देश का सबसे बड़ा कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज) अगले हफ्ते एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) का वायदा कारोबार शुरू करेगा।
कच्च्चे तेल में लगी आग के बीच एटीएफ का वायदा कारोबार शुरू होने से न सिर्फ रिफाइनिंग कंपनियां बल्कि एयरलाइंस कंपनियों को भी लाभ पहुंचेगा।
कच्चे तेल की प्रोसेसिंग केबाद एटीएफ तैयार होता है और कच्चे तेल में आए उफान के चलते इसके कारोबारी और इसका इस्तेमाल करने वाले दोनों ही प्रभावित हुए हैं क्योंकि सप्लाई में काफी अनिश्चितता आई है।
ऐसे में सप्लाई चेन को बनाए रखने के लिए एविएशन कंपनियां और तेल उद्योग से जुड़ी इकाइयों के लिए एटीएफ वायदा काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक, एटीएफ वायदा शुरू होने के बाद एमसीएक्स में कम से कम 100 बैरल और अधिकतम 10 हजार बैरल का कारोबार किया जा सकेगा। वैसे भी अंतरराष्ट्रीय उड़ान संचालकों के लिए भारत एक बड़ा हब बन सकता है और अंतरराष्ट्रीय एविएशन कंपनियां धीरे-धीरे अपने पांव पसार रही हैं।
ऐसे में एटीएफ की मांग में उछाल आना तय है क्योंकि विभिन्न हवाई अड्डों पर पर एटीएफ की भारी मांग होगी। भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, एयर इंडिया, गो एयर और जेट एयरलाइंस ने हेजिंग के लिए एमसीएक्स के प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करने में रुचि दिखाई है।
एक विशेषज्ञ के मुताबिक, एमसीएक्स के एटीएफ वायदा से सप्लाई के संकट के निजात मिलेगा। इसके लिए घरेलू प्लैटफॉर्म पर बेंचमार्क प्राइस उपलब्ध होगा ताकि एटीएफ के इस्तेमाल करने वाले अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से बेहतर मोल भाव कर सकें। एटीएफ वायदा से रिफाइनिंग कंपनियों को अपने उत्पादन का अनुमान लगाने में भी काफी मदद मिलेगी और वे बेहतर निष्पादन कर पाएंगे।
भारत फिलहाल एटीएफ के मामले में आत्मनिर्भर है और यहां अनुमानित कपैसिटी करीब 78.05 लाख टन का है। भारत कुल 36.62 लाख टन पेट्रोलियम प्रॉडक्ट का निर्यात भी करता है, जिसमें केरोसिन शामिल है। भारतीय तेल कंपनियां घरेलू मांग पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में केरोसिन और एटीएफ का उत्पादन करती हैं। कुल पेट्रोलिमय पदार्थों की बिक्री में एटीएफ की बिक्री का योगदान करीब 3.5 फीसदी का है।
एटीएफ के इस्तेमाल करने के मामले में एविएशन इंडस्ट्री सबसे ऊपर है। एयरलाइंस के कुल लागत में 40 फीसदी का योगदान एटीएफ करता है। कच्चे तेल में होने वाले उतारचढ़ाव के चलते एटीएफ और केरोसिन की कीमतों पर काफी असर पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में एटीएफ की कीमत जनवरी 2005 के 46 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर मई 2008 में 122 डॉलर पर पहुंच चुका है। एविएशन इंडस्ट्री में उफान के चलते एटीएफ की मांग में काफी तेजी आई है।
कई बजट एयरलाइंस यानी लो कॉस्ट एयरलाइंस के शुरू होने से भी एटीएफ की खपत में बढाेतरी हुई है। 2000-01 की तुलना में 2006-07 में एटीएफ की खपत में करीब 77 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। देश में हेजिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण ये कंपनियां अंतरराष्ट्रीय प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करती रही हैं ताकि कीमतों में होने वाले उतारचढ़ाव से काफी हद तक बचा जा सके।
फिलहाल एयरलाइंस के कुल ऑपरेटिंग कॉस्ट में एटीएफ की हिस्सेदारी 45 फीसदी से ज्यादा की है। उदाहरण के तौर पर एयर इंडिया का फ्यूल बजट 2003-04 के 1339.75 करोड़ केमुकाबले 2004-05 में 2100 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। फ्यूल बजट में उछाल मुख्य रूप से एटीएफ में बढ़ोतरी की वजह से आया है।
घरेलू एक्सचेंज में एटीएफ वायदा शुरू होने के बाद एयरलाइंस कंपनियां अपने फ्यूल बजट में सुधार कर पाने में सक्षम हो सकेंगी। हालांकि कुछ विशेषज्ञ एटीएफ वायदा की सफलता को लेकर आशंकित भी हैं।