प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने संबंधित पक्ष के लेनदेन संबंधी मानदंडों में बड़ा बदलाव करते हुए ऐसे लेनदेन की मैटेरियलिटी सीमा को सूचीबद्ध कंपनी के कुल कारोबार से जोड़ने का प्रस्ताव दिया है। बाजार नियामक के इस प्रस्ताव से बड़ी कंपनियों को अधिक फायदा होने की उम्मीद है।
सेबी ने कहा है कि प्रस्तावित बदलाव किए जाने से शीर्ष 100 सूचीबद्ध कंपनियों के लिए शेयरधारकों की मंजूरी की आवश्यकता वाले संबंधित पक्ष के लेनदेन की संख्या में करीब 60 फीसदी की कमी आ सकती है। मौजूदा नियमों के तहत, लेनदेन 1,000 करोड़ रुपये से अधिक या सूचीबद्ध कंपनी के कुल वार्षिक कारोबार के 10 फीसदी से ज्यादा हो तो उसे मैटेरियल माना जाता है।
बाजार नियामक ने सबके लिए समान दृष्टिकोण को बड़ी सूचीबद्ध कंपनियों के लिए बोझिल बताते हुए कुल कारोबार बढ़ने पर लेनदेन की सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। सूचीबद्ध कंपनियों को मैटेरियल संबंधित पक्ष के लेनदेन के लिए शेयरधारकों और ऑडिट समिति से मंज़ूरी लेनी होती है।
नए मानदंडों के तहत अगर वार्षिक कुल कारोबार 20,000 करोड़ रुपये तक है तो संबंधित पक्ष के लेनदेन की सीमा 10 फीसदी होगी। अगर कारोबार 20,001 करोड़ रुपये से 40,000 करोड़ रुपये के बीच है तो यह सीमा तभी लागू होगी जब लेनदेन 2,000 करोड़ रुपये का हो और सूचीबद्ध कंपनी के वार्षिक कुल कारोबार का 5 फीसदी हो।
अगर कुल कारोबार 40,000 करोड़ रुपये से अधिक है तो उसके लिए यह सीमा 3,000 करोड़ रुपये के साथ कुल कारोबार का 2.5 फीसदी या 5,000 करोड़ रुपये (जो भी कम हो) होगी। सेबी ने कहा है कि 5,000 करोड़ रुपये की सीमा अल्पांश शेयरधारकों के हितों की रक्षा के लिए है। संबंधित पक्ष के लेनदेन संबंधी मानदंड वित्तीय स्थिति पर नियंत्रण रखते हुए पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्म इनगवर्न रिसर्च के श्रीराम सुब्रमण्यन ने कहा कि यह छूट तभी व्यावहारिक होगी जब संबंधित पक्ष के लेनदेन संबंधी खुलासे ऑडिट समितियों और शेयरधारकों के समक्ष किए जाएं। कंपनी जगत की ओर से इन छूटों की मांग काफी समय से की जा रही थी क्योंकि ऑडिट समितियों और अनुपालन का बोझ बढ़ गया था। यह प्रस्ताव सूचीबद्धता दायित्व एवं खुलासा (एलओडीआर) अधिनियम पर एक सलाहकार समिति की सिफारिशों पर आधारित है।
बाजार नियामक ने सहायक कंपनी के साथ किए गए संबंधित पक्ष के ऐसे लेनदेन के लिए भी सीमा में बदलाव का प्रस्ताव दिया है जहां सूचीबद्ध कंपनी लेनदेन का हिस्सा नहीं है। ऐसे 1 करोड़ रुपये से अधिक के लेनदेन के लिए ऑडिट समिति से मंजूरी लेने की जरूरत तभी होगी जब लेनदेन का मूल्य एकल आधार पर सहायक कंपनी के वार्षिक कुल कारोबार के 10 फीसदी या एलओडीआर के तहत संबंधित पक्ष के लेनदेन की सीमा (जो भी कम हो) से अधिक होगा।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण बदलाव के तहत सूचीबद्ध कंपनी अथवा सहायक कंपनी से कुछ खुदरा खरीद पर निदेशकों और प्रमुख प्रबंधक कर्मियों के रिश्तेदारों को छूट प्रदान की गई है। वार्षिक आम बैठक में शेयरधारकों द्वारा दी गई मंजूरी अगली वार्षिक आम बैठक की तारीख, लेकिन अधिकतम 15 महीने तक तक मान्य होगी। अगर ऐसी मंजूरी वार्षिक आम बैठक के इतर अन्य बैठक में ली गई हो तो वह एक साल के लिए मान्य होगी।