 2025 में रॉक फॉस्फेट की दरें लगभग 205 से 230 डॉलर प्रति टन थीं, जो इस वर्ष खरीफ में लगभग 200 से 230 डॉलर प्रति टन पर बनी हुई हैं। वित्त वर्ष 2024-25 में इफको ने 41,244 करोड़ रुपये का कुल कारोबार किया और कर भुगतान के बाद उसे 2,823 करोड़ रुपये लाभ हुआ।

First Published : December 11, 2025 | 8:55 AM IST