वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2,250 करोड़ रुपये का आवंटन करते हुए निर्यात संवर्द्धन मिशन के शुरुआत की घोषणा की। इसका मकसद ऐसे समय में भारत के निर्यात की प्रतिस्पर्धा बढ़ाना है जब वैश्विक स्तर पर संरक्षणवाद और अनिश्चितता बढ़ रही है। मिशन के तहत वाणिज्य विभाग, सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम (एमएसएमई) के साथ वित्त मंत्रालय विभिन्न सेक्टरों के लिए निर्यात लक्ष्य तय करेंगे। विदेशी बाजारों में गैर शुल्क बाधाओं से निपटने के लिए एमएसएमई को समर्थन करने के उपाय भी किए जाएंगे।
विदेशी बाजारों में गैर शुल्क बाधाओं से निपटने के लिए एमएसएमई को समर्थन देने के कदम ऐसे समय में उठाए जा रहे हैं, जब भारत के निर्यातक यूरोपीय संघ (ईयू) की जलवायु परिवर्तन से जुड़ी गैर शुल्क उपायों को लागू करने से प्रभावित हुए हैं। इन उपायों में कार्बन बॉर्डर अडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) और ईयू डीफॉरेस्टेशन रेगुलेशन (ईयूडीआर) शामिल हैं।
2025-26 के बजट में सीतारमण ने कहा, ‘हम निर्यात संवर्द्धन मिशन स्थापित करेंगे। इसमें मंत्रालय और सेक्टर के स्तर पर लक्ष्य तय होंगे। इसका संचालन वाणिज्य, एमएसएमई और वित्त मंत्रालय मिल जुलकर करेंगे। यह निर्यात ऋण तक आसान पहुंच, सीमा पार से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के साथ विदेशी बाजारों में गैर शुल्क बाधाओं से एमएसएमई को निपटने में मदद करेगा।’
चालू वित्त वर्ष के शुरुआती 9 महीनों के दौरान भारत ने 321.37 अरब डॉलर की वस्तुओं का निर्यात किया है जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 1.6 प्रतिशत ज्यादा है। वाणिज्य विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि अगर सेवा को भी शामिल कर लें तो निर्यात 6 प्रतिशत बढ़कर 602.64 अरब डॉलर हो गया है। सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के दौरान 800 अरब डॉलर की वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात का है।
दिलचस्प है कि वाणिज्य विभाग और निर्यातकों के अनुरोध के बावजूद वित्त मंत्रालय ने निर्यातकों के लिए इंटरेस्ट इक्वलाइजेशन स्कीम (आईईएस) की अवधि नहीं बढ़ाई है, जिसका लक्ष्य खासकर एमएसएमई को लाभ पहुंचाना था। बजट दस्तावेज के मुताबिक योजना के लिए संशोधित अनुमान 2,250 करोड़ रुपये है। मार्केट एक्सेस इनीशिएटिव (एमएआई) योजना का आवंटन भी खत्म कर दिया गया है।
सीतारमण ने आगे कहा कि मेक इन इंडिया पहल को आगे बढ़ाने के लिए सरकार राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन स्थापित करेगी जिसमें लघु, मझोले और बड़े उद्योग शामिल होंगे। केंद्रीय मंत्रालयों और राज्यों के लिए नीतिगत समर्थन, लागू करने के खाके, प्रशासन और निगरानी ढांचा मुहैया कराकर इसे मूर्त रूप दिया जाएगा।