प्याज अगर देश की गृहणियों, कारोबारियों और किसानों को रुलाती है, तो उसके चलते देश के नेताओं को भी खून के आंसू रोने पड़ते हैं। याद कीजिए, चंद बरसों पहले का वह समय, जब इसी प्याज ने दिल्ली में तख्ता पलट दिया था।
ज्यादातर राज्यों में प्याज के उत्पादन में 25 फीसदी की बढ़ोतरी होने के बावजूद पिछले तीन सालों में प्याज की कीमतों में सालाना 30 से 40 फीसदी की जोरदार बढ़ोतरी भी हो चुकी है।
तीन साल पहले के 500 से 600 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले इस साल ही प्याज की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर 1300 से 1400 रुपये प्रति क्विटल हैं।
नेशनल हॉर्टीकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के आंकड़ों के हिसाब से वर्ष 2006-09 के बीच देश में प्याज का उत्पादन 6668 मीट्रिक टन से बढ़कर 7,637 मीट्रिक टन हो गया है। लेकिन इस दौरान प्याज की कीमतें भी 500 से 600 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में 1300 से 1400 रुपये प्रति क्ंविटल हो गईं।
इन आंकड़ों को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक सवाल उठाते हैं कि उत्पादन बढ़ने के बावजूद आखिर घरेलू बाजार में प्याज की कीमतों में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी कैसे हो गई? कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार निर्यात को बढ़ावा देने के लिए घरेलू बाजार में प्याज की आवक को रोक रही है?
आंकड़े देखकर लगता तो कुछ ऐसा ही है। क्योंकि इसके निर्यात में भी इस दौरान 100 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वर्ष 2005-06 में जहां यह महज 71 लाख टन था, वहीं वर्ष 2006-07 में यह 116 लाख टन पहुंच गया।
और इस साल मार्च के अंत तक तो इसके 150 लाख टन तक पहुंच जाने की उम्मीद है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर निर्यात के बढ़ने की वजह क्या है?
अगर न्यूनतम समर्थन मूल्यों की बात की जाए तो पिछले दो सालों में सरकार द्वारा घरेलू बाजार में तय न्यूनतम समर्थन मूल्य 250 से 350 रुपये प्रति क्विटल के बीच रहा है तो अंतराष्ट्रीय बाजार में निर्यात के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की सीमा भी 300 से 400 रुपये प्रति क्विटल के बीच ही रही है।
यानी साफ है कि निर्यात के न्यूनतम समर्थन मूल्य के महज थोड़े से मुनाफे के लिए किसान अपनी फसल को निर्यात के नाम पर बेचने को ही तरजीह दे रहे हैं।
दूसरी ओर, दिलचस्प पहलू यह है कि घरेलू बाजार में महज 250 से 350 रुपये प्रति क्विंटल की दर से किसानों से फसल उठाने वाले थोक कारोबारियों से बाजार में खुदरा कारोबारियों तक पहुंचते-पहुंचते यही प्याज 800 से 1200 रुपये प्रति क्ंविटल हो जाता है। दामों में आया यही जबदस्त उछाल काबिले-गौर है।
इस बाबत उत्तर प्रदेश नर्सरी संघ के अध्यक्ष और प्याज किसान शिव सरन सहाय का कहना है कि घरेलू बाजार में प्याज की कीमतों में हुई 70 से 80 फीसदी तक की बढ़ोतरी का फायदा किसानों को तो मिल ही नहीं रहा है।
उल्टे खाद, बीज और उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी हो जाने से लागत में 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो गई है। हां, ऐसा जरूर हुआ है कि किसान 10 फीसदी तक ज्यादा कीमत मिलने के कारण आढ़तियों को बेचने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं।
फोरम फॉर बॉयोटेक्नोलॉजी और फूड सिक्योरिटी के कृषि विशेषज्ञ देवेन्द्र शर्मा का भी यही मानना है कि कीमतों में हुई इस जबरदस्त बढ़ोतरी का सबसे ज्यादा फायदा आढ़तियों को हो रहा है। बढ़ी हुई कीमतों में 30 से 50 फीसदी तक की हिस्सेदारी तो केवल आढ़तियों की ही है।
किसान तो इसमें दूर तक नदारद है। प्याज के इस सारे खेल पर आश्चर्य जताते हुए शर्मा कहते हैं कि बाजार का साधारण नियम है कि जब उत्पादन ज्यादा होगा तो निर्यात बढ़ेगा और घरेलू बाजार में कीमतें गिरेंगी। लेकिन यहां तो सारा खेल उल्टा ही नजर आ रहा है।
उनकी नजर में उत्पादन और निर्यात में बढ़ोतरी के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी का सारा खेल वायदा कारोबार का दोष है। वह कहते हैं- हमारे देश में प्याज और आलू जैसी कृषि जिंसों के वायदा कारोबार से प्याज का निर्यात तो लगातार बढ़ रहा है लेकिन घरेलू बाजार में कीमतों के बढ़ने से आम आदमी की जान निकलती जा रही है।
हमारे देश में वायदा कारोबार का मॉडल अमेरिका से लिया गया है, जो भारतीय परिवेश के हिसाब से एक दम फुस्स साबित हो रहा है। अगर अमेरिका में ही वायदा कारोबार इतना सफल है तो वहां की सरकार किसानों को इतनी भारी-भरकम सब्सिडी क्यों देती है।
अमेरिकी सरकार ने अगले पांच साल में किसानों को 307 अरब डॉलर की भारी-भरकम रकम सब्सिडी के तौर पर देने की योजना बनाई है। वैसे, एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी आजादपुर टौमेटो एंड ओनियन ट्रेडर्स एसोसिएशन के महासचिव राजेन्द्र शर्मा का कुछ और ही मानना है।
वह कहते हैं- प्याज की कीमतों में इतनी बढ़ोतरी का कारण तो पिछले साल मानसून का समय से पहले आना रहा था। इसके कारण गुजरात और महाराष्ट्र में प्याज किसानों की काफी बड़ी फसल सड़ गई थी।
इसके कारण कीमतों में भारी इजाफा हुआ। उनकी राय यही है कि घरेलू बाजार में भले ही प्याज की आवक रुक जाए लेकिन निर्यात में कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए वरना हमें काफी घाटा उठाना पड़ सकता है।
पिछले कुछ साल में प्याज का उत्पादन बढ़ने से निर्यात में काफी इजाफा हो रहा है, इससे जहां किसानों की स्थिति तो सुधर ही रही है , देश के विदेशी मुद्रा कोष में भी बढ़ोतरी हो रही है।
चुनाव में लगेगा प्याज का तड़का?
उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ निर्यात भी बढ़ा
फिर भी घरेलू बाजार में कीमतों में हुई बढ़ोतरी
किसानों को मिल रहा झुनझुना, आढ़ती काट रहे हैं चांदी
आम आदमी के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिक भी कीमतें बढ़ने पर हैरान