दुनिया भर में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव, सरकारी नीतियों की अनिश्चितता और अमेरिका में शटडाउन की आशंकाओं के बीच सोना और बिटकॉइन दोनों की कीमतों में तेज उछाल देखने को मिला है। इससे निवेशकों और नीति-निर्माताओं का ध्यान एक बार फिर इन दोनों संपत्तियों की ओर गया है। लेकिन इस बार एक बड़ा सवाल सामने आया है। क्या बिटकॉइन को भी गोल्ड की तरह रिजर्व एसेट माना जा सकता है?
साल 2025 अब तक कमोडिटी बाजार के लिए बेहतरीन साबित हो रहा है। इस साल कमोडिटी ने शेयर मार्केट को पीछे छोड़ दिया है। चांदी की कीमतें करीब 66.8% तक बढ़ चुकी हैं, जबकि सोना अब तक 48% से अधिक चढ़ गया है। इसी दौरान दुनिया की सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन में भी 31.8% की मजबूत बढ़त दर्ज की गई है और इसकी कीमत 1,25,000 डॉलर के पार चली गई है।
डॉयचे बैंक रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कैलेंडर ईयर 2025 सोने और बिटकॉइन दोनों के लिए असाधारण साल साबित हो रहा है। बैंक का कहना है कि डॉलर की कमजोरी, बढ़ती भू-राजनीतिक और टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितताएं, और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियों को लेकर उठते सवालों ने इन दोनों एसेट क्लासेज को मजबूती दी है। रिपोर्ट के अनुसार, जब ट्रेडिशनल करेंसी में भरोसा घटता है, तब निवेशक वैकल्पिक संपत्तियों- जैसे सोना और अब बिटकॉइन की ओर रुख करते हैं।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के 2025 सर्वे के अनुसार, इस साल केंद्रीय बैंकों की गोल्ड खरीदारी में रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ोतरी हुई है। सर्वे में शामिल 43% सेंट्रल बैंकों ने कहा है कि वे आने वाले समय में अपने गोल्ड रिजर्व को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। वहीं 95% बैंकों का मानना है कि अगले एक साल में दुनिया भर के गोल्ड भंडार में और बढ़ोतरी होगी।
डॉयचे बैंक का मानना है कि मार्च 2025 में अमेरिका की ट्रंप सरकार द्वारा US Strategic Reserve बनाने के फैसले के बाद से यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या बिटकॉइन को भी रिजर्व एसेट के रूप में जोड़ा जा सकता है। पारंपरिक रूप से सेंट्रल बैंक अपने भंडार में सोना और “सेफ हेवन” मुद्राएं जैसे डॉलर या यूरो रखते रहे हैं। लेकिन अब बढ़ती मुद्रास्फीति, भू-राजनीतिक अस्थिरता और क्रिप्टो रेगुलेशन में तेजी के कारण कई देश अपने रिजर्व ढांचे पर पुनर्विचार कर रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि फिलहाल सोना रिजर्व एसेट के रूप में अपनी अग्रणी भूमिका बनाए रखेगा, लेकिन आने वाले सालों में बिटकॉइन भी सेंट्रल बैंकों की बैलेंस शीट पर दिखाई देने लगेगा। बैंक का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक कई देशों के आधिकारिक रिजर्व में बिटकॉइन को शामिल किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि बिटकॉइन और गोल्ड दोनों ही सीमित सप्लाई वाले एसेट हैं। इसके अलावा, इनका शेयर मार्केट जैसी दूसरी संपत्तियों से ज्यादा संबंध नहीं होता, इसलिए जब बाकी बाजार गिरता है तब भी इनकी कीमतें अक्सर टिके रहती हैं। इसी वजह से लोग इन्हें महंगाई और राजनीतिक अस्थिरता के समय सुरक्षित निवेश मानते हैं।
हालांकि, डॉयचे बैंक का कहना है कि ना तो सोना और ना ही बिटकॉइन अमेरिकी डॉलर की जगह ले सकता है, क्योंकि डॉलर अभी भी दुनिया की सबसे बड़ी और भरोसेमंद मुद्रा है। लेकिन जैसे-जैसे क्रिप्टो से जुड़े नियम और कानून मजबूत होंगे, बिटकॉइन की कीमत में आने वाला तेज उतार-चढ़ाव कम होगा। समय के साथ यह एक भरोसेमंद वैकल्पिक निवेश या भंडार संपत्ति के रूप में अपनी जगह बना सकता है।