आज का अखबार

उभरते बाजारों की इक्विटी और खास तौर से भारत पिछड़ा: प्रवीण जगवानी

प्रवीन जगवानी ने कहा कि अब भारत का नजरिया सुधार रहा है। वैल्यूएशन सामान्य हो रहे हैं। दीर्घकालिक बुनियादी कारक भी मजबूत बने हुए हैं।

Published by
समी मोडक   
Last Updated- December 01, 2025 | 9:05 AM IST

वैश्विक मूमेंटम लगभग दो वर्षों से भारत को पीछे छोड़ रहा है। इसी कारण विदेशी निवेशकों ने ताइवान, दक्षिण कोरिया और चीन की ओर रुख किया है। वे अमेरिका-नेतृत्व वाली टेक और एआई रैली का लाभ उठाना चाहते हैं। यूटीआई इंटरनेशनल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रवीन जगवानी ने सामी मोदी के साथ ईमेल बातचीत में कहा कि अब भारत का नजरिया सुधार रहा है। वैल्यूएशन सामान्य हो रहे हैं। दीर्घकालिक बुनियादी कारक भी मजबूत बने हुए हैं।

उभरते बाजार के पोर्टफोलियो में भारत अब सबसे बड़ा अंडरवेट है। मनोबल में ऐसा बदलाव क्यों?

2025 के मध्य तक भारत में 70 फीसदी से ज्यादा उभरते बाजार के फंड अंडरवेट रहे हैं, जो औसतन एमएससीआई ईएम (उभरते बाज़ार) सूचकांक से करीब 3 फीसदी कम है। इसके तीन कारण हैं : भारत का अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन, भारी विदेशी निवेश और उत्तरी एशिया की ओर रुझान। एमएससीआई इंडिया इंडेक्स 2025 में व्यापक उभरते बाजारों से करीब 15 फीसदी पीछे रह गया है, जो 2011 के बाद का सबसे बड़ा अंतर है। उच्च मूल्यांकन ने खराब प्रदर्शन में इजाफा कर दिया और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस साल करीब 11 अरब डॉलर के भारतीय शेयर बेचे, जिससे विदेशी स्वामित्व 15 साल के निचले स्तर पर आ गया। निवेशकों ने अमेरिका की अगुआई वाली तकनीक और एआई तेजी से आकर्षित होकर ताइवान, दक्षिण कोरिया और चीन की ओर पूंजी मोड़ दी है, जहां आय को लेकर स्पष्टता है और मूल्यांकन ज्यादा आकर्षक है।

एक साल तक कमजोर प्रदर्शन के बाद क्या आप निवेशकों की दिलचस्पी में कमी देख रहे हैं?

भारत में दीर्घकालिक विदेशी पूंजी का एक बड़ा आधार है, लेकिन रणनीतिक निवेशक रफ्तार का पीछा करते हैं। लगभग दो वर्षों से भारत, वैश्विक और एशियाई उभरते बाजारों से पीछे चल रहा है और पूंजी दुनिया के सबसे लोकप्रिय व्यापार मैग्निफिसेंट 7 की ओर जा रही है, जिससे उभरते शेयर और विशेष रूप से भारत पिछड़ रहा है।

कौन सा उभरता बाजार अभी सबसे ज्यादा विदेशी दिलचस्पी खींच रहा है?

दक्षिण कोरिया, चीन, सऊदी अरब, यूएई और ब्राजील 2025 में निवेश में अग्रणी रहेंगे। दक्षिण कोरिया और चीन ने इस साल अब तक करीब 60 फीसदी और 37 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है, जिसे आय में मजबूती, नीतिगत सुधारों और धारणा का समर्थन मिला है। सऊदी अरब और यूएई में इक्विटी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ रहा है, जो बुनियादी ढांचे पर खर्च, विविधीकृत योजनाओं और नियामतीय खुलेपन से प्रेरित है। ब्राजील ने एफडीआई विश्वास के मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया है जबकि दक्षिण अफ्रीका वैश्विक एफडीआई रैंकिंग में ऊपर चढ़ रहा है।

आपको कौन से उभरते बाजार पसंद हैं?

उभरते हुए बाजार अब एकल निवेश खंड की तरह व्यवहार नहीं करते, हालांकि आवंटन अक्सर अभी भी उसी तरह होते हैं। सीमा-पार मोबिलिटी, पैसिव फंडों का वर्चस्व और उभरते हुए बाजार को अखंड मानने से सहसंबंध बढ़ते हैं, फिर भी प्रदर्शन का विस्तार पहले कभी इतना व्यापक नहीं रहा। संरचनात्मक, नीतिगत और क्षेत्र-विशिष्ट कारक अब किसी भी एकीकृत उभरते बाजार की कहानी पर भारी पड़ रहे हैं। एशिया पिछड़ सकता है जबकि लैटिन अमेरिका में तेज़ी आ सकती है और पोलैंड बढ़ सकता है जबकि थाईलैंड सिकुड़ सकता है। विविधीकरण चाहने वाले निवेशकों के लिए पारंपरिक उभरते बाजार पहले की तुलना में बहुत कम सुरक्षा प्रदान करते हैं।

उभरते बाजारों से भारत का मूल्यांकन प्रीमियम सिकुड़ा है। क्या यह और सिकुड़ेगा?

2021 के मध्य के बाद भारत का प्रीमियम बढ़ गया, जब चीन के रियल एस्टेट संकट ने चीनी और हॉन्गकॉन्ग के पीई मल्टीपल को कम कर दिया। चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया में मजबूत निवेश ने इस अंतर को कम कर दिया है। जैसे-जैसे भारतीय आय में सुधार जारी रहेगा, मूल्यांकन में और कमी आ सकती है, जिससे प्रीमियम में व्यवस्थित कमी दर्ज होगी।

भारत में सूचीबद्ध एआई कंपनियों का अभाव है। क्या निवेशकों की दिलचस्पी पर असर पड़ रहा है?

आंशिक रूप से। भारत में प्रतिभाओं की प्रचुरता के बावजूद बड़ी सूचीबद्ध एआई कंपनियां अभी तक उभर नहीं पाई हैं। डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया के सहयोग से कृषि प्रौद्योगिकी, चिकित्सा प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और रक्षा प्रौद्योगिकी में स्टार्टअप्स की एक श्रृंखला विकसित हो रही है। आने वाले वर्षों में इन क्षेत्रों की अहम कंपनियों के सार्वजनिक बाजार में आने की उम्मीद है।

एफपीआई की हालिया बिकवाली की क्या वजह है? क्या आपको निवेश में सुधार की उम्मीद है?

एफपीआई की बिकवाली 2021 से उभरते बाजारों में जोखिम कम करने की व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा रही है। चीन में रियल एस्टेट की मंदी, महामारी के बाद की सुस्त रिकवरी और अमेरिकी तकनीकी क्षेत्र के असाधारण रिटर्न ने उभरते बाजारों से पूंजी को दूर कर दिया। रूस के उभरते बाजारों के सूचकांकों से हटने और हाल ही में मुद्रा और मूल्यांकन में बदलाव ने उत्तरी एशिया की ओर रुख को और बढ़ावा दिया। यह केवल भारत तक सीमित नहीं है, जैसे-जैसे उभरते बाजारों की तुलना में आय में अंतर बढ़ता है और अमेरिकी तकनीकी क्षेत्र सामान्य होता है, विदेशी निवेश फिर से शुरू होने की उम्मीद है।

First Published : December 1, 2025 | 9:05 AM IST