इस साल के बजट में राज्य औषधि नियामक प्रणालियों को मजबूत करने के लिए आवंटन में 2023-24 के संशोधित बजटीय अनुमानों की तुलना में काफी वृद्धि देखी गई। भारत के औषधि नियामक ने नियमित ऑडिट और जोखिम-आधारित निरीक्षण के साथ दवा विनिर्माण इकाइयों के प्रति सख्त रुख अपनाने पर जोर दिया है।
2024-25 में स्वास्थ्य बजट में राज्य औषधि नियामक प्रणालियों को मजबूत करने के लिए लगभग 75 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जो 2023-24 के संशोधित अनुमान 52 करोड़ रुपये से अधिक है। अगर 2022-23 से तुलना करें तो पता चलता है कि यह आवंटन काफी ज्यादा है। वित्त वर्ष 2023 में स्वास्थ्य बजट में इस उद्देश्य के लिए सिर्फ 22.87 करोड़ रुपये रखे गए थे। वहीं, इस साल फरवरी में पेश अंतरिम बजट की तुलना में यह आवंटन लगभग सपाट रहा।
केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) जल्द ही संशोधित शिड्यूल एम दिशा-निर्देशों के साथ अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए बड़ी दवा कंपनियों का ऑडिट शुरू करेगा। ये दिशा-निर्देश जनवरी के शुरू में अधिसूचित किए गए थे। ड्रग्स ऐंड कॉस्मेटिक्स रूल 1945 के शिड्यूल एम में औषधि उत्पादों के लिए अच्छी विनिर्माण प्रणालियां (जीएमपी) निर्धारित की गई हैं। ऑडिट के लिए 250 कंपनियों की पहचान की गई है। नियामक की कम से कम 250 इंजीनियर नियुक्त करने की योजना है।
भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) राजीव रघुवंशी ने सीडीएससीओ में एक आंतरिक वैज्ञानिक कैडर बनाने का विचार भी पेश किया, जो कंपनियों के आवेदनों की समीक्षा करेगा। पिछले महीने उन्होंने संवाददाताओं को बताया था कि सीडीएससीओ फार्मा तंत्र से जुड़ी सुविधाओं की ऑडिटिंग के प्रयास तेज कर रहा है। कुल मिलाकर अभी करीब 600 इकाइयों की जांच की गई है।
उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में भारतीय औषधि नियामक द्वारा निरीक्षण की गई लगभग 36 प्रतिशत दवा इकाइयों को गुणवत्ता मानकों का पालन न करने पर बंद होने के लिए मजबूर होना पड़ा। सीडीएससीओ दिसंबर 2022 से निर्माण संयंत्रों की जोखिम-आधारित जांच कर रहा है। लगभग 400 इकाइयों का निरीक्षण किया गया और करीब 36 प्रतिशत को बंद करना पड़ा क्योंकि वे मानकों पर खरी नहीं उतरीं।
भारत में करीब 10,000 दवा इकाइयां हैं जिनमें से 80 प्रतिशत एमएसएमई हैं। एमएसएमई इकाइयों में अक्सर संपूर्ण रूप से गुणवत्ता नियंत्रण वाली लैब का अभाव रहता है और उन्हें डेटा एकीकरण की समस्या का भी सामना करना पड़ता है।