देश में बीटी कॉटन की सफलता के बाद केंद्र सरकार का बायोटेक्नोलॅजी विभाग चावल और आलू की संवर्द्धित किस्म उतारने जा रहा है।
चावल और आलू की यह सुधरी किस्म न केवल उत्पादकता के लिहाज से बल्कि पोषक तत्वों के मामले में भी बेहतर होगी।
बायोटेक्नोलॅजी विभाग प्रोग्राम सपोर्ट के समन्वयक और वरिष्ठ प्लांट बायोटेक्लोजिस्ट स्वप्न दत्ता ने बताया, ”विभाग ने इस मकसद को पूरा करने के लिए 4 करोड़ रुपये कलकत्ता विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग को आबंटित किए हैं।
जीन परिवर्तित चावल के ट्रांसलेशनल रिसर्च नाम से होने वाला यह शोध कार्य चावल की पोषक गुणों में वृद्धि करेगा। यही नहीं चावल की उत्पादकता बढ़ाना भी इस रिसर्च का मकसद होगा।”
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल चावल के बड़े उत्पादकों में से है। पिछले साल यहां करीब 1.6 करोड़ टन चावल पैदा किया गया था। लिहाजा यदि यह शोध कार्य सफल हो गया तो इसका सबसे ज्यादा फायदा पश्चिम बंगाल को ही होगा।
दत्ता के मुताबिक, चावल का मौजूदा उत्पादन बढ़ाकर दोगुना किया जा सकता है, यदि कम उपज वाली परंपरागत किस्मों जैसे खितिस, शताब्दी, स्वर्ण, आईआर-64 और बीआर-29 के कुछ जीनों में सुधार लाया जाए।
अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के अनुसार, यह संभव हो सकता है जब केवल एसडी-1 जीन में परिवर्तन लाकर धान के पौधों की लंबाई आधी कर दी जाए।
इससे उपज में दो से तीन गुनी बढ़ोतरी का अनुमान है और तब एक हेक्टेयर में 3 से 4 टन धान पैदा होगा।
विभाग गोल्डन इंडिका नाम के चावल की ऐसी किस्म विकसित करने में जुटा है, जिसमें लौह तत्व, प्रोटीन और बीटा-कैरोटिन की मात्रा ज्यादा होती है।
इसका इस्तेमाल सीधे खेतों में हो सकता है। दत्ता ने बताया कि फिलहाल इसके विभिन्न चरणों का परीक्षण हो रहा है। उम्मीद है कि अगले दो साल में यह आम आदमी के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हो जाएगा।